Tuesday, November 28, 2017

एक कहानी सुनिये


        किशोरवय में मेरे बाबााजी (grand father  )ने मुझे  एक कहानी सुनायी थी-
        गंगा नदी के किनारे किसी कुंभ मेले की बात है.एक मालिन अपने बेटे की अंगुलि पकड़े ,सिर पर फूलों का टोकरा रखे गंगा तट पर फूल बेचने के लिये जा रही थी ,अचावक उसके बेटे को दीर्घशंका महसूस हुई. मालिन  ने इधर - उधर देख कर यात्रा मार्ग के किनारे सुनसान जगह बेटे को बिठा दिया. बाद में विष्ठा पर उसने ढेर सारे पुष्प डाल दिये और आगे बढ़ गयी.
          पीछे आने वाले तीर्थ यात्रियों  ने जब वहॉ पुष्पों का ढेर देखा,तो उन्हें लगा कि यह कोई पूजा का पवित्र स्थान है. वे उस पर  पुष्प और पैसे अर्पित करने लगे. गंगा के किनारे रहने वाले मुस्लिमों को भी लगा कि यह कोई सिद्ध पीर का स्थान है,वे भी उस पर फूल व पैसे डालने लगे.
        जब वहॉ धन एकत्र होने लगा तो एक गेरुआधारी वहॉ आकर बैठ गये और कहने लगे कि यह मेरे गुरु की समाधि है और मै उनका उत्तराधिकारी हूँ. मुस्लिमों ने जब यह देखा तो एक जालीदार टोपी पहने सज्जन भी यह दावा करने लगे कि यह उनके पीर की दरगाह है.
           मामले को सांप्रदायिक रंग लेते देख प्रशासन सक्रिय हुआ. यह निर्णय हुआ कि फूलों को हटा कर देखा जाये कि  नीचे क्या है.जब असलियत सामने आयी तो दोनों दावेदार व उनके समर्थक बहुत शर्मिंदा हुये.
        बाबा जी कहते थे कि अविवेकपूर्ण आस्था अंध श्रद्धा को जन्म देती है.
        मुझे लगता है इसी प्रकार राजनीतिक व सामाजिक मुद्दों पर अविवेकपूर्ण समर्थन अथवा विरोध ,अंध भक्ति व अंध विरोध को जन्म देता है जो न व्यक्ति के अपने हित में होता है ,और न समाज के.
        आज सुबह न्यूज सुनते समय फिल्म पद्मावती पर रोक पर दायर याचिका को अस्वीकार करते हुये माननीय सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुये फिल्म को बिना देखे हुये बवाल पर  माननीयों की भूमिका पर सवाल खड़े करते हुये उन्हें जिस तरह लताड़ा है. और जिस तरह विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री  राजनीतिक हित के लिये  इस बवाल पर जो रुख अपना रहे हैं,उससे मुझे बचपन में सुनी कहानी याद आ गयी.
       फिर नाक,कान काटने की धमकी व उस पर इनाम की घोषणा करना तो शायद हमारे यहॉ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत आता है.

