हमारे देश में निरंतर विधानसभाओं और संसद में नित नये तमाशे हो रहें है और सारा देश बार-बार शर्मसार होता है पर इन तथाकथित जनप्रतिनिधियों के कानों में जूँ नहीं रेगती । यह रोग बढ़ता ही जा रहा है और इसकी रोकथाम के लिये कोई सार्थक प्रयास नहीं हो रहें हैं । एक दूसरे पर आरोप मढ़ने से तो कम नहीं चलने वाला ।किसी न किसी को तो इसकी जिम्मेवारी लेनी ही होगी ।
सवाल उठता है कि कौन इसके लिये ज्यादा दोषी है और किसे इसे रोकने का दायित्व निभाना चाहिये ? भारत के संसदीय इतिहास पर हम यदि दृष्टिपात करें तो स्पष्ट होता है सबसे अधिक समय तक केन्द्र व राज्यों में कांग्रेस सत्ता में रही है । जाहिर है कि इसकी जिम्मेदारी से कांग्रेस अपना पल्ला नहीं झाड़ सकती ।
संविधान लागू होने के बाद उसके अनुकूल राजनीतिक संस्कृति के निर्माण का दायित्व कांगेस का ही था । कांगेस को ही जनता एवं जनप्रतिनिधियों के मन में संसदीय लोकतंत्र के मूल्यों व मानकों के प्रति प्रतिबद्धता के माहौल को निर्मित करने के लिये एक योजना बनानी चाहिये थी । पर ऐसा नहीं किया गया। सबल विपक्ष के अभाव में कांग्रेस ने सत्ता को अपना विशेषाधिकार मान लिया और लोक -शिक्षण के अपने दायित्व से विमुख होकर केवल जोड़ -तोड़ तथा वोट की राजनीति का सहारा लिया । कांग्रेस के वर्चस्व के समय से ही चुनावों में धन एवं बाहुबल कि शुरुआत हुई और प्रलोभनों से वोट पाने की प्रवृत्ति बढ़ी। जबकि इस दल के नेतृत्त्व को यह देखना चाहिये था कि निचले स्तर पर आम चुनावों में उसके प्रत्याशी चुनावों में क्या हथकंडे अपना रहे हैं और इसके दूरगामी परिणाम क्या होंगें ?
देश में जितने भी राजनीतिक दल अस्तित्व में उनमें से अधिकांश का नेतृत्त्व किसी न किसी रूप में कांग्रेस से ही निकला है। यदि कांग्रेस ने लोकतान्त्रिक मूल्यों,मर्यादाओं और मानकों को जनमानस स्थापित करने के प्रयास किए होते तो आज इस शोचनीय स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता। नेहरू से लेकर सोनिया तक के कांग्रेसी नेतृत्त्व ने कभी ऐसे प्रयास करने की जरूरत नहीं समझी ।
ऐसी स्थति पर केवल आँसू बहना ही इस समस्या का विकल्प नहीं है। हमें ऐसी असंसदीय हरकतों पर काबू पाने के लिये युद्ध स्तर पर उसी तरह प्रयास करने होंगें जैसे आतंकवाद का सामना करने के लिये कर रहें है। इसके लिये पहल भी कांग्रेस को ही करनी पड़ेगी। सभी दलों के बीच आमसहमति बना कर जनप्रतिनिधियों की संसदों व विधानसभाओं को सीमित दलीय हितों की दृष्टि से बंधक बनाने की हरकतों को दण्डनीय अपराध बनाना होगा। ऐसी गतिविधियों में लिप्त सदस्यों को आजीवन राजनीतिक बनवास देने की व्यवस्था करनी होगी । उनके राजनीतिक आकाओं को भी कानून का पाठ पढाना होगा। यदि जिम्मेदार पदों पर बैठे व्यक्ति हाथ पर हाथ धरे अब भी बैठे रहे ,तो वह दिन दूर नहीं जब लोकतंत्र से लोगों का विश्वास उठ जायेगाऔर आज जहाँ व्यव्स्थापिकाओं में थप्पड़ ,घूँसे चलते दिख रहे है ,वहाँ असलहों का भी प्रयोग होगा ।
जनता ने कांगेस को विकास , सुशासन एवं विश्वसनीयता के नाम पर वोट दिया है ,अतः कांगेस को ही अपने सीमित दलीय स्वार्थों को दरकिनार कर स्वस्थ परम्पराओं को स्थापित करने एवं संविधान की मर्यादाओं के उल्लंघन की बढती प्रवृत्ति को रोकने जिम्मेवारी निबाहनी ही होगी ,अन्यथा इतिहास इसे कभी माफ़ नहीं करेगा।
Monday, November 9, 2009
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ab vipaksh isliye nahin banta ki wo satta paksha ke galat kamon ko rok sake, ab to vipaksha satta na mil paane ke kaaran ban jaata hai.
ReplyDeleteisake baad shuru hota hai, ise girao hamen banaaon ka khel. aise men koi kaise sudhre?