'काकोरी -काण्ड' के शहीदों को कोटि कोटि नमन
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भारतीय स्वाधीनता संघर्ष में क्रान्तिकारियों का योगदान महत्वपूर्ण रहा है. ' काकोरी कांड' क्रांतिकारियों द्वारा ब्रिटिश शासन के विरुद्ध युद्ध छेड़ने के उद्देश्य से हथियार खरीदने के लिये ब्रिटिश सरकार का ही खजाना लूटने का एक प्रयास था. यह प्रयास 9 अगस्त 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में हिंदुस्तान रिपब्लिकन ऐसोशियेशन के क्रांतिकारियों ने लखनऊ के समीप काकोरी नामक स्थान पर सरकारी खजाना ले जा रही ट्रेन को लूट कर संपादित किया. इस ट्रेन डकैती में जर्मनी के बने चार माउज़र पिस्तौल काम में लाये गये थे।इन पिस्तौलों की विशेषता यह थी कि इनमें बट के पीछे लकड़ी का बना एक और कुन्दा लगाकर रायफल की तरह उपयोग किया जा सकता था।
क्रान्तिकारियों द्वारा चलाए जा रहे 'स्वतन्त्रता आन्दोलन ' को गति देने के लिये धन की तत्काल व्यवस्था हेतु शाहजहाँपुर में हुई बैठक के दौरान हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोशियेशन की बैठक में अध्यक्ष क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के सुझाव पर अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनायी गयी थी। इस योजना के अनुसार क्रांतिकारी दल के ही एक प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने 9 अगस्त 1925 को लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी "आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन" को चेन खींच कर रोका और क्रान्तिकारी पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफाक उल्ला खाँ, पण्डित चन्द्रशेखर आज़ाद व 60 अन्य क्रांतिकारियों की सहायता से धावा बोलते हुए सरकारी खजाना लूट लिया।
अंग्रेजी सरकार ने ' हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन ' के कुल 400क्रान्तिकारियों पर सरकार के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने व यात्रियों की हत्या करने का मुकदमा चलाया जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह को मृत्यु-दण्ड (फाँसी की सजा) सुनायी गयी। 17 दिसंबर1927 को राजेंद्र नाथ लाहिड़ी एवं 19 दिसंबर 1927 को पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह फाँसी दी गई .
इस प्रकरण में 16 अन्य क्रान्तिकारियों को कम से कम 4 वर्ष की सजा से लेकर अधिकतम काला पानी (आजीवन कारावास) तक का दण्ड दिया गया था।
काकोरी-काण्ड में भाग लेने वाले के प्रमुख क्रान्तिकारी थे - पं.राम प्रसाद 'बिस्मिल' ,अशफाक उल्ला खाँ, योगेशचन्द्र चटर्जी, प्रेमकृष्ण खन्ना, मुकुन्दी लाल, विष्णुशरण दुब्लिश, सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य, रामकृष्ण खत्री, मन्मथनाथ गुप्त, राजकुमार सिन्हा, ठाकुर रोशानसिंह, राजेन्द्रनाथ लाहिडी, गोविन्दचरण कार, रामदुलारे त्रिवेदी, रामनाथ पाण्डेय, शचीन्द्रनाथ सान्याल,भूपेन्द्रनाथ सान्याल एवं प्रणवेशकुमार चटर्जी.
इन (राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह) क्रांतिकारियों के बलिदान दिवस पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि.
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Friday, December 18, 2020
शहादत दिवस पर अमर बलिदानियों को शत् शत् नमन
Monday, December 14, 2020
तुम्हीं सो गये दास्ताँ कहते कहते......