Monday, November 20, 2017

फिल्म पद्मावती का विरोध -एक मीमांसा


        फिल्म पद्मावती के माध्यम से इतिहास से जन भावनाओ को आहत करने की हद तक छेड़छाड़  करने वाले फिल्मकारों को कई विद्वानों व इतिहासकारों ने लताड़ा है. मै भी इससे सहमत हूँ.
       पर हमारे देश के लोकतंत्र में हर बात राजनीति से जुड़ जाती है. राजनीतिक दल भी अपने हितलाभ की दृष्टि से समर्थन व विरोध करने लगते है. इस समय इस मुद्दे पर राजपूत वर्ग   राजनीति पर असर डालने वाले एक दवाव  समूह ( pressure group )के रूप में संगठित हुआ है. सभी दल इस ग्रुप का समर्थन चाहते हैं. गुजरात चुनाव सत्ता दल व विरोधी दल के बीच नाक का सवाल बन गया है.इस मुद्दे को वे भी cash कराना चाहते हैं.
           हमारे यहॉ समर्थन व विरोध जब भी होता है तो विवेकशून्यता की हद तक. बिना  फिल्म देखे व निर्देशक की सफाई सुने, विरोध जारी है ,फिल्म के निर्देशक का भी और मुख्य पात्रों की भूमिका निभाने वाले कलाकारों का  भी.  स्त्री अस्मिता   के सम्मान के नाम पर शुरू हुआ विरोध फिल्म की हीरोइन के प्रति भद्दी बातों व सिर काट कर लाने वाले को इनाम देने जैसे तालिबानी फरमानों तक पहुँच गया है.कई विद्वान इतिहासकार ने भी इस पर मौन रहना या इसकीउपेक्षाकरनाउचितसमझा.           
                कलाकार तो निर्देशक के निर्देशन में भूमिका निभाते हैं पात्र को जीने का प्रयास करते हैं फिर उन पर व्यक्तिगत प्रहार क्यों?दीपिका पद्मावती नहीं है और न रणवीर ,खिलजी.        गुजरात चुनाव के बाद देखियेगा,कि एक-दो सीन काट कर यह फिल्म रिलीज हो जायेगी और इस विवाद का भी  फिल्म को  लाभ मिलेगा. हॉ पद्मावती फिल्म के खिलाफ मुहिम चलाने वाले कुछ करणी सेना के नेताओं की राजनीति में कीमत जरूर बढ़ जायेगी.
        मेरा सकारात्मक सोच रखने वाले विद्वानों व जागरूक नागरिकों से मेरी यह अपील जरूर है कि बिना तथ्यों का निष्पक्ष अध्ययन किये ,ऐसे मुद्दों को समर्थन या विरोध करने से पहले सोचें जरूर. ऐसी बवालों पर देश का ही नुकसान होता है. मुख्य मुद्दे पीछे छूट जाते हैं. सत्ताधीश युगों से समाज को बॉटने की नीति पर चलते रहे रहे हैं, यह हमें सोचना होगा.

Monday, October 2, 2017

भारतीय स्वाधीनता के पुरोधा -महात्मा गांधी


         आज राष्ट्रपिता महात्मा गॉधी की जयंती है.स्वाधीनता आंदोलन में गॉधी जी का एक युग रहा है.उन्होंने अंग्रेजों की दमनकारी नीति का मुकाबला सत्य,अहिंसा, नैतिकता व आत्मबल पर आधारित 'सत्याग्रह आंदोलन' के माध्यम से किया और ब्रिटिश सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर किया.
          उन्होंने भारतीय जनता के मनोविग्यान को समझा था,जो किसी भी प्रकार की हिंसा व उग्रता को नापसंद करती थी,सामंजस्य ,भाईचारे व वसुधैव कुटुंबकम् में आस्था रखती थी और जिसे न समझ पाने के कारण भारत के क्रांतिकारी आंदोलन आम लोगों का समर्थन न पा पाने के कारण असफल हो गये और स्वाधीनता के अनेक नायकों को फॉसी पर चढ़ना पड़ा.
            गॉंधी जी ने राजनीति में नैतिकता के मानदंडों का समावेश किया यथा- सत्य,अहिंसा,साधनों की पवित्रता,कथनी-करनी में अभेद,सर्व-धर्म-समभाव. उन्होने 'Example is better than precept'की उक्ति का अनुसरण कर इन सिद्धांतों को जीवन में उतारा था जिसके कारण वे आम जनता को आकर्षित करने में एवं उसे सत्याग्रह आंदोलन से जोड़ने में सफल हुये.गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर ने उन्हें 'महात्मा' कहा और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने उन्हें 'राष्ट्रपिता' कह कर संबोधित किया. पश्चिमी देशों के लिये गॉधी जी की शैली एक करिश्मे से कम न थी. उनकी सत्याग्रह की पद्धति का बाद में अनेक देशों के स्वाधीनता आंदोलन में प्रयोग हुआ.
            गॉधीजी भारत के विभाजन के विरोधी थे.मौलाना आजाद भी इसी मत के थे. पर नेहरू व पटेल जैसे नेताओं ने विभाजन को स्वीकार कर लिया जिसका परिणाम आज भी भारत भोग रहा है. जब सारा देश स्वतंत्रता प्राप्ति का जश्न मना रहा था,गॉधी जी नोआखाली में सांप्रदायिक सदभाव स्थापित करने में जुटे थे.उन्होने आमरण अनशन भी शुरू किया जिसका व्यापक प्रभाव पड़ा.
            30 जून 1948 को नाथूराम गोडसे ने गॉधी जी की हत्या कर दी और एक युग का अंत हुआ.उस समय पाकिस्तान रेडियो ने यह मर्सिया पढ़ा-
  "ऐ कौम! न छूटेगा ,दामन से तेरे यह दाग ,
     गुल तूने अपने हाथ से, अपना किया चिराग,
      गॉधी को मार कर ,तूने तो तोड़ा है वह फूल,
        तरसेगा. लहलहाने को एशिया  का बाग."
        
