Saturday, August 6, 2011

कामनवेल्थ घोटाले में शीला भी

कामनवेल्थ घोटाले की आंच में अभी सुरेश कलमाड़ी के किस्से सुर्खियाँ बटोर ही रहे थे कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट ने दिल्ली की तेज तर्रार मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की सरकार द्वारा राष्ट्र मंडलीय खेलों के दौरान दिल्ली को सजाने के नाम पर किये गये अनाप -शनाप खर्चों पर अनिमितताएं सामने लायीं । इससे मानसून सत्र के दौरान पहले से ही भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घिरी कांग्रेस सरकार के खिलाफ लामबंद विपक्ष को कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करने का एक मौका और मिल गया । शीला दीक्षित के इस्तीफे की माँग जोर पकड़ने लगी ।
सोनिया गाँधी की अनुपस्थिति में कांग्रेस के कोर ग्रुप की बैठक में यद्यपि फ़िलहाल शीला जी को अभयदान मिल गया, पर जो मुद्दे उठ खड़े हुए हैं ,वे अत्यंत पेचीदा हैं । कैग रिपोर्ट बताती है कि सार्वजनिक धन का इस दौरान बड़ी ही बेदर्दी और बेशर्मी से दुरूपयोग किया गया ।
इस दौरान काग्रेस के नेताओं ने शीला जी के पक्ष में जो दलीलें दीं, वे बड़ी ही बचकानी हैं । मसलन शीला का अपराध इतना बड़ा नहीं है कि वे इस्तीफा दें । कर्नाटक में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपने कद्दावर मुख्यमंत्री येदुरप्पा का इस्तीफा दिलवा कर पाक -साफ बनी भाजपा को तो शीला के इस्तीफे पर बड़ी मुखर होकर सामने आयी है और कांग्रेस बचाव की मुद्रा में है ।
राजनीतिज्ञों की बेशर्मी व भ्रष्टाचार के मामलों में बेचारी जनता किस तरह पिसती जा रही है ,ऐसा उदाहरण इस देश के अलावा अन्यत्र दुर्लभ है । उस पर हमारी राजनीतिक संस्कृति में चोरी और सीनाजोरी की जो प्रवृत्ति बढती जा रही है ,यह बड़ी ही आपत्तिजनक एवं घम्भीर हैं । लगता है कि सार्वजानिक जीवन में हमारे नेता नैतिकता को तिलांजलि दे बैठे हैं और वे केवल न्यायपालिका के चाबुक को ही समझ पाते हें । जब तक जनता चुनावों में ऐसे लोगों को सबक नहीं सिखाएगी तब तक यह बेशर्मी बढती ही जाएगी ।

Thursday, July 28, 2011

हंगामा है क्यूँ बरपा...?

लोकपाल बिल को लेकर पिछले कई समय से सरकार एवं सिविल सोसायटी के बीच रस्साकसी चल रही थी उसका एक रूप केंद्र सरकार द्वारा कैबिनेट से पारित ड्राफ्ट के रूप में आया। ड्राफ्ट के आते राजनीतिक बयानबाजी का भूचाल आ गया । सिविल सोसायटी के सदस्यों ने इसे धोखापाल कहा । अन्ना हजारे ने १६ अगस्त से अनशन पर जाने की घोषणा कर दी । विपक्षी दलों को भी सरकार को कोसने का एक मुद्दा मिल गया। मुख्य मुद्दा प्रधान मंत्री और न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने का है । न केवल मन मोहन सिंह बल्कि पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी बाजपेयी भी प्रधान मंत्री के पद को लोक पाल के दायरे में रखने के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कर चुके हैं । तर्क इन पदों की गरिमा सुरक्षित रखने का दिया जाता है ।
फ़िलहाल कांग्रेस बचाव की मुद्रा में है । पहले से भ्रष्टाचार व घोटालों से घिरी इस सरकार की नीयत पर सवाल उठते रहे हैं । अब एक कमजोर लोकपाल बिल बना कर केवल रस्म -अदायगी करने का आरोप लग रहा है ।
इस सारी रस्साकसी से कई प्रश्न उठते है जिनका उत्तर खोजने की जिम्मेवारी हमारे राजनीतिक तंत्र के संवाहकों की है -
१ - लोक पाल की व्यवस्था में प्रधान मंत्री अथवा न्यायपालिका को रखने से उनके पदों की गरिमा क्यों कम होगी?
२-लोकपाल बिल पर अन्य राजनीतिक अपनी स्पष्ट राय क्यों व्यक्त नहीं कर रहे ? केवल सिविल सोसायटी एवं सरकार के बीच हो रही नूरा कुश्ती का मजा ले रहे हैं ।
३-क्या लोकपाल की व्यस्था हमारे भ्रष्ट राजनीतिक तंत्र पर लगाम लगाने में सक्षम होगी ?
४ - क्या सिविल सोसायटी की अनशन व सत्याग्रह के द्वारा अपनी मांगों ( भले ही वे लोकोपयोगी लगती हों ) को मनवाने का धमकी भरा रुख लोकतान्त्रिक कहा जायेगा ?
५-क्या भारत का मतदाता इतना सक्षम हो गया है कि आगे आने वाले आम चुनावों में इस मुद्दे पर वोट करे ?
६-क्या इस मुद्दे पर हंगामा करने से पहले इस बिल पर संसद की भूमिका देखने के बाद ही कोई सत्याग्रह आदि करना उचित नहीं होगा ?इसके लिये सांसदों को समझाने का काम भी किया जा सकता है ।
७-क्या जरूरत आम आदमी को अपने अधिकारों के प्रति शिक्षित करने व उनमें राजनीतिक जागरूकता लाने की नहीं है और इस दिशा में राजनीतिक दलों व सामाजिक संगठनों (सिविल सोसायटी सहित ) को एक स्पष्ट कार्य योजना नहीं बनाना चाहिए ।
जब तक इन मुद्दों पर खुले मन से विचार या कार्य नहीं होगा ,तब तक भ्रम का वातावरण बना ही रहेगा .

