Saturday, September 5, 2020

अदभुत् व्यक्तित्व के धनी डा. एस. राधाकृष्णन


        आज भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति  एवं द्वितीय राष्ट्रपति सर्वपल्ली डा राधाकृष्णन का जन्म दिवस है जिसे 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाया जाता है,  
         वे एक उच्चकोटि के शिक्षाविद ,विद्वान एवं दार्शनिक  ही नहीं थे वरन्  एक प्रभावी व सक्षम राजनयिक थे उन्होंने राष्ट्रपति पद (Indian Presidency) को एक नई गरिमा प्रदान की .उनके समय में कई नई परम्परायें स्थापित हुयीं जो पहले नहीं  थीं. जैसे-  प्रधानमन्त्री द्वारा  विदेश यात्रा के बाद राष्ट्रपति को रिपोर्ट करने की परिपाटी, राष्ट्रपति द्वारा जनता की शिकायतें सुनना.
          उनका जन्म 1888 में दक्षिण भारत के तिरूतनी नामक ग्राम  में हुआ था। वे बचपन से ही मेधावी थे। उन्होंने दर्शन शास्त्र में एम.ए. की उपाधि ली और सन् 1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक नियुक्त हो गए। 
        डॉ. राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शनशास्त्र से परिचित कराया। 'शिकागो विश्वविद्यालय' ने उन्हें 'तुलनात्मक धर्मशास्त्र ' पर  व्या्ख्यान  हेतु आमंत्रित किया था l वे 'भारतीय दर्शन शास्त्र परिषद्‍ ' के अध्यक्ष भी रहे। कई भारतीय विश्वविद्यालयों की भांति कोलंबो एवं लंदन विश्वविद्यालय ने भी अपनी-अपनी मानद उपाधियों से उन्हें सम्मानित किया।
         महत्वपूर्ण  उपलब्धियों के बाद भी वे अत्यंत सरल व सहज रहते थेl उनका सदैव अपने विद्यार्थियों और संपर्क में आए लोगों में राष्ट्रीय चेतना बढ़ाने की ओर रहता था।  अंग्रेजी सरकार ने उन्हें ' सर 'की उपाधि से सम्मानित किया क्योंकि वे छल कपट से कोसों दूर थे। अहंकार तो उनमें नाम मात्र भी न था। 
        स्वतंत्रता के बाद भी डॉ. राधाकृष्णन जी ने अनेक महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। वे पेरिस में संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था 'यूनेस्को'  की कार्यसमि‍ति के अध्यक्ष भी बनाए गए। 
        सन् 1949 से सन् 1952 तक डॉ. राधाकृष्णन सोवियत संघ की राजधानी 'मास्को' में भारत के राजदूत पद पर रहे। भारत रूस की मित्रता बढ़ाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा । वहाँ का तानाशाह  प्रधान मंत्री स्टालिन उनका बहुत सम्मान करता थाl
        सन् 1952 में वे भारत के उपराष्ट्रपति बनाए गए। इस महान दार्शनिक शिक्षाविद और लेखक को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ने देश का सर्वोच्च अलंकरण 'भारत रत्न ' प्रदान किया। 
       13 मई, 1962 को डॉ. राधाकृष्णन भारत के द्वितीय राष्ट्रपति बने। सन् 1967 तक राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने देश की अमूल्य सेवा की। 
       डॉ. राधाकृष्णन एक महान दार्शनिक, शिक्षाविद और लेखक थे। वे जीवनभर अपने आपको शिक्षक मानते रहे। उन्होंने अपना जन्मदिवस शिक्षकों के लिए समर्पित किया। इसलिए 5 सितंबर सारे भारत में' शिक्षक दिवस' के रूप में मनाया जाता है। 
        एक विद्वान,दार्शनिक एवं राजनयिक के रूप में वे विश्व में आदर के पात्र थे.ऐसे अलौकिक व्यक्तित्व को कोटि कोटि नमन।
                       🙏🙏🙏