             देश के आज के राजनीतिक परिवेश में गॉधी जी केवल उपयोग की वस्तु रह गये हैं. उनके सिद्धांतों को तिलांजलि देकर उनके नाम को भुनाया जा रहा है. कांग्रेस ने भी यही किया और वर्तमान सरकार भी यही कर रही है.सरकार उनका नाम जप रही है और उसके समर्थकों का एक वर्ग उनकी निंदा व चरित्र हनन में लगा है.यह स्थिति निंदनीय है.  गॉंधी देश का गौरव हैं और रहेंगे.

Saturday, September 30, 2017

'मंजुल मयंक 'जी को विनम्र श्रद्धांजलि

      आज बुन्देलखंड ( हमीरपुर निवासी  ) के  सुमधुर गीतकार  श्री ग़णेश प्रसाद खरे ' मंजुल मयंक' का जन्मदिवस एवम पुण्यतिथि दोनों है.मयंक जी  एक सीधे,सरल इंसान व हिंदी साहित्य के उदभट विद्वान व राष्ट्रीय स्तर के कवि रहे हैं.वे सुप्रसिद्ध कवि श्री गोपाल दास 'नीरज' के साथी रहे हैं बुंदेलखंड की इस महान विभूति को शत शत नमन.
     मेरे अग्रज स्व. आदर्श 'प्रहरी ' ने मयंक जी को निम्नांकित पंक्तियों में श्रद्धांजलि दी थी-
   "गीत में जो दर्द गाते हैं,
                                 उन्हें मेरा नमन है,
     दर्द नें जो मुस्कुराते है,
                                  उन्हें मेरा नमन है,
     जो व्यथाओं में कथाओं की ,
                                नई नित सृष्टि करते,
      मान्यताओं को बनाते हैं,
                                  उन्हें. मेरा नमन है."
   
           ऐसे युग कवि को मेरा शत शत नमन
                   
प्रस्तुत है 'मयंक 'जी का एक बेहद लोकप्रिय गीत-

       "रात ढलने लगी चॉद बुझने लगा"
         ------------------------------------
  "रात ढलने लगी, चाँद बुझने लगा,
   तुम न आए, सितारों को नींद आ गई ।

धूप की पालकी पर, किरण की दुल्हन,
आ के उतरी, खिला हर सुमन, हर चमन,
देखो बजती हैं भौरों की शहनाइयाँ,
हर गली, दौड़ कर, न्योत आया पवन,

