Friday, December 18, 2020

शहादत दिवस पर अमर बलिदानियों को शत् शत् नमन


'काकोरी -काण्ड'  के शहीदों को कोटि कोटि नमन
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             भारतीय स्वाधीनता संघर्ष में क्रान्तिकारियों का योगदान महत्वपूर्ण रहा है. '  काकोरी कांड'  क्रांतिकारियों द्वारा ब्रिटिश शासन  के विरुद्ध  युद्ध छेड़ने  के उद्देश्य से हथियार खरीदने के लिये ब्रिटिश सरकार का ही खजाना लूटने का एक प्रयास था. यह प्रयास 9 अगस्त 1925 को  राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में हिंदुस्तान रिपब्लिकन ऐसोशियेशन के क्रांतिकारियों ने  लखनऊ के समीप काकोरी नामक स्थान पर  सरकारी खजाना ले जा रही ट्रेन को लूट कर संपादित किया. इस ट्रेन डकैती में जर्मनी के बने चार माउज़र पिस्तौल काम में लाये गये थे।इन पिस्तौलों की विशेषता यह थी कि इनमें बट के पीछे लकड़ी का बना एक और कुन्दा लगाकर रायफल की तरह उपयोग किया जा सकता था।
              क्रान्तिकारियों द्वारा चलाए जा रहे 'स्वतन्त्रता आन्दोलन ' को गति देने के लिये धन की तत्काल व्यवस्था हेतु शाहजहाँपुर में हुई बैठक के दौरान हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोशियेशन  की बैठक में  अध्यक्ष  क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के सुझाव पर  अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनायी  गयी थी। इस योजना  के अनुसार क्रांतिकारी दल के ही एक प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने 9 अगस्त 1925 को लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी "आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन" को चेन खींच कर रोका और क्रान्तिकारी पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफाक उल्ला खाँ, पण्डित चन्द्रशेखर आज़ाद व 60 अन्य क्रांतिकारियों की सहायता से धावा बोलते हुए सरकारी खजाना लूट लिया।
          अंग्रेजी सरकार ने  ' हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन ' के कुल   400क्रान्तिकारियों पर सरकार   के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने व यात्रियों की हत्या करने का मुकदमा चलाया जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह को मृत्यु-दण्ड (फाँसी की सजा) सुनायी गयी।  17  दिसंबर1927 को राजेंद्र नाथ लाहिड़ी  एवं 19 दिसंबर 1927 को पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह  फाँसी दी गई  .
           इस प्रकरण में 16 अन्य क्रान्तिकारियों को कम से कम 4 वर्ष की सजा से लेकर अधिकतम काला पानी (आजीवन कारावास) तक का दण्ड दिया गया था।
          काकोरी-काण्ड  में भाग लेने वाले के प्रमुख क्रान्तिकारी  थे - पं.राम प्रसाद 'बिस्मिल' ,अशफाक उल्ला खाँ, योगेशचन्द्र चटर्जी, प्रेमकृष्ण खन्ना, मुकुन्दी लाल, विष्णुशरण दुब्लिश, सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य, रामकृष्ण खत्री, मन्मथनाथ गुप्त, राजकुमार सिन्हा, ठाकुर रोशानसिंह, राजेन्द्रनाथ लाहिडी, गोविन्दचरण कार, रामदुलारे त्रिवेदी, रामनाथ पाण्डेय, शचीन्द्रनाथ सान्याल,भूपेन्द्रनाथ सान्याल एवं प्रणवेशकुमार चटर्जी.
          इन (राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह) क्रांतिकारियों के बलिदान दिवस पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि.
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Monday, December 14, 2020

तुम्हीं सो गये दास्ताँ कहते कहते......

