Saturday, August 29, 2020

असाधारण प्रतिभा के धनी मेजर ध्यान चंद

         आज  'हॉकी के जादूगर ' के रूप में विश्व में विख्यात मेजर ध्यानचंद की जयंती है. मेजर ध्यान चंद  का जन्म 29 अगस्त 1905 को हुआ था.
            उनके जन्म दिवस को हमारे देश में ' राष्ट्रीय खेल दिवस' के रूप में मनाया जाता है.  खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए प्रति वर्ष सर्वोच्च खेल सम्मान ' राजीव गांधी खेल रत्न' पुरस्कार के अलावा 'अर्जुन' और 'द्रोणाचार्य' पुरस्कार भी दिए जाते हैं. इस बार COVID-19 महामारी के कारण  'वर्चुअल समारोह'  में राष्ट्रीय खेल पुरस्कार दिये जा रहे हैं.
             हाकी में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मेजर ध्यानचंद की शानदार ,  गौरव पूर्ण उपलब्धियाँ रही हैं .  लगातार तीन ओलंपिक (1928 एम्सटर्डम, 1932 लॉस एंजेलिस और 1936 बर्लिन) में भारत को हॉकी का स्वर्ण पदक दिलाने वाले ध्यानचंद की असाधारण प्रतिभा लोहा का हर कोई मानता रहा.
            ' बर्लिन ओलंपिक' के हॉकी का फाइनल भारत और जर्मनी के बीच 14 अगस्त 1936 को खेला जाना था. लेकिन उस दिन लगातार बारिश की वजह से मैच अगले दिन 15 अगस्त को खेला गया. बर्लिन के हॉकी स्टेडियम में उस दिन 40 हजार दर्शकों के बीच जर्मन तानाशाह शासक 'हिटलर 'भी उपस्थित था. हाफ टाइम तक भारत एक गोल से आगे था. इसके बाद ध्यानचंद ने अपने स्पाइक वाले जूते निकाले और खाली पांव कमाल की हॉकी खेली. इसके बाद, तो भारत ने एक के बाद एक कई गोल दागे.
             1936 के बर्लिन ओलंपिक में उनके साथ खेले और बाद में पाकिस्तान के कप्तान बने आईएनएस दारा ने एक संस्मरण में लिखा- छह गोल खाने के बाद जर्मन काफी खराब हॉकी खेलने लगे. उनके गोलकीपर टिटो वार्नहोल्ज की हॉकी स्टिक ध्यानचंद के मुंह पर इतनी जोर से लगी कि उनका दांत टूट गया.
             प्रारंभिक उपचार के बाद ग्राउंड पर लौटने के बाद ध्यानचंद ने खिलाड़ियों को निर्देश दिए कि अब कोई गोल न मारा जाए, जर्मन खिलाड़ियों को ये बताया जाए कि गेंद पर नियंत्रण कैसे किया जाता है. इसके बाद खिलाड़ी बार-बार गेंद को जर्मनी की डी में ले जाते और फिर गेंद को बैक पास कर देते. जर्मन खिलाड़ियों की समझ में ही नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है.
              भारत ने उस फाइनल में जर्मनी को 8-1 से मात दी. इसमें तीन गोल ध्यानचंद ने किए. दरअसल, 1936 के ओलंपिक खेल शुरू होने से पहले एक अभ्यास मैच में भारतीय टीम जर्मनी से 4-1 से हार गई थी. ध्यानचंद ने अपनी आत्मकथा ‘गोल’ में लिखा, 'मैं जब तक जीवित रहूंगा इस हार को कभी नहीं भूलूंगा. इस हार ने हमें इतना हिला कर रख दिया कि हम पूरी रात सो नहीं पाये.'
              उनके इस शानदार प्रदर्शन से खुश होकर हिटलर ने उन्हें खाने पर बुलाया और उनसे जर्मनी की ओर से खेलने को कहा. इसके बदले उन्हें मजबूत जर्मन सेना में कर्नल पद का प्रलोभन भी दिया. लेकिन ध्यानचंद ने कहा, 'हिंदुस्तान मेरा वतन है और मैं वहां खुश हूँ.'
              ऐसे असाधारण प्रतिभा से संपन्न खिलाडी हर खिलाड़ी के लिये प्रेरणा स्रोत होते हैं.. इस महान व्यक्तित्व को शत् नमन्.
             ' बुंदेलखंड जनमिलन केंद्र, उरई'  उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता है.
                          🙏🙏🙏