     बस तड़पते रहे, सेज के ही सुमन,
     तुम न आए बहारों को नीद आ गई ।

व्यर्थ बहती रही, आँसुओं की नदी,
प्राण आए न तुम, नेह की नाव में,
खोजते-खोजते तुमको लहरें थकीं,
अब तो छाले पड़े, लहर के पाँव में,

      करवटें ही बदलती, नदी रह गई,
      तुम न आए किनारों को नींद आ गई ।

रात आई, महावर रचे साँझ की,
भर रहा माँग, सिन्दूर सूरज लिए,
दिन हँसा, चूडियाँ लेती अँगडाइयाँ,
छू के आँचल, बुझे आँगनों के दिये,

        बिन तुम्हारे बुझा, आस का हर दिया,
        तुम न आए सहारों को नीद आ गई ।"

👣🙌🏻🙏

Monday, September 18, 2017

शाबाश पी.वी.सिंधू


      कल 17 सितंबर 2017 का दिन देशवासियों के लिए कई अच्छी खबरें लेकर आया. गुजरात में सरदार सरोवर बॉध को प्रधानमंत्री जी ने देश को समर्पित किया.वहीं खेल जगत में भारतीय क्रिकेट टीम ने आस्ट्रेलिया के खिलाफ लगभग हारा हुआ पहला वन डे शुरूआती बल्लेबाजों के पू्र्ण धराशायी होने के बाद भी धोनी व पांड्या की सूझबूझ भरी बल्लेबाजी के कारण जीत लिया.
       परंतु सबसे महत्वपूर्ण खबर ,जिसे मीडिया चैनल्स में सबसे कम स्थान मिला, पिछले ओलंपिक की रजत पदक विजेती पी.वी.सिंधू का कोरिया ओपन सुपर सीरीज बैडमिंटन टूर्नामेंट में महिला एकल में विश्व बैडमिंटन चैंपियन जापान की नोजोमी ओकुहारा को हरा कर  इस खिताब को जीतना था. विश्व चैंपियन फायनल में वे इसी खिलाड़ी से हार गयी थीं. सियोल में हुये इस आयोजन में उन्होंने अपना बदला चुका कर इतिहास रचा.
           सिंधू अब तक तीन सुपर सीरीज खिताब जीत चुकीं हैं जिनमें से दो खिताब इसी वर्ष जीते हैं.   प्रत्येक भारतवासी को सिंधू की उपलब्धि पर नाज होना चाहिये. वे देश का गौरव हैं

Sunday, September 3, 2017

देश की नई रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण


       प्रधानमंत्री जी ने सारे राजनीतिक पूर्वानुमानों को ध्वस्त करते हुये सुश्री निर्मला सीतारमण को देश का रक्षा मंत्री  बना दिया. वे  देश की पहली पूर्णकालिक महिला  रक्षा मंत्री हैं .इससे पहले स्व. इन्दिरा गान्धी कुछ समय रक्षा मंत्री रही थीं.
       निर्मला जी भारत के कई राज्यों का प्रतिनिधित्व करती हैं. इनका जन्म तमिलनाडू में हुआ.  वे केरल से स्नातक हैं. इनकी ससुराल आंध्र में है  और संसद में वे कर्नाटक दे राज्य सभा की सदस्य  हैं .जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय ,नई दिल्ली  में  भी  उन्होने शिक्षा ग्रहण की.
       नितिन गडकरी जब भाजपा के अध्यक्ष थे, तब पहली बार उन्हें भाजपा का प्रवक्ता बनाया गया. जिसका उन्होने बखूबी निर्वाह किया. उसके बाद उन्होने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. मोदी जी के मंत्रिमंडल  में वे कैबिनेट मन्त्री बनी. उनकी क्षमता व कुशलता के कारण  मंत्रिमंडल के हाल के फ़ेरबदल में  उन्हें  रक्षा मंत्री जैसा महत्वपूर्ण पद दिया गया. उन्हें ढेरों शुभकामनाये.
       इसे महिला सशक्तीकरण की दिशा में भी  एक बडे कदम के रूप में भी देखा जा सकता है. महिलायें अब पुरुषों के काम करने लगी हैं.भले ही मोदी जी की अपनी पत्नी को साथ न रखने पर आलोचना होती हो पर इस देश की सरकार में विदेशमंत्री व रक्षा मंत्री महिलायें हैं.और गृहमंत्री पुरूष.यह मोदी जी के मंत्रिमंडल की विलक्षण विशेषता दृष्टिगोचर हो रही है.