Saturday, October 24, 2020
प्रथम स्वाधीनता संग्राम के वयोवृद्ध स्वाधीनता सेनानी बहादुर शाह ज़फ़र
Wednesday, October 21, 2020
स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार ( आज़ाद हिन्द सरकार) का स्थापना दिवस
Sunday, October 11, 2020
विश्व में चुनौतियों व असुरक्षा से जूझती बालिकायें
Wednesday, October 7, 2020
क्रांतिकारी आंदोलन की दीपशिखा -दुर्गा भाभी
आज भारतीय स्वाधीनता संघर्ष में क्रांतिकारी संगठन 'हिंदुस्तान सोस्लिस्ट रिपब्लिक आर्मी के सक्रिय क्रांतिकारी भगवती चरण बोहरा की धर्मपत्नी 'दुर्गा भाभी ' के नाम से विख्यात क्रांतिकारी दुर्गावती की जयंती है।
उनका जन्म सात अक्टूबर 1907 को उ. प्र. के शहजादपुर गांव में पंडित बांके बिहारी के घर हुआ था. पिता ने संन्यास ले लिया था जिस कारण दस साल की उम्र में ही उनका विवाह श्रीभगवती चरण वोहरा से हो गया जो क्रांतिकारी संगठन 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक आर्मीी' के साथ मिलकर दुर्गा भाभी ने भी आज़ादी की लड़ाई के लिए काम करना शुरू कर दिया. वोहरा जी की पत्नी होने की वजह से क्रांतिकारी साथी उन्हें दुर्गा भाभी कहते थे जो उनकी पहचान बन गया.दुर्गा भाभी को पिस्तौल चलाने में महारथ हासिल थी. वे बम बनाना भी जानती थीं.जब उनके बेटे सचिन्द्र का जन्म हुआ, तब उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों से दूरी बना ली.
लाहौर में ब्रिटिश पुलिस अफसर जॉन सौन्डर्स की हत्या के आरोप में भगत सिंह और राजगुरु को अंग्रेज सरकार ढूंढ रही थी. लाहौर के चप्पे-चप्पे पर जांच जारी थी. ट्रेन के स्टेशनों पर पुलिस तैनात थी. जो भी नौजवान लाहौर छोड़कर निकल रहे थे, उन पर CID की कड़ी नज़र थी.
राजगुरु ने लाहौर से बाहर निकलने की योजना बना कर दुर्गा भाभी से सहायता माँगी. दुर्गा भाभी अपने बेटे के जन्म के बाद से क्रांतिकारी गतिविधियों से थोड़ी दूर थीं. लेकिन जब उन्हें पता चला कि भगत सिंह और राजगुरु को उनकी ज़रूरत है, वे तुरंत तैयार हो गईं.
जाने से एक रात पहले राजगुरु एक नौजवान को लेकर दुर्गा भाभी से मिलने पहुंचे. दुर्गा भाभी इस नौजवान को पहचान नहीं पायीं. राजगुरु ने उन्हें बताया, ये सरदार भगत सिंह हैं. अंग्रेजों से अपनी पहचान छुपाने के लिए भगत सिंह ने अपनी दाढ़ी हटा दी थी. सिर पर पगड़ी के स्थान पर हैट पहन रखा था. दुर्गा भाभी देखतीं रह गईं.
अगले दिन सुबह उन्होंने लाहौर से कलकत्ता जाने वाली ट्रेन के तीन टिकट लिए. भगत सिंह और उनकी ‘पत्नी’ बनीं दुर्गा भाभी अपने बच्चे के साथ पहले दर्जे में बैठने वाले थे. उनके ‘नौकर’ बने राजगुरु के लिए तीसरे दर्जे का टिकट कटाया गया. स्टेशन पर पहुंचते हुए सबके दिल में धुकधुकी लगी हुई थी. कि कहीं कोई पहचान न ले. लेकिन अंग्रेज तो एक पगड़ीधारी सिख को ढूंढ रहे थे. अंग्रेजी सूट-बूट और हैट में सज़ा parivaar सहित नौजवान उनकी नज़रों में आया ही नहीं. किसी को कोई शक नहीं हुआ.
स्टेशन के अंदर जाकर उन्होंने कानपुर की ट्रेन ली, फिर लखनऊ में ट्रेन बदल ली, क्योंकि लाहौर से आने वाली सीधी ट्रेनों में भी चेकिंग जारी थी. लखनऊ में राजगुरु अलग होकर बनारस चले गए. वहीं भगत सिंह, दुर्गा भाभी, और उनका छोटा बच्चा हावड़ा के लिए निकल गए. कलकत्ता में ही भगत सिंह की वो मशहूर तस्वीर ली गई थी जिसमें उन्होंने हैट पहन रखा है.