Thursday, July 21, 2011

मन में घिरा एक द्वंद्व है ..

एक लम्बे समय के बाद पोस्ट लिख रहा हूँ।पिछला एक वर्ष हमारे समाज व देश के लिये घटनापूर्ण रहा । सामाजिक व राजनीतिक मूल्यों में ह्रास, घोटालों का खुलना और उन में सत्ताधीशों की बेशर्म संलिप्तता ,अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान पर राजनीतिक पैतरेबाजी , रामदेव के सत्याग्रह पर दमनात्मक कार्यवाही और दिन -प्रतिदिन विस्तार पाता हमारा स्वार्थपूर्ण चरित्र आदि प्रवृत्तियों से त्रसित आहत मन से कुछ काव्यमयी प्रतिक्रिया अभिव्यक्त हुई जिसे प्रस्तुत कर रहा हूँ -

मन में घिरा एक द्वंद्व है
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नव सदी का आरम्भ है ,
मन में घिरा एक द्वंद्व है

सुविधा हुई प्रधान है ,
संचित मूल्य हो रहे गौण ;
बस ही हमारा पूर्ण हो,
हैं इसी लीक पर युवा प्रौढ़ ;
प्रतिपल बदलती मान्यतायें,
ज्यों ज़ल -नदी निर्बन्ध है
मन में घिरा एक द्वंद्व है

सच बात की कीमत नहीं ,
सच बोलना अपराध है
स्वार्थ पूर्ण हो कैसे अपना ,
हैं इसी लीक पर युवा प्रौढ़ ;
संवेदना की बात पर तो,
अब यहाँ प्रतिबन्ध है
मन में घिरा एक द्वंद्व है

यह प्रगतिशील समाज है,
क्या -क्या सृजन होगा यहाँ ?
विकृत विचारों का प्रसार ,
यह समाज जायेगा कहाँ?
विवेकशून्यता से घिरी ,
नव प्रगतिपूरक गंध है
मन में घिरा एक द्वंद्व है

यह लोकतान्त्रिक देश है ,
सस्ती मनुज की जान है ;
भृष्ट आचरण ,विकृत चरित्र ,
यहाँ शासकों की शान है ;
गाँधी दिखें हर नोट पर ,
अनशन ,सत्याग्रह पर दंड है
मन में घिरा एक द्वंद्व है