Saturday, August 26, 2017

जेल में बाबा ---हिंसा से सकते में सरकार


            भारत में तथाकथित बाबाओं की काली करतूतों की श्रृंखला  में बाबा 'रामरहीम' का नाम आज सबसे ऊपर है . वोटों के लालच में राजनेताओं का इन बाबाओं से प्रेम जग जाहिर हो चुका है.  पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट के निर्देश के बाद भी उनके भक्तों को एकत्र होने देना और जैसी कि आशंका थी, कोर्ट के फैसले के बाद हिंसा होना ,सरकार की नाकामी का सूचक है. हाईकोर्ट ने पुन: सरकार को फटकार लगाते हुये कहा कि उसने राजनीतिक लाभ की दृष्टि से हिंसा होने दी.
           अब रामरहीम जेल में हैं. कोर्ट ने सरकार को उनकी संपत्ति जब्त करने व उससे हिंसा में हुये नुकसान की भरपायी करने का आदेश दिया है.
हद तो यह है कि कुछ महाराज टाइप के सांसद इन बाबा के मामले में न्यायपालिका को कोस रहे हैं. उनका कहना है कि न्यायपालिका को निर्णय देते समय जनभावनाओं का ध्यान रखना चाहिये .यह सांसद भाजपा के हैं और विवादास्पद बयान देने में माहिर हैं. बयान देते समय वे यह भी भूल गये कि इस प्रकरण की सी.बी.आई. जॉच का आदेश उनकी पार्टी के इतिहास पुरुष पूर्व प्रधानमंत्री श्रीअटल बिहारी बाजपेयी ने ही दिये थे.
            सच तो यह है कि न्यायपालिका ही इस देश के संविधान को बचाये हुये है,वरना राजनेता तो वोटों के लालच में देश का बंटाधार ही कर दें.   
            लोकप्रिय कवि प्रदीप ने छह दशक पहले  अपने गीत 'कितना बदल गया इंसान ' गीत में निम्नांकित पंक्तियॉ लिखी थीं वे आज उस समय से अधिक प्रासंगिक सिद्ध हो रहीं हैं.

"राम के भक्त रहीम के बंदे,
               रचते आज फ़रेब के फंदे.
कितने ये मक्कार ये अंधे,
                 .देख लिये इनके भी धंधे.
इन्हीं की काली करतूतों से
                        बना ये मुल्क मशान.
                कितना बदल गया इंसान।"

Tuesday, August 22, 2017

भारत में मुस्लिम महिलाओ की बड़ी विजय : सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किया


       आज 22अगस्त 2017 का दिन भारत में मुस्लिम महिलाओ के लिये ऐतिहासिक दिन बन गया, जब सर्वोच्च न्यायालय की 5सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने सायरा बानो जी की याचिका पर बहुमत से निर्णय देते हुए तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया. भारत तीन तलाक पर रोक लगाने वाला २३वॉ देश बना.पडोसी देश पाकिस्तान व बॉगला देश में पहले से इस पर रोक है.
        इस निर्णय में तीन न्यायाधीशों जस्टिस रोहिंगटन ,जस्टिस कुरियन, जस्टिस ललित ने तीन तलाक को असंवैधाानिक बताया और दो न्याया़धीशों चीफ जस्टिस खैहर व जस्टिस नजीर ने इस पर कानून बनाने की बात कही.संवैधानिक पीठ में बहुमत का निर्णय ही अंतिम निर्णय माना जाता है.
         यह निर्णय धर्म के नाम पर मुस्लिम महिलाओं के शोषण को रोकने में मील के पत्थर की तरह है. सारे देश में विशेषकर मुस्लिम महिलाओं के द्वारा इस निर्णय का तहेदिल से स्वागत किया जा रहा है. यह एक मानवीय व ऐतिहासिक निर्णय है.

