शत शत नमन सुकवि 'प्रहरी ' जी को
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आज 19 अप्रेल जनपद जालौन के सशक्त कवि एवं गीतकार ,मुक्तक सम्राट के रूप में जाने वाले स्व. आदर्श 'प्रहरी' की जन्म तिथि है .मुझे उनका अनुज होने का सौभाग्य प्राप्त है .
उनके ' गीत संग्रह' 'प्यास लगी तो दर्द पिया है ' कीएक रचना प्रस्तुत है जो देश की वर्तमान स्थिति में भी सामयिक है -
परिवर्तन का राग चाहिये
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शीतलता अब नहीं ,गंग-यमुना के ज़ल में झाग चाहिये .
परिवर्तन का राग चाहिये .
दुर्बलता का भार सहन अब हो न सकेगा ,
पाकर ह्रदय विशाल ,कि कोई रो न सकेगा ,
शान्ति न अब, कायरता की पर्याय बनेगी ,
बहुत दिनों सोया भारत ,अब सो न सकेगा .
अपनी ही असावधानी से सन 62 में ,
खोये थे जो क्षेत्र वही भू -भाग चाहिये .
परिवर्तन का राग चाहिये .
कवि श्रंगारमयी कवितायें ,गा न सकेगा ,
वीर -भाव बन ओज ,लौट कर जा न सकेगा ,
बलिदानों की वेला है, शत शीश आज नत ,
कोई भी व्यवधान , प्रगति को ढा न सकेगा .
प्रियतम रण में भेज स्वयं त्योहार मनायें ,
आज वीर बाला का अमिट सुहाग चाहिये .
परिवर्तन का राग चाहिये .
देशवासियों को जब तक घर सुलभ न होंगे ,
ढकने को तन ,कपड़े जब तक दुर्लभ होंगे ,
आज स्वार्थ की उसी दीप्ति को बुझना होगा ,
उसी शिखा पर अर्पित ,अब नर-शलभ न होंगे .
आज प्रण करो संकल्पी आवाज लगा कर,
कुछ पाने से पहले करना त्याग चाहिये .
परिवर्तन का राग चाहिये .
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