इस तरह दुर्गा भाभी भगत सिंह को अंग्रेजों की नाक के नीचे से निकाल लाईं और बाद में वे लाहौर लौट आई थीं.
जब 1929 में भगत सिंह और राजगुरु ने आत्म समर्पण किया, तब उन्होंने अपनी सारी बचत उनके ट्रायल में लगा दी थी. गहने भी बेच दिए थे. और उस समय तीन हजार रुपयों का इंतजाम किया था. 1930 में उनके पति भगवती चरण वोहरा की बम बनाते हुए विस्फोट में मौत हो गई. उसके बाद वे एक शिक्षिका के रूप में कार्य करती रहीं.
स्वतंत्रता के बाद उन्होंने गाज़ियाबाद में रहना शुरू किया. मारिया मोंटेसरी ( जिन्होंने मोंटेसरी स्कूलों की शुरुआत की) से ट्रेनिंग लेकर उन्होंने लखनऊ में मोंटेसरी स्कूल खोला. इस स्कूल को देखने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी आए थे. 15 अक्टूबर 1999 को क्रांतिकारी आंदोलन की दीपशिखा ' दुर्गा भाभी ' का निधन हो गया. इस महान हुतात्मा को विनम्र श्रद्धांजलि.
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Monday, October 5, 2020
अंतर्राष्ट्रीय (विश्व) शिक्षक दिवस
Saturday, September 5, 2020
अदभुत् व्यक्तित्व के धनी डा. एस. राधाकृष्णन
Tuesday, September 1, 2020
उत्तर भारत का लोक पर्व- बुढ़वा मंगल
Saturday, August 29, 2020
असाधारण प्रतिभा के धनी मेजर ध्यान चंद
Wednesday, August 26, 2020
लोक पर्व 'राधा अष्टमी'
Friday, August 21, 2020
'वरिष्ठ नागरिक दिवस ' और हमारे दायित्व
आज ' विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस ' है. इसे प्रति वर्ष 21 अगस्त को मनाया जाता है. इस दिवस को मनाने की शुरुआत संयुक्त राज्य अमेरिका (U S A) में हुई थी और अब विश्व के अधिकतर देशों में इसे मनाया जाता है.
1935 में अमेरिका के राष्ट्रपति फ्रेंक्लिन रोसवैल्ट ने 'सामाजिक सुरक्षा अधिनियम ' पर हस्ताक्षर किये थे , जिसके अनुसार ' नेशनल सीनियर सिटीजन डे' 14 अगस्त को मनाया जाता था. 1988 तक इसे 14 अगस्त को ही सेलिब्रेट किया गया.
1988 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने 21 अगस्त को 'नेशनल सीनियर सिटीजन डे' घोषित किया. इसका मुख्य उद्देश्य अमेरिका में उन वरिष्ठ नागरिकों को, जो अपने समुदायों में सकारात्मक योगदान देते है, सम्मान देना है.
कोई भी देश क्यूँ न हो, हर जगह बुजुर्गों को आदर देना सामाजिक संस्कृति है. भारतीय संस्कृति में तो बुजुर्गों को परिवार में सदा से ही महत्व मिलता रहा है. उनसे पूछे बिना घर में कोई कार्य नहीं होता था. संयुक्त परिवारों में बुजुर्गो अनुभव और सबका साथ सामाजिक जीवन को सुगम बना देता था. बड़ों की छाँव में बच्चे कब बड़े हो जाते थे, माता पिता को पता ही नहीं चलता था. बुजुर्गों का जीवन भी हँसी खुशी से कट जाता था.