Saturday, August 19, 2017

फ़ोटोग्राफ़र दिवस पर स्व. गान्धी राम ' फ़ोकस' जी की याद


       आज सुबह जैसे ही मैने फ़ेसबुक पर नज़र डाली तो उरई IPTA के सचिव राज पप्पन की पोस्ट पर नज़र गयी जिसमे उन्होंने आज फ़ोटोग्राफ़र दिवस पर सभी फ़ोटोग्राफ़र भाइयों को बधाई दी थी.
        इस पोस्ट को पढ़ कर मेरा मन अपने नगर उरई के अतीत में चला गया.इस वर्ष ही मैने अपनी सेवा से अवकाश प्राप्त किया है. बचपन में आज से लगभग पचपन वर्ष पूर्व उरई के अतीत की स्मृतियॉ मानस-पटल पर आने लगीं , जब  नगर में यहाँ के माहिल तालाब के सामने दो  ही फ़ोटो स्टूडियों ही थे. पहला 'रमेश फ़ोटो स्टूडियो ' जो फ़ोटोग्राफ़र श्री रमेश चन्द्र सक्सेना का  था .वे अपने चाचा श्री गुट्टू सक्सेना व भाई श्री अवधेश चन्द्र सक्सेना के साथ बैठते थे. 
          दूसरा फ़ोटो स्टूडियो 'फ़ोकस फ़ोटो स्टूडियो 'फ़ोटोग्राफ़र श्री गान्धी राम गुप्त का था जो आज भी है.
          गॉधी राम जी हास्य व  व्यंग्य के समर्थ कवि थे. पहले उनका मूल नाम 'नाथू राम गुप्त ' था. पर जब १९४८ में नाथू राम गोडसे ने गॉधी जी की हत्या कर दी तो वे अपना नाम 'गॉधी राम ' लिखने लगे.
           फ़ोकस जी का व्यक्तित्व बडा प्रभावशाली था. गेरुआ वस्त्र व डाढी में वे एक साधु लगते थे.वे स्वयं योगासन में विश्वास करते थे और प्रसार भी.कई लोगों को योगासन सिखा कर उन्होंने उन्हें स्वास्थ्य लाभ कराया था.वे वाकई एक संत थे एवम् अत्यन्त सरल व नेक व्यक्ति  थे.
           वे अत्यन्त विनोदी स्वभाव के थे. वे हास्य एवं व्यंग्य के सशक्त हस्ताक्षर थे. होली के पर्व पर ऐतिहासिक माहिल तालाब के किनारे  'मूर्ख दिवस'  मनाने की शुरुआत उन्होने ही की थी. यह परम्परा आज भी कायम है.
          उनकी दूकान पर जाते ही विनोदी वातावरण महसूस होने लगता था. सरल शब्दों में गंभीर बात कहना उनकी विशेषता थी.अपनी दूकान के सामने उन्होने अपनी चार पंक्तियॉ लिखा रखी थीं -
    "तन,  लडकपन औ जवानी,
                     सब    धरा  रह जायेगा.
      यादगारी के लिये,
                     फोटो .फकत रह जायेगा."
         
            उनकी दूकान पर लिखी चार पंक्तियॉ भी याद आतीं हैं-
        " जैसी    फोटो ,वैसे  दाम,
                       फोटोग्राफर    गॉधीराम."

