किसी का नाम तो राष्ट्रपति पद के लिये घोषित होना ही था और हो भी गया .भाजपा में ही इस चयन पर ज़मीनी स्तर पर असंतोष के स्वर मुखर होते दिखाई दे रहे हैं .
यह दुर्भाग्य है देश का कि एक ऐसा संवैधानिक पद ,जो राज्य प्रधान होने के साथ संविधान के संरक्षक का भी है , वोट पलिटिक्स केभँवर मे फँस गया है .दलित ,अल्पसंख्यक ,उत्तर - दक्षिण और yesman जैसे आधारों पर इस पद पर उम्मीदवारों का चयन होता आया है .इस प्रक्रिया में कभी -कभी विद्वान व्यक्ति भी च चयनित हुए हैं जैसे - सर्वपल्ली डा. राधाकृष्णन ,ज़िन्होने Indian presidency को एक नया व गरिमापूर्ण आयाम दिया .कलाम साहब भी इसी श्रेणी में आते हैं .
पर सात दशकों पुराने हमारे परिपक्व लोकतंत्र में इन आधारों पर राष्ट्रपति पद पर चयन नहीं होना चाहिये वरन योग्यता व देश को दिये विशिष्ट योगदान के आधार पर इस पद पर चयन हो तो देश की छवि उज्जवल होगी .आखिर राष्ट्रपति अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व करता है .
Monday, June 19, 2017
राष्ट्पति पद पर उम्मीदवार का चयन
Tuesday, June 13, 2017
महात्मा गांधी - चतुर बनिया अथवा एक व्यवहारिक राजनीतिक व्यक्तित्व
आज कल भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा गान्धीजी को चतुर बनिया कहने को लेकर विरोध व समर्थन का दौर जारी है.
जहां तक अमित शाह की महात्मा गांधी जी पर टिप्पणी की बात है ,वे एक शक्तिशाली सत्तारूढ दल के अध्यक्ष व प्रधान मंत्री के बेहद भरोसे के आदमी हैं .वे किसी को कुछ भी कह सकते हैं .तुलसीदास कह ही गये हैं -
समरथ को नहिं दोष गोसाई .
गांधीजी मात्र बनिये नहीं थे .बनिया तो अपना लाभ देखता है .वे सच्चे अर्थों में महात्मा थे .उन्होने राजनीति में नैतिकता के मानदण्ड स्थापित किये .वे समझ चुके थे कि अंग्रेज सरकार की पाशविक शक्ति का मुकाबला हिंसा से नहीं किया जा सकता .इसलिये उन्होने अहिंसात्मक प्रतिरोध की नीति अपनाई .भारत की जनता के शांतिपूर्ण मनोविग्यान की उन्हें समझ थी. वे सफल भी हुए जबकि क्रांतिकारी आंदोलन अनेक क्रांतिकारियों की कुर्बानी देकर भी जनता में अधिक समर्थन न पा सका और असफल हो गया .
सुभाष चन्द्र बोस जैसे सेनानी ने गांधी जी को 'महात्मा 'कहा था .ऐसे महान व्यक्तित्व को 'चतुर बनिया' कहना उसकी महानता कम करना है .ठीक उसी तरह जैसे अपनी जननी को 'माँ ' कहना सम्मानजनक होता है 'बाप की लुगाई 'कहना अपमानजनक .जबकि दोनों का आशय एक ही है .
वर्तमान में अंध समर्थन या अंध विरोध का एक दौर वैचारिक स्तर पर चल पड़ा है .सोशल मीडिया भी इससे अछूता नहीं है .मैं सिर्फ यह कहना चाहूँगा -
"मैं दिये की भांति अंधेरे से लड़ना चाहता हूँ ,
हवा तो बेवजह मेरे खिलाफ हो जाती है ."
Friday, June 9, 2017
कालजयी कवि महात्मा कबीर ---जयंती पर शत शत नमन
आज संत कबीर की जयंती है .साहित्य का विद्यार्थी न होते हुए भी साहित्यिक अभिरूचि के कारण हिन्दी साहित्य विशेषकर कवियों के साहित्य को पढ़ा है .मुझे कबीर के साहित्य ने सबसे अधिक प्रभावित किया है .कबीर ने यह सिद्ध किया कीए साहित्य समाज कान दर्पण ही नहीं समाज का मार्गदर्शक भी होता है .सामाजिक विग्यान के विद्यार्थी के लिये तो कबीर का साहित्य एक महत्वपूर्ण दिशा प्रदान करता है .
कबीर ने न केवल मानवीय मूल्यो-सत्य ,सदाचरण,परोपकार व समाजसेवा- को जन जन तक पहुचाया वरन् धार्मिक पाखण्डों व सामाजिक कुरीतियों पर भी जबरदस्त प्रहार किया .हिन्दू व मुस्लिंम दोनों संप्रदायों के पाखण्डों पर उन्होने चुटकी ली. यथा -
"माला फेरत जुग गया ,मन कान गया न फेर ,
कर का मनका डार दे,मनका ,मनका फेर .:
------------------------
" मस्जिद ऊपर मुल्ला पुकारे ,
क्या तेरा साहब बहरा है ."
आज भी जबकि हिन्दू ,मुस्लिम सदभाव को बिगाडने में राजनीतिक कारणो से अनेक तत्व सक्रिय हैं ,कबीर के विचार भारत की गंगा -यमुनी संस्कृति को बचाने में मार्गदर्शक सिद्ध हो सकते है .
मैं जब हाई स्कूल में था तब मेरे मेरे हिन्दी के अध्यापक ब्रह्मलीन श्री शालिग्राम चतुर्वेदी ने कबीर पढाते समय निम्नांकित पंक्तियाँ बतायी थीं वे मुझे आज भी याद हैं और कबीर की प्रासंगिकता को आज भी स्पष्ट करती हैं -
"जबकि दो महान शक्तियों में था भेदभाव ,
एक अंश भी न था ,एक दूसरे में चाव ,
शस्य श्यामला धरा की,रम्यमयी गोद में ,
उपजा था एक लाल ,
कर्मवीर , धर्मवीर था कबीर,
देश की दशा के मर्म को जानता था .
एक अविछिन्नपूर्ण ब्रह्म पहचानता था ."
धन्य है भारत की धरती ज़िसने ऐसे महात्मा को जन्म दिया .