Sunday, April 24, 2011

सत्य साई बाबा - चमत्कार को नमस्कार

पुटपर्थी के सत्य साई बाबा इस नश्वर संसार को त्याग कर परलोक सिधार गये । उन्हें शिर्डी के साईं बाबा का अवतार माना जाता था । उनका जीवन बड़ा रहस्यमय तथा विवादों से घिरा रहा । पर उनके चमत्कारों की गाथा सदैव ही बड़ी रोचक रही । देश विदेश में उनके भक्तों की एक बड़ी संख्या है जो उनके निधन के बाद अपने को निराश्रित महसूस कर रहे हैं । राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल , पूर्व राष्ट्रपति कलाम ,अटल बिहारी बाजपेयी , लालू जी, करूणानिधि ,किरण रेड्डी,सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर ,फिल्म एवं उद्योग जगत की अनेक हस्तियाँ सत्य साई बाबा की कृपापात्र रहीं हैं ।
सत्य साईं बाबा भारत के आध्यात्मिक जगत का एक लोकप्रिय स्तम्भ थे , उनके चमत्कारों व कार्यशैली पर कितना भी विवाद क्यों न रहा हो , उनकी स्वीकार्यता निरंतर बढ़ती ही रही । शिर्डी एवं पुटपर्थी साई भक्तों के तीर्थस्थल बन गये । शिर्डी में जहाँ भक्तों की श्रद्धा ने वहाँ के ट्रस्ट को करोडो का दान दे कर समृद्ध किया वहाँ सत्य साईं बाबा की सेवा में भक्तों ने तन-मन-धन से अपना योगदान दिया , पर श्ग्र्दी का स्थल जहाँ केवल धार्मिक व आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा वहाँ सत्य साई बाबा ने समाज सेवा एवं मानव सेवा में महत्वपूर्ण योगदान दिया , इसका उदाहरण उनके द्वारा स्वास्थ्य , शिक्षा एवं समाज सेवा की दृष्टि से संचालित अनेक महत्वपूर्ण परियोजनाओं से है जिन्हें आज भी उत्कृष्टता की दृष्टि से मान्यता एवं सामाजिक स्वीकार्यता प्राप्त है । इस रूप में उनका योगदान किसी भी आध्यात्मिक हस्ती ,गुरु या बाबा की तुलना में महत्वपूर्ण हो जाता है। उनका निधन देश व समाज की कभी न पूरी होने वाली क्षति है । उनके पार्थिव शरीर को देख कर निम्नांकित उदगार अभिव्यक्त हो पड़े -
आँसू आये उन्हें देख कर, मन बोझिल हो आया ,
जिसने है कुछ किया, उसी ने सबका आदर पाया

Sunday, April 3, 2011

भारत अब है नंबर वन

हार गयी वर्ल्ड कप में लंका ,
बजा क्रिकेट में भारत का डंका
मैच फायनल, था क्या हाल ?
अंतिम क्षण तक मन बेहाल
सबका रहा धड़कता दिल ,
जबतक जीत गयी नहीं मिल
सबने अच्छी क्रिकेट खेली ,
सबकी अपनी-अपनी शैली
पलड़ा कभी, किसी का झुकता,
हर दर्शक का ह्रदय उछलता
जब हुए सहवाग,सचिन आउट ,
लगा जीत में अब है डाउट
गौतम निकले अति गंभीर,
भारत की अच्छी तक़दीर
था विराट का सुखद प्रयास ,
जिससे बधीं जीत की आस
फिर धोनी की सुन्दर पारी ,
जिससे बिखरीं खुशिया सारी
किया बालरों ने भी कमाल ,
फील्डिंग से रहे विरोधी बेहाल
वर्ष अठाईस का इंतजार ,
ख़त्म किया कैप्टन ने छक्का मार
सर्वश्रेष्ठ अपना युवराज ,
हर भारतवासी को नाज
हुईं ख़ुशी से आँखें नम ,
आखिर जीते वर्ल्ड कप हम
रूप कोई भी हो क्रिकेट का ,
भारत अब है नंबर वन

Thursday, March 17, 2011

अवतार सिंह पास की रचना

मैं अपने कुछ पुराने कागज देख रहा था कि मुझे अवतार सिंह 'पास' की एक पुरानी रचना हाथ लगी । मुझे लगा कि यह रचना जागरूक पाठकों के समक्ष अवलोकनार्थ आनी चाहिए .
अवतार सिंह 'पास' पजाब के प्रगतिशील कवि थे । . जब भारत में खालिस्तानी आतंकवाद चरम सीमा पर था तब वे उस विचारधारा से जुड़े थे जो आतंकवादियों के इरादों के खिलाफ संघर्ष कर रही थी । . उन्हें जान से मारने की धमकियाँ मिल रहीं थीं और बाद में उनकी हत्या भी कर दी गयी । इसी दौरान उनको बेटी होने की सूचना भी मिली । उन्होंने अपनी बेटी को संबोधित करते हुए एक काव्यात्मक ख़त लिखा जो आतंक के विरुद्ध लड़ी में न केवल उनके जज्बे को प्रदर्शित करता है वरन फिरकापरस्त ताकतों को भी बेनकाब कर लोगों को जागरूक करता है। इस दृष्टि से उनकी यह कविता एक शाश्वत दस्तावेज कही जा सकती है.