अमेरिका व पश्चिमी देशों में बुजुर्गों को वृद्धाश्रम में रखने की परंपरा पड़ी. जिसका प्रभाव अब भारत में भी दिख रहा है. संयुक्त परिवार लगभग टूट ही चुके हैं. जीविका के लिये संघर्ष बढ़ा है. उपभोक्तावाद ने लोगों की महत्वाकांक्षाओं में इजाफा किया है. धन प्राप्ति की होड़ ने परंपरागत मूल्यों को समाप्त कर दिया है. आज एकल व स्वकेंद्रित परिवारों का युग है जिसमें बुजुर्गों की भावनाओं को समझने का किसी के पास समय ही नहीं है. बच्चे अपने जॉब व लाइफ में इतने व्यस्त होते हैं कि परिवार के बुजुर्गों पर ध्यान देने का उन्हें समय ही नहीं मिलता. जिसके कारण वरिष्ठ लोग या तो घर में अकेले रहते है, या साथ पाने के लिए वृद्धाश्रम चले जाते है. कुछ ऐसेे भी परिवार होते हैं जहाँ बच्चों को बड़े बोझ लगने लगते हैं.
'सीनियर सिटीजन डेे' मनाने से लोगों को एक दिन मिल जाता है अपने बड़ों को याद करने और उन पर ध्यान का. इसके साथ ही बुज़ुर्ग वर्ग को उनके परिवार के साथ समय बिताने का एक दिन मिल जाता है.
वृद्धावस्था में औषधि से अधिक अपनों के साथ की जरूरत महसूस होती है. बुजुर्ग बस यही चाहते है कि उनको सम्मान मिले, उनको वह महत्व मिले जिसके वो अधिकारी है. उम्र के इस दौर में जब शरीर भी उनका साथ नहीं देता है, ऐसे में उनको मानसिक संतुष्टि उनके लिए संजीवनी होती है. यदि उनसे, उनके जीवन के कुछ पुराने किस्से पूछें, उनके गर्व क्षण के बारे में उनसे पूछे, उनकी बातों को ध्यान से सुन उनकी सराहना करें. उनकी पसंदीदा जगह पर ले जाएँ, उनके जीवन के व्यक्तिगत पलों को जानने में दिलचस्पी दिखायें, तो उन्हें तो अच्छा लगेगा ही साथ ही आप भी समझ पायेंगे कि रिश्तों को कैसे निभाया जाता है, रिश्ते में मजबूती कैसे लाई जाती है.
वरिष्ठों के लंबे अनुभवों हम बहुत सीख सकते हैं. यदि कभी वृद्धाश्रम जाकर सभी बुजुर्गों के साथ समय बितायें और किसी मनोरंजन कार्यक्रम का आयोजन करें, तो आप पायेंगे कि बुजुर्गों तो आनंदित होंगे ही, स्वयं को भी बहुत आत्म संतुष्टि मिलेगी. वरिष्ठ जनों के लिए एक ' फिजिकल टच' औषधि की भाँति होता है. उन्हें गले लगायें, इससे उनका तनाव कम होगा, साथ ही उनके अंदर आत्मविश्वास जागेगा.
ध्यान रखें कि बुजुर्गों को अपने नाती- पोतों (grantchildren) के साथ समय बिताना बहुत ही प्रिय होता है. आज की युवा पीढ़ी को इस बात को समझना चाहिये. यदि आपके परिवार के बुजुर्ग आपसे दूर हैं,तो समय निकाल कर ऐसे अवसर परिवार के बड़ों को उपलब्ध कराते रहना करना चाहिये. आज कल तो वीडियो काल की सुविधा हो गयी है.
यदि आपके परिवार में कोई वरिष्ठ नहीं है, तो अपने घर के आस-पास , किसी पार्क में किसी भी बुजुर्ग से दोस्ती करें, उनके लिए आपकी एक मुस्कुराहट ही पर्याप्त होगी. कभी बिना बताये अपने किसी बुजुर्ग अध्यापक या परिचित से मिलने जायें. आपको अचानक देखकर उनकी प्रसन्नता का आप अनुमान नहीं लगा सकेंगे.
केवल आज के दिन ही नहीं यदि बुजुर्गों के प्रति परवाह को आप सामाजिक दायित्व समझना शुरू कर दें, यह आपको प्रसन्नता एवं आपके व्यक्तित्व एक गरिमा प्रदान करेगा. केवल युवा पीढ़ी को ही नहीं, बल्कि जो वरिष्ठ जनों की श्रेणी में तुरंत शामिल हुये हैं, उन्हें भी अपने वरिष्ठतम जनों के प्रति यही व्यवहार करने के लिए कार्य करना चाहिये.