Wednesday, August 26, 2020

लोक पर्व 'राधा अष्टमी'


        आज 'राधा अष्टमी' है  जिसे राधा जी के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है.   मान्यता है जो जन्माष्टमी का व्रत रखता है और राधा अष्टमी का व्रत नहीं रखता उसका जन्माष्टमी का व्रत अधूरा माना जाता है.भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव यानी कृष्ण जन्माष्टमी के पंद्रह दिन बाद राधा अष्टमी का पर्व मनाया जाता है.भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को 'राधा अष्टमी ' का पर्व मनाया जाता है.
         शास्त्रों के अनुसार द्वापर युग में इस दिन राधा जी का जन्म हुआ था। राधा जी के बिना भगवान श्री कृष्ण की पूजा अधूरी मानी जाती है. राधा अष्टमी का पर्व बरसाने में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। राधा जी के पिता का नाम वृषभानु और उनकी माता का नाम कीर्तिजी था।
          'राधा अष्टमी' के दिन राधा जी की पूजा अकेले नहीं की जाती बल्कि उनकी पूजा भगवान श्री कृष्ण के साथ की जाती है। राधा अष्टमी का व्रत करने से मनुष्य को अपने जीवन की सभी सुख सुविधाएं सहज ही प्राप्त हो जाती हैं। इस दिन राधा जी को 'वल्लभा' नाम से पुकार कर संबोधित किया जाता है।
         ' राधा अष्टमी ' का पर्व मथुरा, वृंदावन और बरसाना के मंदिरों में बड़े उत्साह से मनाया जाता है. इस दिन भगवान श्री कृष्ण और राधा जी के दर्शनों के लिए भीड़ लगी रहती है। लोग कृष्ण जन्माष्टमी के दर्शनों के बाद मथुरा, वृंदावन और बरसाना के मंदिरों में राधा जी के दर्शन अवश्य करते हैं।
            पद्मपुराण के अनुसार राधा जी को वृषभानु एवं कीर्ति की पुत्री थीं.जब राजा वृषभानु यज्ञ के लिए भूमि को साफ कर रहे थे तभी' भूमि कन्या' के रूप में इन्हें राधा जी की प्राप्ति हुई थी.राजा वृषभानु व उनकी पत्नी कीर्ति ने इस कन्या को अपनी पुत्री मान कर लालन- पालन किया उन्होंने इस कन्या का नाम 'राधा' रखा.
           जनश्रुति है कि जिस समय भगवान श्री कृष्ण का जन्मदिन मनाया जा रहा था, तब राधा जी की माता महारानी कीर्ति राधा जी को लेकर गोकुल नंद और यशोदा के यहां पहुंची थी. भगवान श्री कृष्ण उस समय अपने झूले में झूल रहे थे और राधा जी और भगवान श्री कृष्ण एक दूसरे को अपलक देख रहे थे.
            पुराणों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण और राधा जी उम्र में 11 महिने का अंतर था. जिस समय भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था, उस समय राधा जी की आयु  11 माह थी.द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण और माता लक्ष्मी ने राधा जी के रूप में जन्म लिया था।.   
           भगवान श्री कृष्ण और राधा जी का विवाह नहीं हो सका था, लेकिन फिर भी इनकी पूजा एक  साथ ही की जाती है. माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण के बिना राधा जी अधूरी हैं और राधा जी के बिना भगवान श्री कृष्ण. इसलिए राधा अष्टमी पर भगवान श्री कृष्ण की भी पूजा होती है।

Friday, August 21, 2020

'वरिष्ठ नागरिक दिवस ' और हमारे दायित्व

         आज ' विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस ' है. इसे प्रति वर्ष  21 अगस्त को मनाया जाता  है. इस  दिवस को मनाने की शुरुआत संयुक्त राज्य अमेरिका (U S A) में हुई थी और अब विश्व के अधिकतर देशों में इसे मनाया जाता है.