बाप, का ख़त बेटी कें नाम

बेटी तेरे जनम पै है स्वागत तेरा बहुत,
दादी से तेरी मुझको समाचार ये मिला ;
लेकिन वह ज्यादा खुश आयी नहीं मुझे,
लड़का न होने का उसे शायद रहा गिला।

अफ़सोस उसकी सोच पै बिलकुल नहीं मुझे ,
लड़की के साथ भेद ये सदियों से आया है ;
जड़ इसकी पूंजीवाद है ,सामंतवाद है ,
बेशक बुराइयों का यही तो निजाम है ।

शोषितजनों की मुक्ति ही बस मेरालक्ष्य है ,
संघर्ष कर रहा हूँ मैं,जालिम निजाम से;
मै चाहता हूँ ऐसा निजाम आये हिंद में ,
इज्जत हो आदमी की जहाँ उसके काम से ।

बेटी तेरा जनम हुआ है ऐसे वक्त पर ,
लथपथ है जबकि खून से पंजाब की जमीं;
फिरकापरस्त ताकतें करती हैं साजिशें ,
कैसे रहे सुकून स पजाब की जमीं ?

फिरकापरस्त ताकतें ,काली ये ताकतें ,
ये ताकतें हैं मौत की,सूचक विनाश की ;
लोगों को मजहबों के खेमे में बाँट कर ,
गुल करना चाहती हैं सभी किरणें आस की।


लड़ते हुए इनसे मैं मर भी गया तो क्या,
इस जंग में महान शहादत तो चाहिए ;
बलिदान चाहें जितने हों चिंता नहीं ,मगर,
इन काली ताकतों को क़यामत तो चाहिए।


शायद ही तुझको दे सकूँ मै तेरा हक़,मगर,
आदर्श मेरे तेरी धरोहर हैं कीमती ;
फिरकापरस्त लोगों से तू रहना सावधान ,
इंसानियत ही दुनियां में जेवर है कीमती।

पैगाम तेरे वास्ते मेरा यही है बस ,
हिन्दू बने,न सिक्ख,न मुसलमान तू बने ;
दहलीज पर जवानी की,जब तू रखे कदम,
मजहब न तेरा कोई हो ,इन्सान तू बने ।

Wednesday, February 16, 2011

मुझको यारो माफ़ करना .........

अपने देश की मजबूत कांग्रेस सरकार के अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री की संपादकों के साथ हुई प्रेस वार्ता में प्रधान मंत्री जी ने बड़ी ही साफगोई से सवालों के जबाब दिए । प्रधान मंत्री जी बड़े अनुभवी हैं । कूटनीति में माहिर हैं । तमाम चुनौतियों से घिरी कांग्रेस सरकार का नेतृत्व अरसे से यूँ ही नहीं कर रहे हैं ।
उन्होंने माना कि घोटालों के उछलने से भारत की विश्व में छवि ख़राब हुई है ; वे जे० पी० सी० का सामना करने को तैयार हैं ; राजा ने उन्हें बताया था कि टू जी स्पेक्ट्रम मामले में पारदर्शिता बरती गयी थी तथा वे (राजा )पाक -साफ हैं और एक अच्छे पी एम की तरह उन्होंने विश्वास कर लिया था ;राजा व मारन उनकी नहीं डी० एम्० के० की पसंद थे ,अतः उनके गलत कार्यों की जिम्मेवारी उनकी नहीं है ;दोषियों को बख्शा नहीं जायेगा ।
उन्होंने कहा कि विपक्ष सकारात्मक भूमिका नहीं निभा रहा है विशेषकर बी० जे० पी० , जबकि सरकार सही काम करना चाह रही है । संसद को ठप्प करना अच्छी बात नहीं है । विपक्ष उसी तरह आचरण कर रहा है जैसे सीधे -सादे बच्चे को शैतान बच्चे छेड़ते हैं ।
प्रधानमंत्री जी ने सारा दोष गठबंधन सरकार को दिया जिसमे प्रधानमंत्री को मजबूर होकर समझौत्ते करने पड़ते हैं , क्योकि किसी भी तरह सरकार चलाना लोकतान्त्रिक धर्म जो है
आखिर में प्रधान मंत्री जी ने सारे देश को बता दिया कि वे सीधे सच्चे इन्सान हैं ,अच्छा काम करना चाहते हैं , जो भी गलत हो रहा है उसके लिये दूसरे लोग जिम्मेवार हैं ,उनका कोई उत्तरदायित्व नहीं है । विपक्ष को उन्हें परेशान नहीं करना चहिये ।
अंत में बड़ी ही मासूमियत से एन मंजे हुए राजनेता की तरह उन्होंने कह ही दिया - मुझको यारो माफ़ करना .......मै मजबूर हूँ । .....इस मासूमियत पर कौन कुर्बान हो याये खुदा ....