सभी वर्तमान और भावी वरिष्ठों को ढेरों शुभकामनाएं.
Monday, August 17, 2020
शास्त्रीय संगीत के सरताज पं जसराज
Thursday, July 23, 2020
आज के दिन दो फूल खिले थे, जिनका फल आज़ाद हिंदुस्तान
लोक पर्व 'हरियाली तीज'
Monday, July 20, 2020
दुर्दांत अपराधियों के एनकाउंटर कितने उचित?
Sunday, July 19, 2020
गीतों के राजकुमार- स्व. गोपाल दास ' नीरज जी'
Friday, July 3, 2020
अलविदा सरोज खान!
Wednesday, July 1, 2020
आइये सही मायनों में लोकतांत्रिक बनें
हम भारतीय 'लोकतंत्र' को अब तक सही अर्थों में आत्मसात नहीं कर सके हैं. हम सदियों से राजतंत्रीय व्यवस्था के आदी रहे हैं और शासक में देवत्व व उसे नायक के रूप में देखने की हमारी आदत रही है. लोकतन्त्र हमारे मनोविग्यान के अनुकूल नहीं हैं. जिससे हम खुश होते हैं उसके भक्त हो जाते हैं और उसके खिलाफ़ एक शब्द भी नहीं सुनते और जब नाराज हो जाते हैं तो उसी hero को zero बनाने में देर नहीं लगती. इंदिरा गांधी,राजीव गॉधी और विश्वनाथ प्रसाद सिंह ने जनता के इन दोनों रूपो को झेला था.
लोकतंत्र केवल चुनाव में वोट डालना ,चुनाव लड़ना व चुनाव मे जीत कर सरकार बनाना ही नहीं है.लोकतंत्र में आलोचना पर ध्यान देकर सरकार को अपनी कमियों को दूर करने का अवसर मिलता है.सतत् जागरूकता ही लोकतंत्र की कुंजी है. इसके लिये विवेकपूर्ण जनमत का निर्माण होना अत्यन्त आवश्यक है.
आज भारत की विश्व में जो स्वीकार्यता है वह केवल मोदी जी के तीन वर्ष के शासनकाल में नहीं बनी है.कांग्रेस के लंबे शासन का और अटल जी के कार्यकाल का भी इसम महत्वपूर्ण योगदान है.सुषमा स्वराज जी ने हाल ही में UNO में अपने भाषण में बड़ी ईमानदारी से इसे स्वीकार किया भी है.
लोकतंत्र एक स्वयंसुधारक व्यवस्था है .UK, जिसे लोकतंत्र का घर कहा जाता है, में सरकार भी संप्रभु (crown )की कहलाती है ,और विरोधी दल ( shadow cabinet) भी crown का.
आलोचना व विरोध सरकार को अपनी कमियों में सुधार का अवसर प्रदान करता है और कभी- कभी जनमत की इच्छा को भी अभिव्यक्त करता है जिसके सामने सरकार को नतमस्तक होना पड़ता है.प्रसिद्ध राजनीतिक विचारक गिलक्राइस्ट( Gilchrist) का कथन याद आ रहा है ,
"प्रत्येक वैधानिक संप्रभु के पीछे एक राजनैतिक संप्रभु होता है, जिसके सम्मुख वैधानिक संप्रभु को नतमस्तक होना पड़ता है ."
इस राजनैतिक संप्रभु में विरोधी दल, दबाव समूह, हित समूह, trade unions, व्यापारिक समूह आते हैं.
विपक्ष तो आलोचना करता ही है. मनमोहन सिंह की सरकार के समय आधारकार्ड की अनिवार्यता, GST पर विरोध व संसद की कार्यवाही ठप्प करने का काम विरोधी दल भाजपा ने जिस प्रभावी ढंग से किया, वर्तमान विरोधी पक्ष तो उसका दशांश भी नहीं कर पाया. इन्हीं मोदी जी ने जी. एस. टी. व आधार कार्ड का मुखर विरोध किया था जिसके वीडियो भी सोशल मीडिया पर दिखाई दिये हैं.
