Thursday, February 4, 2021

'चौरा- चोरी' कांड के शहीदों को शत् शत् नमन


             राष्ट्रीय आंदोलन में 'चौरा चौरी' कांड का बड़ा महत्व है। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के मध्य 4 फरवरी 1922 को कुछ लोगों की क्रोधित भीड़ ने गोरखपुर के चौरी-चौरा के पुलिस थाने में आग लगा दी थी. इसमें 23 पुलिस वाले मारे गये थे। इस घटना में तीन नागरिकों की भी मौत हो गई थी। इससे पहले यह खबर फैलने  पर कि चौरी-चौरा पुलिस स्टेशन के थानेदार ने मुंडेरा बाज़ार में कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मारा है, गुस्साई भीड़ पुलिस स्टेशन के बाहर जमा हो गयी। 
            इस हिंसक घटना के पश्चात महात्मा गांधी ने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था ।महात्मा गांधी के इस फैसले को लेकर क्रांतिकारियों का एक दल नाराज़ हो गया था। 16 फरवरी 1922 को गांधीजी ने अपने लेख 'चौरी चौरा का अपराध' में लिखा कि अगर ये आंदोलन वापस नहीं लिया जाता तो दूसरी जगहों पर भी ऐसी घटनाएँ होतीं। 
            उन्होंने इस घटना के लिए एक तरफ जहाँ पुलिस वालों को ज़िम्मेदार ठहराया क्योंकि उनके उकसाने पर ही भीड़ ने ऐसा कदम उठाया था तो दूसरी तरफ घटना में शामिल तमाम लोगों को अपने आपको पुलिस के हवाले करने को कहा क्योंकि उन्होंने अपराध किया था। 
            इस घटना के संदर्भ में गांधीजी पर राजद्रोह का मुकदमा भी चला था और उन्हें मार्च 1922 में गिरफ़्तार कर लिया गया था। 
            असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में 4 सितंबर 1920 को पारित हुआ था । गांधीजी का मत था कि अगर असहयोग के सिद्धांतों का सही ढँग से पालन किया गया तो एक वर्ष के अंदर ही अंग्रेज़ भारत छोड़कर चले जाएंगे। इस आंदोलन के अंतर्गत उन्होंने उन सभी वस्तुओं, संस्थाओं और व्यवस्थाओं का बहिष्कार करने का फैसला किया था जिसके तहत अंग्रेज़ भारतीयों पर शासन कर रहे थे। उन्होंने विदेशी वस्तुओं, अंग्रेज़ी क़ानून, शिक्षा और प्रतिनिधि सभाओं के बहिष्कार की बात कही  ।खिलाफत आंदोलन के साथ मिलकर असहयोग आंदोलन बहुत हद तक सफल भी रहा था.
            गोरखपुर ज़िले के लोगों ने 1971 में 'चौरी-चौरा शहीद स्मारक समिति' का गठन किया ।इस समिति ने 1973 में चौरी-चौरा में 12.2 मीटर ऊंचा एक मीनार बनाई. इसके दोनों तरफ एक शहीद को फांसी से लटकते हुए दिखाया गया था । इसे लोगों के स्वैच्छिक सहयोग से बनाया गया था। बाद में भारत सरकार ने शहीदों की याद में एक अलग 'शहीद स्मारक' बनवाया ।इसे ही हम आज मुख्य शहीद स्मारक के तौर पर जानते हैं। इस पर 'चौरी-  चौरा कांड' में हुये शहीदों के नाम खुदवा कर दर्ज किए गये हैं। 
            भारतीय रेलवे ने भी दो ट्रेन  चौरी-चौरा कांड  के शहीदों के नाम से चलायीं हैं। इन ट्रेनों के नाम हैं शहीद एक्सप्रेस और चौरी-चौरा एक्सप्रेस। 
             चौरी-चौरा  दो अलग-अलग गांवों के नाम थे। रेलवे के एक ट्रैफिक मैनेजर ने इन गांवों का नाम एक साथ किया था ।उन्होंने जनवरी 1885 में यहाँ एक रेलवे स्टेशन की स्थापना की थी ।इसलिए प्रारंभ में केवल रेलवे प्लेटफॉर्म और मालगोदाम का नाम ही चौरी-चौरा था।बाद में जब बाज़ार   शुरू हुए, वे चौरा गांव में लगने शुरू हुए । जिस थाने को 4 फरवरी 1922 को जलाया गया था, वो भी चौरा में ही था ।इस थाने की स्थापना 1857 की क्रांति के बाद हुई थी. यह एक तीसरे दर्जे का थाना था.
           'चौरी-चौरा'  की घटना को  आज 99 वर्ष पूरे हो रहे हैं।यह वर्ष इस घटना का शताब्दी वर्ष है।  इस अवसर पर आयोजित समारोह का वर्चुअल उदघाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज (4 फरवरी ) ने किया है।  उत्तर प्रदेश सरकार चौरी-चौरा की घटना  पर 'शताब्दी समारोह' का आयोजन कर रही है। 
          'चौरा - चौरा' कांड के शहीदों को शत् शत् नमन। 
 

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