Tuesday, September 1, 2020

उत्तर भारत का लोक पर्व- बुढ़वा मंगल


            उत्तर भारत में भाद्रपद ( भादों )माह के अंतिम मंगलवार को 'बुढ़वा मंगल ' का पर्व मनाया जाता है। इस द‍िन भगवान शिव के अवतार माने जाने वाले हनुमान जी के दर्शन करना शुभ माना जाता है। आज यह पर्व मनाया जा रहा हैl
           जन विश्वास है कि 'बुढ़वा मंगल' पर हनुमान जी की व‍िध‍िवत पूजा करने से सारे कष्‍ट म‍िट जाते हैं। ब‍िगड़े हुए काम बन जाते हैं।  पवनपुत्र   हनुमान जी के दर्शन मात्र से हर मनोकामना पूरी हो जाती है।
           माना जाता है कि  'बुढ़वा मंगल' के द‍िन बजरंग बली जी को स‍िंदूर चढ़ाना और उनके सामने 'बुढ़वानल स्तोत्र' का पाठ करना कल्याणकारी होता है। 

'बुढ़वा मंगल'  से संबंधित जनश्रुतियाँ (कथायें) 
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           'बुढ़वा मंगल'  से संबंधित पहली कथा त्रेता युग में 'रामायण काल' से संबंधितहै। मान्‍यता है कि‍ आज ही के द‍िन अर्थात् भाद्रपद के आख‍िरी मंगलवार को लंका पहुँचने पर रावण के आदेश से हनुमान जी की पूंछ में आग लगाई  गयी थी। 
           पूँछ में आग लगने के  बाद हनुमान जी ने अपना व‍िकराल रूप धारण क‍िया और रावण की लंका जलाने के ल‍िए अपनी पूंछ में 'बड़वानल' (अग्रि) पैदा की थी ज‍िस कारण इस माह के आख‍िरी मंगलवार को
 ' बुढ़वा मंगल' नाम म‍िला। इस दि‍न केवल रावण की लंका ही नहीं जली थी  रावण के घमंड के चूर होने का आरंभ हुआ था। 
           'बुढ़वा मंगल' से संबंधित दूसरी कथा 'द्वापर युग' में महाभारत के समय की है.  कहते हैं कि पाँच पांडवों में द्वितीय  कुंती पुत्र महाबलशाली  'भीम' को अपनी शक्ति पर बड़ा अभिमान हो गया था। उनको  घमंड तोड़ने के लिए रूद्र अवतार 'भगवान हनुमान' ने एक बूढ़े बंदर का रूप रखा था।
           महाबली 'भीम' एक बार कहीं जा रहे थे तो एक बूढ़े वानर का रूप  रख 'हनुमान जी'  उनके रास्ते के बीच में लेट गये l उस दिन भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष का  अंतिम मंगलवार था। जैसे ही ' भीम'  उस पथ से निकले उन्हें रास्ते में एक वृद्ध बंदर लेटा हुआ दिखा। उन्होंने अपने बल के अभिमान  में आकर  तिरस्कार की भावना से उस वृद्ध  वानर से कहा ," रास्ते से अपनी पूँछ हटाओ  वानर!" इस पर वानर के रूप में विराजमान  हनुमान जी ने उत्तर दिया , "तुम 10000 हाथियों का बल रखते हो भीम! खुद ही इस पूँछ को हटा लो। "   क्रोध के आवेश में भीम आगे बढ़े और उन्होंने वानर की पूँछ उठाने की पुरजोर चेष्टा की ,पर वे उसे हिला तक नहीं  सके। 
          भीम ने  विस्मित होते हुये तत्काल श्री कृष्ण को याद किया जिससे से उन्हें ज्ञान हुआ कि ये   वानर साधारण वानर नहीं, महाशक्तिशाली हनुमान जी हैं।  उन्होंने तत्काल हनुमान जी से क्षमा माँगी l हनुमान जी ने उन्हें विजय का आशीर्वाद दिया l 
          महाभारत काल से ही  इस दिन (मंगलवार ) को 'बुढ़वा मंगल' के रूप में मनाया जाता है।