सरकार में आने पर जिम्मेदारी बढ़ती है. राष्ट्रीय हित के हिसाब से नीतियॉ बनानी पड़ती है.नीतियों की आलोचना को भी सहन करना पड़ता है.
आज आम लोग महसूस कर रहे हैं कि शासन की नीतियॉ बडे व्यापारिक घराने के हित में अधिक हैं ,छोटे व्यापारियों,व आम लोगों के हित में कम . यदि लोग कार्टून व व्यंग्य के माध्यम से अपने आक्रोश की अभिव्यक्ति करते हैं,तो उसको खेल भावना से लेना चाहिये. आखिर आर. के.लक्ष्मण व बाल ठाकरे एक कार्टूनिस्ट के तौर पर ही तो लोकप्रिय रहे थे जिन्होने अपने समकालीन सभी राजनेताओं पर कार्टून बनाये थे और कोई भी बुरा नहीं मानता था.
आज मोदी जी के ऊपर जरा सी भी व्यंग्य उनके समर्थकों को सहन नहीं हो रहा है.एक कार्यक्रम में मेरे एक वरिष्ठ ने कहा कि प्रधानमंत्री सारे देश का होता है अत: उसकी आलोचना नहीं होनी चाहिये. वे यह भूल गये कि पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को विरोधीदलों ने क्या नहीं कहा, जबकि जिन घोटालों पर कांग्रेस को बदनामी मिली वे मनमोहन सिंह के काल में ही उजागर हुये थे और उनसे संबंधित लोगों पर कार्यवाही भी शुरू हो गयी थी. जब भारत में मोदी जी का राजतिलक हो रहा था उसी के आस-पास जापान में मनमोहन सिंह को विश्व का Best Primeminister of the World का सम्मान दिया जा रहा था.
मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि यह देश के प्रधानमंत्री का कर्तव्य है कि वह देश हित में काम करे. मोदी जी भी वही कर रहे हैं जो देश के पूर्व प्रधान मन्त्रियो ने किया. कई पूर्व प्रधान मन्त्री गठबंधन सरकार चला रहे थे जिसकी अपनी मजबूरियॉ या दबाव थे.पर जब कभी किसी प्रधानमंत्री को पूर्ण बहुमत मिला, उसकी कार्य प्रणाली अलग दिखी. यह बात इन्दिरा जी, अटल जी और मोदी जी की कार्य प्रणाली में दिखाई दी.
मोदी जी देश के ऐसे प्रधानमंत्री बने जिन्होने विश्व के अधिकांश देशों का दौरा किया और उन्हें भारत से जोडा. भारत के व्यापारिक हितो का संवर्धन हुआ. भारत की सुरक्षा को सुदृढ़ करने व सामरिक शक्ति बढ़ाने के प्रयास जारी हैं.
पर यहॉ मै एक बात महसूस कर रहा हूँ कि सबको ,विशेषकर अमेरिका को , साधने की कोशिश में हमने रूस जैसा मित्र खो दिया.
1971में पाकिस्तान युद्ध के समय अमेरिकी सॉतवें बेड़े की धमकी के जबाब में पूर्व सोवियत संघ ने भारत के समर्थन में युद्ध में कूदने की धमकी देकर अमेरिका को चेतावनी दी थी और अमेरिका को चुप होना पड़ा था .क्या आज चीन के आक्रमण करने की स्थिति में इस हद तक साथ देने वाला कोई विश्वसनीय मित्र आज हमारे पास है?
मित्रो! आज हमारे सामने आंतरिक व बाह्य अनेक चुनौतियॉ हैं. हमारा दायित्व यही होना चाहिये कि हम अंध समर्थन व अंध विरोध से मुक्त होकर देशहित में सकारात्मक दृष्टिकोण अपना कर निष्प होकर सही बात कहे , सही बात का समर्थन करें तथा नकारात्मक व गलत बातों का विरोध करें. तभी हम विवेकशील जनमत के निर्माण में अपना योगदान दे सकते हैं. सोशल मीडिया इसके लिये एक महत्वपूर्ण माध्यम सिद्ध हो सकता है.