            1935 में अमेरिका के राष्ट्रपति फ्रेंक्लिन रोसवैल्ट ने 'सामाजिक सुरक्षा अधिनियम ' पर हस्ताक्षर किये थे , जिसके अनुसार ' नेशनल सीनियर सिटीजन डे' 14 अगस्त को मनाया जाता था. 1988 तक इसे 14 अगस्त को ही सेलिब्रेट किया गया.       
            1988 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने 21 अगस्त को  'नेशनल सीनियर सिटीजन डे' घोषित किया. इसका मुख्य उद्देश्य अमेरिका में  उन वरिष्ठ नागरिकों को,  जो अपने समुदायों में सकारात्मक योगदान देते है,  सम्मान देना है.
          कोई भी देश क्यूँ न हो, हर जगह बुजुर्गों   को  आदर  देना  सामाजिक   संस्कृति है.   भारतीय संस्कृति में तो बुजुर्गों को   परिवार में सदा से ही   महत्व  मिलता  रहा  है.  उनसे  पूछे बिना घर  में  कोई कार्य  नहीं होता था. संयुक्त परिवारों में बुजुर्गो अनुभव और सबका साथ सामाजिक जीवन को सुगम बना देता था. बड़ों की छाँव में बच्चे कब बड़े हो जाते थे, माता पिता को पता ही नहीं चलता था. बुजुर्गों का जीवन भी हँसी खुशी से कट जाता था.     
‌         अमेरिका व पश्चिमी देशों में बुजुर्गों को वृद्धाश्रम में रखने की परंपरा पड़ी. जिसका प्रभाव  अब भारत में भी दिख रहा है. संयुक्त परिवार  लगभग टूट ही चुके हैं. जीविका के लिये संघर्ष बढ़ा है.  उपभोक्तावाद ने  लोगों  की महत्वाकांक्षाओं में इजाफा किया है. धन प्राप्ति की होड़ ने  परंपरागत मूल्यों को समाप्त कर दिया है.  आज एकल व स्वकेंद्रित परिवारों का युग है जिसमें बुजुर्गों की भावनाओं को समझने का  किसी के पास समय ही नहीं है. बच्चे  अपने जॉब व लाइफ में इतने व्यस्त  होते हैं कि  परिवार के  बुजुर्गों  पर ध्यान देने का उन्हें समय ही नहीं मिलता. जिसके  कारण वरिष्ठ लोग या तो घर में अकेले रहते है, या साथ पाने के लिए  वृद्धाश्रम चले जाते है. कुछ ऐसेे भी परिवार होते हैं जहाँ  बच्चों को  बड़े  बोझ लगने   लगते  हैं.
          'सीनियर सिटीजन डेे' मनाने से लोगों को एक दिन मिल जाता है अपने बड़ों को याद करने    और  उन   पर  ध्यान  का.  इसके साथ ही बुज़ुर्ग वर्ग को उनके परिवार के साथ समय बिताने का एक दिन मिल जाता है. 

          वृद्धावस्था में  औषधि से अधिक अपनों के साथ की जरूरत  महसूस होती है. बुजुर्ग बस यही चाहते है कि उनको सम्मान मिले, उनको वह महत्व मिले जिसके वो अधिकारी है. उम्र के इस दौर में जब शरीर भी उनका साथ नहीं देता है, ऐसे में उनको मानसिक संतुष्टि उनके लिए संजीवनी होती है.  यदि उनसे, उनके जीवन के कुछ पुराने किस्से पूछें, उनके गर्व क्षण के बारे में उनसे पूछे, उनकी बातों को ध्यान से सुन उनकी सराहना करें. उनकी पसंदीदा जगह पर ले जाएँ, उनके जीवन के व्यक्तिगत पलों को जानने में दिलचस्पी दिखायें, तो  उन्हें तो अच्छा लगेगा ही   साथ ही  आप भी समझ पायेंगे कि रिश्तों को कैसे निभाया जाता है, रिश्ते में मजबूती कैसे लाई जाती है.

           वरिष्ठों के लंबे  अनुभवों हम बहुत सीख सकते  हैं. यदि कभी  वृद्धाश्रम  जाकर सभी बुजुर्गों के साथ समय बितायें और किसी मनोरंजन कार्यक्रम का आयोजन करें, तो आप पायेंगे कि बुजुर्गों  तो आनंदित होंगे ही, स्वयं को भी बहुत आत्म संतुष्टि मिलेगी.  वरिष्ठ जनों के लिए एक ' फिजिकल टच'  औषधि की भाँति होता है. उन्हें गले लगायें, इससे उनका तनाव कम होगा, साथ ही उनके अंदर आत्मविश्वास जागेगा.

