Friday, March 16, 2018

सियासत में जनता की भाषा


  भारत के राजनीतिक पटल पर जहॉ एक ओर पूर्वोत्तर में हुये चुनावों में भगवा लहर दिखाई दी वहॉ उत्तर भारत में हुये उपचुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा को गहरा झटका लगा. इस राजनीतिक उठा-पटक को देख कर लेखनी से कविता के रूप में मेरी जो प्रतिक्रिया प्रस्फुटित हुई जो कि निम्नवत् है-

"कोई हँस रहा है, तो कोई उदास है,
सियासत की, यही तो खास बात है.
          हमारी व्यवस्था को, क्या हो गया है,
          चुनावी गणित में ,' जन ' खो गया है.
ये वोटों का चक्कर, प्रमुख  हो गया है,
और जनता से नेता, विमुख हो गया है .
          सत्ता को जलवा, दिखाने की लत है,
          विरोधी को चिल्लाने  , की आदत है.
त्रिपुरा में वामी किला ,ढह गया  था,
विरोधी दलों का, दिल हिल गया था.
          नागालैण्ड,मेघालय ,मणिपुर कब्जे में,
          दिखाई थीै ताकत ,   हिंदुत्व ज़ज्बे ने.
भुनाया था ' हिंदुत्व' में ,'योगी' का चेहरा,
बँधा  था पूर्वोत्तर में, विजय  का  सेहरा.
           रिजल्ट उपचुनावों में,आया  है उल्टा,
           गणित सारा यू.  पी. ,बिहार में पल्टा.
इलाके में  योगी के,    भगवा  है    हारा,
मिला 'फूलपुर' मे , न जनता का सहारा.
           बिहार में लालू ने ताकत   दिखाई,
           कि सत्ता का चेहरा, हुआ है हवाई.
बहिन जी भी खुश हैं, भइया भी खुश हैं,
जमानत गँवा कर ,  गाँधी   भी  खुश  हैं.
           जनाधार खो  कर , वामी   भी खुश हैं,
           ये बसपा, सपा के ,सिपाही भी खुश हैं.
सत्ता की भँवों पर , खिचीं हैं लकीरें,
उन्नीस में मुद्दे , अब क्या- क्या उकेंरें.
           अहं  को पड़ा है, अब   तगड़ा तमाचा,
           जनतंत्र में जनता की होती यही भाषा."