तुम्हीं सो गये दास्ताँ कहते कहते....... 
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       बुंदेलखंड में  समाज विज्ञान के उदभट् विद्वान, एक कुशल वक्ता, प्रगतिशील लेखक एवं साहित्यकार ,दयानंद वैदिक कालेज उरई के राजनीति विज्ञान के रिटायर्ड प्रोफेसर डा. जय दयाल सक्सेना  का दो दिन पूर्व   95 वर्ष की आयु में  उरई में नया रामनगर स्थित आवास पर निधन हो गया. 
        मेरे लिये  पितृतुल्य व्यक्तित्व के महाप्रयाण का यह समाचार मन को अत्यंत दुःखी करने वाला था.  वे मेरे पिताश्री (स्व. के. डी.  सक्सेना) के मित्र  थे. स्नातक व परास्नातक कक्षाओं में मुझे उनसे शिक्षा ग्रहण करने का अवसर मिला.  दयानंद वैदिक कालेज, उरई के राजनीति विज्ञान विभाग में उनके साथ अध्यापन करने का भी सुअवसर भी मुझे मिला. उनके रिटायरमेंट के बाद भी उनका स्नेह एवं सान्निध्य मुझे सदैव मिलता रहा.
         एक शिक्षक के रूप में वे अतुलनीय थे. उनकी वैज्ञानिक सोच, दुर्लभ तार्किक क्षमता एवं छात्रों के साथ सहज संवाद की शैली उनके व्यक्तित्व को विलक्षण बना देती थी, जिसकी छाप उनके शिष्यों के मन मस्तिष्क पर अमिट को जाती थी.  विनोद पूर्ण शैली में व्यक्त उनका चुटीला अंदाज विलक्षण था, जिसे उनके संपर्क में आये व्यक्ति कभी भूल नहीं सकते.
         उनका व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था. गौर वर्ण, छरहरी काया ,सदैव सीधे सिर उठा कर चलने का उनका अंदाज , चेहरे पर ओज एवं आत्मविश्वास   तथा सादगी पूर्ण परिधान उनके व्यक्तित्व को  एक अनोखी गरिमा प्रदान करते थे. छात्रों एवं शिक्षकों के बीच वे अत्यंत लोकप्रिय एवं सम्मान के पात्र थे.
        डा. सक्सेना  मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित थे. वैज्ञानिक सोच उनके चिंतन एवं कर्म में सदैव परिलक्षित होती थी. पर वे  विचारधारा की कट्टरता से सदैव दूर रहे जिसके कारण उनका अक्सर अपने कम्युनिस्ट साथियों से मतभेद हो जाता था. एक मौलिक चिंतक के रूप में उनकी ख्याति थी. दक्षिणपंथी विचारधारा के लोग भी उनकी बातों को गौर से सुनते थे और उन्हें सम्मान देते थे. वे एक संघर्षशील शिक्षक नेता भी रहे.  बिना किसी लाग- लपेट के दो टूक बात कहना उनकी विशेषता थी.
           उनका प्राचीन राजनीति पर विशेष शोध कार्य था. महाभारत पर उन्होंने पी.एच. डी.  की थी.  उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी जिनमें उनकी पुस्तक 'पुराकथाओं का वैज्ञानिक विश्लेषण' बहुत लोकप्रिय एवं महत्वपूर्ण थी. उनका लेखन प्रगतिशील एवं अंधविश्वासों पर कुठाराघात करने वाला था. उन्होंने कई नाटक भी लिखे जिनका मंचन नगर की सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा कई बार किया गया.
             उनके साथ बीते पलों की स्मृतियाँ इतनी मधुर यादगार एवं प्रचुर मात्रा में हैं कि उन पर अलग से एक पुस्तक लिखी जा सकती है. 
             वे एक जीवंत व्यक्तित्व थे.  सामाजिक व राजनीतिक समास्याओं पर उनका चिंतन बड़ा ही स्पष्ट, परिपक्व एवं स्वीकार्य होता था. अंत समय तक  उनकी मानसिक सबलता के लोग कायल रहे.
              ऐसे महान व्यक्तित्व का साहचर्य पाना एवं उन्हें शिक्षक के रूप में पाना सौभाग्य की बात होती है और मै उन सौभाग्यशाली व्यक्तियों में से एक हूँ.  उनके निधन से मुझे ऐसा लगता है कि मैने अपना संरक्षक खो दिया. 
             उनको मेरी विनम्र श्रद्धांजलि.. .....  सदा बहुत याद आयेगें गुरुवर आप! 
                        🙏🙏🙏