          ध्यान रखें कि बुजुर्गों को अपने नाती- पोतों (grantchildren) के साथ समय बिताना बहुत ही प्रिय होता है. आज की युवा पीढ़ी को इस बात को समझना चाहिये. यदि आपके परिवार के बुजुर्ग  आपसे दूर हैं,तो समय निकाल कर ऐसे अवसर परिवार के बड़ों को उपलब्ध कराते रहना करना चाहिये. आज कल तो वीडियो काल की सुविधा हो गयी है. 

       यदि आपके परिवार में कोई वरिष्ठ नहीं है, तो अपने घर के आस-पास , किसी  पार्क में किसी भी बुजुर्ग से दोस्ती करें, उनके लिए आपकी एक मुस्कुराहट ही पर्याप्त होगी. कभी बिना बताये अपने किसी बुजुर्ग अध्यापक या परिचित से मिलने  जायें.  आपको अचानक  देखकर उनकी प्रसन्नता का आप अनुमान नहीं लगा सकेंगे. 

         केवल आज के दिन ही नहीं यदि बुजुर्गों के प्रति परवाह को आप सामाजिक दायित्व समझना शुरू कर दें, यह आपको प्रसन्नता एवं आपके व्यक्तित्व एक गरिमा प्रदान करेगा.  केवल युवा पीढ़ी को ही नहीं, बल्कि जो वरिष्ठ जनों की श्रेणी में तुरंत शामिल हुये हैं, उन्हें भी अपने वरिष्ठतम जनों के प्रति यही व्यवहार करने के लिए कार्य करना चाहिये.

         सभी वर्तमान और भावी वरिष्ठों को ढेरों शुभकामनाएं.        


Monday, August 17, 2020

शास्त्रीय संगीत के सरताज पं जसराज

         देश के जाने माने शास्त्रीय गायक 'पंडित जसराज ' जी का 90 साल की उम्र में आज  निधन हो गया। पद्म विभूषण पंडित जसराज पिछले कुछ समय से अपने परिवार के साथ अमेरिका में ही थे।'खयाल शैली' की गायिकी पंडित जसराज की विशेषता थी। वे मेवाती घराने से संबंधित थे l
          पं. जसराज का जन्म 28 जनवरी 1930 को हरियाणा के हिसार में हुआ था l  उनका परिवार चार पीढ़ियों से शास्त्रीय संगीत की परंपरा को आगे बढ़ा रहा था। उनके पिता पंडित मोतीराम मेवाती घराने के संगीतज्ञ थे।जब पंडित जसराज महज तीन-चार साल के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया था। वे 14 साल की उम्र तक तबला सीखते थे। बाद में उन्होंने गायिकी की तालीम लेना शुरू किया। उन्होंने साढ़े तीन सप्तक तक शुद्ध उच्चारण और स्पष्टता रखने की मेवाती घराने की विशेषता को आगे बढ़ाया। उनका विवाह प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक वी. शांताराम की बेटी मधुरा शांताराम से हुआ था।
           पंडित जसराज ने एक अनोखी जुगलबंदी की रचना की। इसमें महिला और पुरुष गायक अलग-अलग रागों में एक साथ गाते हैं। इस जुगलबंदी को ' जसरंगी' नाम से जाना जाता है।
           श्री वल्लभाचार्य जी द्वारा रचित भगवान कृष्ण की बहुत ही मधुर स्तुति 'मधुराष्टकम् 'उन्हें बहुत प्रिय थाह। उन्होंने इस स्तुति को अपने स्वर से घर-घर तक पहुंचा दिया। पंडित जी अपने हर एक कार्यक्रम में 'मधुराष्टकम् 'जरूर गाते थे। प्रस्तुत है इस स्तुति का एक अंश
  "अधरं मधुरं वदनं मधुरं,  नयनं मधुरं हसितं मधुरं।
    हृदयं मधुरं गमनं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरं॥"

            2012 में पं.जसराज ने 8  जनवरी 2012 को 82 साल की आयु में 'अंटार्कटिका' में 'सी स्पिरिट' नामक क्रूज पर गायन कार्यक्रम प्रस्तुत किया।  वे सातों महाद्वीप में कार्यक्रम पेश करने वाले पहले भारतीय थे। इससे पहले 2010 में पत्नी मधुरा के साथ उत्तरी ध्रुव का दौरा किया था।
            शास्त्रीय संगीत जगत के ऐसे हस्ताक्षर का निधन  भारतीय संगीत जगत की अपूरणीय क्षति है l
             
                          🙏🙏🙏