           मेरे पिता श्री के.डी.सक्सेना एवं अग्रज आदर्श कुमार 'प्रहरी' भी कवि थे.फोकस जी अक्सर उनसे मिलने घर पर आते थे. मैने उनके मुख से उनकी कुछ कवितायें सुनी हैं.
            उनके दो गीत बडे  प्रसिद्ध रहे हैं--

"यदि हम सबने अपना -अपना
                                 धर्म ,न छोडा होता,
'पुष्पक विमान की जगह,
                       आज क्यों तॉगा,घोडा होता"

(उस समय तॉगे व घोडे ही उरई में चलते थे )
                ---------------------
        
          " हे! गुम्मा    तेरा  यश  महान"

             आज फ़ोटोग्राफ़र दिवस  पर  जनपद के  इस  महान  व्यंग्यकार को शत् शत् नमन.

Wednesday, August 9, 2017

अगस्त क्रांति -भारत छोड़ो आंदोलन की पृष्ठभूमि


      अगस्त क्रांति का हमारे स्वाधीनता आंदोलन के संघर्ष में महत्वपूर्ण योगदान था. यह आंदोलन इस अर्थ में महत्वपूर्ण था कि इसे देश भर की जनता का अभूतपूर्व समर्थन मिला.

       1942 मे मौलाना अब्दुल  कलाम आज़ाद काँग्रेस के अध्यक्ष  थे।बंबई मे काँग्रेस अधिवेशन  चल रहा था। 8 अगस्त 1942 को  गांधीजी ने काँग्रेस मंच से 'अंग्रेज़ो भारत छोड़ो' तथा ' करो या मरो ' का नारा देकर सारे देश मे ब्रिटिश शासन के खिलाफ बिगुल बजा दी थी।
         ब्रिटिश शासन ने अपना दमन  चक्र चलाया और 8 अगस्त की रात्रि तक काँग्रेस के सारे प्रमुख  नेता गिरफ्तार कर लिए गए , जिसमे महात्मा गांधी,जवाहर  लाल नेहरू और तत्कालीन  काँग्रेस अध्यक्ष मौलाना आज़ाद  भी थे।कॉंग्रेस कार्यक्रम के अनुसार 9 अगस्त को काँग्रेस  अध्यक्ष मौलाना आज़ाद को  बंबई के 'गवालिया टेंक मैदान' मे  काँग्रेस का झण्डा फहराना था। काँग्रेस के नेताओ मे जय प्रकाश  नारायण,डॉ राममनोहर लोहिया,अरुणा आसफ अली ऐसी काँग्रेस नेता ब्रिटिश पकड़ के बाहर थे.
       'अरुणाआसफ अली' बम्बई मे थी।उन्होनेे 'विक्टोरिया  टर्मिनल स्टेशन 'मे मौलाना  आज़ाद को एक विशेष रेल गाड़ी  मे खिड़की के पास बैठे देखा। उन्हे 8 अगस्त की रात्रि मे  गिरफ्तार कर ब्रिटिश प्रशासन   रेल द्वारा अन्यत्र भेज रहा था। अरुणाजी ने जब मौलाना  आज़ाद को पुलिस पहरे मे देखा  तो उनकी समझ मे पूरी बात आ गई और वे चिंतित हो गई कि 'गवालिया टेंक मैदान' मे काँग्रेस  झण्डा किस प्रकार फहराया  जाएगा।स्टेशन मे उनके साथ काँग्रेस के बड़े नेता भूलाभाई  देसाई के पुत्र धीरु भाई भी थे।उन्होने धीरु भाई  को अबिलंब  उन्हे अपनी कार से ग्वालिया टेंक  मैदान पहुंचाने को कहा।
      जब वे  वहाँ पहुंची तब उन्होने देखा कि वहाँ होनेवाली काँग्रेस जन सभा को धारा 144 के तहत अवैध  घोषित कर दिया गया  है ।एक गोरा सार्जेंट ने भीड़ को मैदान से हट जाने के लिए दो मिनट का समय देने की घोषणा कर रहा  था और साथ यह भी कह रहा था   कि अगर भीड़ निर्धारित समय मे नहीं हटी तो बल प्रयोग कि९या  जाएगा। अरुणा आसफ अली जी ने न आव  देखा और न ताव , वे फुर्ती से मंच  पर चढ़ी और तिरंगे को फहरा  दिया।यह काम इतनी जल्दी से हुआ कि एकत्र पुलिस को कुछ  समझ मे नहीं आया कि क्या हो गया।
        अरुणा जी जिस फुर्ती से मंच पर चढ़ी,उसी फुर्ती से झण्डा  की डोर खींच मंच से उतर भीड़  मे गायब हो गई।इधर पुलिस ने भीड़ को तितर वितर करने के लिए आँसू गैस छोड़ने शुरू किया, तब तक अरुणा जी पुलिस की निगाह से बहुत दूर जा चुकी थी।
          नेताओं की गिरफ्तारी की सारे देश में जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई.देश के कई शहरों में लोग  सडकों पर उतर आये. 9अगस्तको कई जगह पर गोलियॉ चलीं जिसमें कई लोग शहीद हुये. जयप्रकाश जी,अरुणा आसफ अली व लोहिया के नेतृत्व में आंदोलन चलता रहा. दमन चक्र तेजी से चला. पर अंग्रेजों को यह महसूस हो गया कि अब वे अधिक समय तक भारत को गुलाम नहीं रख पायेंगे.

