हर साल हमारे देश में दशहरा पर रावण जलाया जाता है और 'बुराई पर अच्छाई की विजय' के प्रतीक के रूप में इसे ग्रहण किए जाने पर बल दिया जाता है । पर क्या यह मात्र रस्म- अदायगी नहीं होती है ? वास्तविक रावण तो हमारे अन्दर है और वह हमारी कुवृत्तियों ,स्वार्थों और सीमित दृष्टिकोणों के प्रतिबिम्ब के रूप में दृष्टिगोचर होता है। हमारे स्थापित एवं अनुभवसिद्ध सामाजिक व नैतिक मूल्यों के प्रति जनमानस की उदासीनता समाज में निरंतर विकसित होती नकारात्मक प्रवृत्तियों के लिए जिम्मेदार है।इसका परिणाम सामने है ।
हमारे जनतंत्र में जन गौण हो गया है और तंत्र मनमानी पर उतारू है । बुनियादी समस्याओं के प्रति व्यवस्था की उदासीनता स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। चाहे बाढ़ हो या सूखा ,दंगे हों या एक्सीडेंट ,तंत्र संवेदनहीन रुख अपनाता है । राहत के नाम पर खुली लूटपाट किसी से छिपी नहीं है । राजनैतिक परिवेश तो जनता को मोहरा समझता है । मंहगाई को चरम पर पहुँचाने के लिए जिम्मेवार सरकारें दलितों व शोषितों के नाम पर आँसू बहाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहतीं । वोट की राजनीति इनके लिए किसी भी दुःख -सुख से ऊपर है। जनता भी इतनी भोली है कि वह बुनियादी मुद्दों को भूल कर जाति,संप्रदाय ,क्षेत्र जैसे बहकावों में आकर सियासतदानों के कुचक्र का शिकार हो जाती है।
हमारा सामाजिक व राजनीतिक परिवेश इतना अधिक उलझावपूर्ण हो गया है कि आम आदमी भी ईमानदारी,सदाचरण एवं सिद्धान्तनिष्ठ्ता को मजबूरी मानने लगा है और भ्रष्ट आचरण और कमीशनखोरी आदि को मान्यता देने लगा है । मुझे सुकवि विनोद निगम की पंक्तियाँ याद आ रहीं हैं -
"बस्ती बड़ी अजीब यहाँ की;
न्यारी है तहजीब यहाँ की ;
जिनके सारे काम ग़लत हैं;
सुबह ग़लत है,शाम ग़लत है;
उनको लोग नमन करते हैं। "
यही कारण है कि रावण प्रतिवर्ष जल -जल कर भी मरता नहीं । रावण को यदि मारना है तो हमें जागरूक होना पड़ेगा । अपने अन्दर और समाज में व्याप्त नकारात्मक और स्वार्थी प्रवृत्तियों का दमन करने के लिए स्वयं को तैयार करना होगा । कोई राम हमारे उद्धार को नहीं आने वाला ,हमें स्वयं ही राम बन कर रावणों का संहार करने के लिए आत्मविश्वास अपने अंदर उत्पन्न करना होगा।
Wednesday, September 30, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
dashahra ki shubhkamnaayen. ham log is samay Mumbai men hain, is kaaran aapse milne nahin aa sake. Subhash bhi sath men hain.
ReplyDelete