इस समय प्रकृति की छटा अनुपम होती है.  सर्वत्र हरियाली छाई रहती है.बारिश की फुहार एवं पपीहे की  मानव के मन को प्रसन्न कर देती है. 
            इस पर्व का सुहागिन  महिलाओं के लिए विशेष महत्व होता है. हरियाली तीज के दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार कर अपने पति की लम्बी उम्र और सुख समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं. 
            सौंदर्य और प्रेम के इस पर्व को 'श्रावणी तीज' भी कहते हैं. शिव पुराण के अनुसार हरियाली तीज के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था इसलिए सुहागन स्त्रियों के लिए इस व्रत की बड़ी महिमा है. आज के दिन महिलाएं श्रद्धापूर्वक भगवान शिव-पार्वती की पूजा करती हैं. 
             नव विवाहित  युवतियों के लिए विवाह के बाद पड़ने वाले पहले सावन के त्यौहार का विशेष महत्व होता है. इस  अव है कि इस अवसर पर लड़कियों को ससुराल से मायके बुला लिया जाता है.
            'हरियाली तीज 'के दिन मेहंदी लगाने का विशेष महत्व है. महिलायें पैरों में आलता भी लगाती हैं. इसे महिलाओं की सुहाग की निशानी माना जाता है. अच्छे वर की मनोकामना की पूर्ति के लिए इस दिन कुंवारी कन्याएं भी इस दिन व्रत रखती हैं.
            'हरियाली तीज' का पौराणिक महत्व भी है. 'शिव पुराण' के अनुसार इसी दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था. पौराणिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था. इस कड़ी तपस्या और 108वें जन्म के बाद माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया. मान्यता है कि श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को ही भगवान शंकर ने माता पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था. तभी से भगवान शिव और माता पार्वती ने इस दिन को सुहागन स्त्रियों के लिए सौभाग्य का दिन होने का वरदान दिया.
            महिलायें इस पर्व को बड़े हर्ष, उल्लास और श्रद्धा के साथ मनातीं हैं.