बुन्देलखंड के जालौन जनपद के मूल निवासी तथा मध्य प्रदेश में छिंदवाडा में अंग्रेजी साहित्य के प्रोफ़ेसर स्व ० गोपाल कृष्ण 'पंकज 'ने हिंदी गजल को एक नई पहचान दी है । प्रस्तुत है उनकी दो गजलें -
शिव लगे , सुन्दर लगे
शिव लगे , सुन्दर लगे,, सच्ची लगे,
बात कुछ ऐसी कहो अच्छी लगे।
मुद्दतों से मयकदों में बंद है ,
अब ग़ज़ल के जिस्म पर मिटटी लगे।
गीत प्राणों का कभी था उपनिषद ।
अब महज बाजार की रद्दी लगे ।
रक्स करती देह उनकी ख़्वाब में ,
अब महज डल झील में कश्ती लगे ।
जुल्फ के झुरमुट में बिदिया आपकी.
आदिवासी गाँव की बच्ची लगे।
याद माँ की ऊँगलियों की हर सुबह ,
बाल में फिरती हुई कंघी लगे ।
जिंदगी अपनी, समय के कुम्भ में ,
भीड़ में खोयी हुयी लड़की लगे ।
जिस्म 'पंकज 'का हुआ खँडहर मगर ,
आँख में बृज -भूमि की मस्ती लगे ।
हिंदी ग़ज़ल
उर्दू की नर्म शाख पर रुद्राक्ष का फल है ।
सुन्दर को शिव बना रही हिंदी गजल है ।
Sunday, August 7, 2011
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