Sunday, July 9, 2017

श्री गुरवे नम :

     आज गुरु पूर्णिमा है. आज हम सभी अपने उन गुरुओ का स्मरण करते हैं जिन्होने हमें अच्छे संस्कार दिये और हमारे जीवन को सॅवारा.
    मैं उन सौभाग्यशाली व्यक्तियों में से हूँ जिसे प्रारम्भ से ही विराट व्यक्तित्व के गुरुवर मिले .माता पिता तो प्रथम गुरु होते ही हैं .पर मेरी माताजी श्रीमती परमेश्वरी सक्सेना मेरी प्राथमिक कक्षा में अध्यापिका रहीं ज़िनकी संस्कारजनित शिक्षा का गहारा प्रभाव मुझ पर  पड़ा .मेरे पिता श्री कृष्ण दयाल सक्सेना जी माध्यमिक कक्षाओ मेंमेरेशिक्षकरहेज़िनकाEnglish ,maths ,संस्कृत पर पूरा अधिकार था .उनसे मैं भी लाभान्वित हुआ .श्री जगत नारायण पांडे जी की शिक्षण शैली भी बहुत  प्रभावी था .श्री गिरिजा शंकर गौड  भी maths के बड़े ही विद्वान शिक्षक थे.
       स्नातक  शिक्षा के लिये  मैने दयानन्द वैदिक कालेज में प्रवेश लिया .मुझे संस्कृत के गुरुवर प्रो .रक्षाकर दत्त ने बहुत  प्रभावित किया .वे एक अत्यंत विद्वान व स्नेही व्यक्तित्व थे .डा. यामिनी जी भी बड़ी स्नेही थीं .परास्नातक  शिक्षा में डा .उदय नारायण शुक्ल जी विलक्षण शिक्षक थे .वे मेरे जीवन के भी प्रमुख शिल्पी रहे .एक विद्वान , सिद्धांतवादी ,ऊपर से दिखने में कठोर पर निर्मल हृदय वाले व्यक्ति थे वे. मेरे ऊपर उनका अपार स्नेह व आशीर्वाद रहा .डा. जय दयाल जी की अध्यापन शैली बड़ी ही मौलिक, तर्कपूर्ण एवं विनोदी थी जिसे कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था . मेरे  उपरिउल्लिखित शिक्षको  में  वे ही इस समय 92 वर्ष की अवस्था में भी उत्साही  दिखते हैं.
         मैं आज अपने उक्त सभी गुरुजनो को  अपनी विनम्र श्रद्धा निवेदित करता हूँ.