पिछले सप्ताह मै मध्य प्रदेश के शहर ग्वालियर गया । वहाँ पर स्टेट बैंक आफ इंदौर एम्प्लाइज यूनियन ,म० प्र० की जिला इकाई के अध्यक्ष तिलक सिंह राणा एवं सचिव अतुल प्रधान की ओर से प्रसारित पोस्टर लगे देखे जो किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को अपने दायित्वों के बारे में सोचने पर मजबूर कर देते है । प्रस्तुत है इन पोस्टरों में व्यक्त विचार -
(1)
हम कहते हैं -
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नगरपालिका कचरा नहीं उठाती है ;
फोन काम नहीं करता ;
रेलवे मजाक बन गया है ;
चिट्ठियां मंजिल तक नहीं पहुचतीं ।;
हम कहते है ,कहते रहते हैं,और कहते ही रहते हैं ।
इस बारे में करते क्या हैं?
# हम सिंगापुर में सड़कों पर सिगरेट का टुकडा कभी नहीं फेकते ;।
# हम वाशिंगटन में ५५मील प्रति घंटे की रफ्तार से ऊपर गाड़ी चलाने की हिमाकत नहीं करते और पलट कर यह नहीं पूछते कि ,"जानता है कि मै कौन हूँ ?"
# आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के समुद्र तटों पर हम खाली नारियल हवा में नहीं उछालते ।
# टोकियो में हम पान की पीक यहाँ -वहाँ क्यों नहीं थूकते ?
यह सब बातें हमारे ही बारे में हैं ,जी हाँ हमारे ही बारे में ।
# हम दूसरे देशों में व्यवस्था का आदर और पालन कर सकते हैं ,लेकिन अपनी व्यस्था का नहीं ।
# भारतीय धरती पर कदम रखते ही हम सिगरेट का टुकडा जहाँ -तहाँ फेकते हैं,कागजों के पुर्जे उछालते हैं
# यदि हम पराये देश में अनुशासित रह सकते हैं ,इओ यहाँ क्यों नहीं ?
हम सोचते है कि हमारा हर काम सरकार करेगी और हम धरती पर पड़ा कागज भी उठा कर कूडेदान में डालने की जहमत भी नहीं उठायेगें । रेलवे हमारे लिए साफ -सुथरे बाथरूम देगी ,पर हम उन्हें ठीक से इस्तेमाल करना भी नहीं सीखेगे ।
यह व्यवस्था है किसकी और इसे बदलेगा कौन ?
हम आसानी से कहेगें कि व्यवस्था में शामिल है हमारे पडौसी ,दूसरे अन्य शहर ,समुदाय और सरकार,लेकिन मै कतई नहीं ।
जब भी कुछ अच्छा करने की बारी आती है ,तो हम स्वयं को एवं अपने परिवार को अलग कर लेते हैं । हर कोई सरकार को गाली देने को तैयार है पर सकारात्मक योगदान के बारे में कोई नहीं सोचता । क्या हमने अपनी आत्मा को पैसे के हाथों गिरवी रख दिया है ? अगर मेरी इन बातों में कोई सार नजर आता है तो इसे सब अपनों को बताएँ।
डा० ऐ ० पी० जे ० अब्दुलकलाम
महामहिम राष्ट्रपति (भूतपूर्व )
(२)
कहीं देश की ही छुट्टी न हो जाये
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वीर शहीदों ने त्याग और कुर्बानी की रोली रची थी ,
हम 'गणतंत्र दिवस 'की रैली में भी नहीं जाते हैं।
उन्होंने हँसते -हँसते फंसी के फंदे को चूम लिया था ,
हम झंडे को भी सम्मान से सीने पर नहीं लगाते हैं ।
तब के लाल बचपन से ही देशभक्ति की घुट्टी पीते थे ,
हम बेहाल,'स्वतंत्रता दिवस ' पर केवल छुट्टी ही मनाते हैं ।
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इस 'छुट्टी ' के भाव से छुटकारा पाकर
यदि हमने अपने देश को दिल में नहीं बसाया ,
तो निश्चित ही एक दिन हमारी आजादी की छुट्टी हो जायेगी
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आइये ! केवल परेड, छुट्टी , नारों और आतिशबाजी से नहीं ,
देश से प्रीत कर सफलता और सम्पन्नता के गीत रचें ,
तन -मन और जीवन में राष्ट्रीयता के स्वर सजाएँ और कहें -
हमारा भारत - जान से प्यारा भारत
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ये पोस्टर हमें अपने दायित्वों की याद दिलाते हैं और एक नागरिक में जागरूकता का भाव पैदा करने का प्रयास करते हैं ।
Thursday, November 12, 2009
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आपने बहुत ही बढ़िया और बिल्कुल सही लिखा है ! आखिर देश को साफ सुथरा रखना हर भारतीय नागरिक का काम है! हम दूसरे देश में जाकर वहां पर सब कुछ मानते हैं और हर चीज़ में वाह वाह करते हैं पर क्या फायदा हम ख़ुद ही अपने देश में गंदगी फैलाते हैं! कागज़ और सिगरेट का टुकडा इधर उधर फेंकते हैं तो क्या हमें अपने देश को साफ सुथरा नहीं रखना चाहिए? अब सरकार के बारे में क्या कहूँ मैं, हमारे देश में सरकार कैसी है वो तो सभी जानते हैं! नेता झूठे वादे करते हैं और सिर्फ़ पैसे लुटते हैं जनता से !
ReplyDeleteRespected Sir....
ReplyDeleteaapke is lekh ne bahut kuch sochne par majboor kar diya....
मेरी रचनाएँ !!!!!!!!!
ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का, इस देश का यारो...................
ReplyDeleteअब ये नहीं पता कि इस देश का क्या यारो?
इस व्यवस्था और अव्यवस्था के मध्य एक लकीर है और उस लकीर के साथ याद आता है कि हम कभी नहीं सुधरेंगे. (अपने घर में.............क्यों कि यहाँ हम शेर हैं!!!!!!)