Friday, February 10, 2012

बेवकूफ नहीं है जनता

विधान सभा निर्वाचनों का दौर चरम पर है । कोई भी दल जनता को लुभाने में पीछे नहीं रहना चाहता । वादों को परोसने की होड़ लगी है । किसी दल के अध्यक्ष को सभी उम्मीदवार गधे लगते है । कोई याद दिलाता है कि बटाला मामले में उनके अध्यक्ष रो पड़े थे फिर संशोधन आता है कि रोये नहीं केवल मायूस हुए थे । सभी दल मुस्लिम वोटों को आरक्षण के झुनझुने से रिझाने में लगे हैं । भ्रष्टाचार की पोल खोलने का दावा करने वाला दल ओ ० बी ० सी ० वोटों के लालच में घोषित भ्रष्टाचारी नेताओं को शामिल कर रहा है । टिकट की कसौटी जिताऊ उम्मीदवार है न कि स्वच्छ छवि ।
चुनाव आयोग का डंडा प्रभावी है । नोटों के बण्डल पकडे जा रहे हैं । जुलूसों , विज्ञापनों व शोर पर प्रतिबन्ध से जनता राहत की साँस ले रही है । अन्ना फैक्टर का इतना असर तो हुआ ही है कि जनता के सामने राजनीतिक दलों की हकीकत सामने आ गयी है। मतदान में बढ़ता वोटिंग का प्रतिशत जन चेतना क़ी निशानी है ।
समस्या यही है कि जनता के सामने विकल्प सीमित हैं ।
आने वाले चुनाव के नतीजे बेहद चौकाने वाले होगें । राजनीतिक दलों को समझना होगा कि जनता वेवकूफ नहीं है .उसे केवल वादों से नहीं भरमाया जा सकता ।