आज सारा विश्व अंतर्राष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस मना रहा है । वर्तमान में वैश्विक परिदृश्य अशांति , युद्ध ,आतंकवाद एवं अविश्वास के परिणामस्वरूप दहशत के जिस परिवेश में दिखाई दे रहा है उससे इस दिवस की सार्थकता और भी अधिक बढ़ जाती है । सहिष्णुता किसी भी समाज की स्थिरता का मापदंड है इसके अभाव में कोई भी राष्ट्रीय अथवा अंतर्राष्ट्रीय समाज सुख, शान्ति से विकास नहीं कर सकता । अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में जहाँ शक्ति ,प्रभाव और राष्ट्रीय हितों की पूर्ति के लिए निरंतर तनाव व संघर्ष युगों से जारी है ,वहाँ सहिष्णुता का विचार घने अंधकार में दीप की भाँति पथ प्रशस्त करता है । यदि हम ईमानदारी से चिंतन करें तो हम महसूस करेगें कि यदि सहिष्णुता को व्यक्ति ,राष्ट्र और विविध धर्मावलम्बी ह्रदय से अंगीकार कर लें , तो बहुत सी समस्यायों को हल करने में सहायता मिल सकती है ,चाहे वह सीमा विवाद हों अथवा जातीय या धार्मिक संघर्ष ।
यदि वास्तव में अंतर्राष्ट्रीय पटल पर सदभाव व सामंजस्य को स्थापित करना है तो अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में मान्य बहुत सी प्रस्थापनाओं को दरकिनार करना होगा जैसे -"अंतर्राष्ट्रीय राजनीति शक्ति के लिये एक संघर्ष है । " अथवा "अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में कोई स्थायी मित्र या शत्रु नहीं होता ,केवल स्थायी हित होते हैं ।" राष्ट्रीय हित के नाम पर ये मान्यतायें केवल अवसरवादी प्रवृत्ति को ही प्रोत्साहन देतीं है। आज जब सारा विश्व एक अंतर्राष्ट्रीय इकाई बन गया है एवं वैश्वीकरण का युग प्रारम्भ हो चुका है ; मानव - अधिकारों के प्रति चेतना बढ़ रही है ,आतंकवाद के विरुद्ध सभी देश एकजुट हो रहें हैं ,तो ये परंपरागत प्रस्थापनाएँ अप्रासंगिक हो जानी चाहिये।
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में 'शांतिपूर्ण सह -अस्तित्व ' का विचार द्वितीय विश्व - युद्ध के बाद महाशक्तियों के मध्य लंबे समय तक चले 'शीत युद्ध ' की निरर्थकता का अनुभव करने के बाद स्वीकार्य हुआ । यह भी महसूस किया गया कि मानवता की सुरक्षा के लिये 'जियो और जीने दो ' की मान्यता अपनानी ही होगी । सहिष्णुता के बिना ये सभी बेमानी हो जाते हैं । इसके लिये व्यापक दृष्टिकोण अपनाना होगा एवं सभी देशों को तथा लोगों को भी अपने सीमित स्वार्थों व हितों का परित्याग करने को तत्पर होना होगा ,तभी इस दिवस की सार्थकता होगी।
Monday, November 16, 2009
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