Monday, September 21, 2009

सदभाव व भाईचारे की प्रतीक - ईद

आज सारा देश ईद मना रहा है। ईद -उल- फ़ित्र का पर्व रमजान के बाद ऐसी प्रसन्नता को अभिव्यक्त करता है जो एकता ,सदभाव,भाईचारा और सब कुछ भूल कर नए प्रेम संबंधों को प्रारम्भ करने पर बल देता है । ईद की नमाज रमजान की बाध्यताओं से मुक्ति के बाद ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करती है । ईद दीन- दुखियों के प्रति करुणा प्रदार्शित करने का भी संदेश देती है । सेवईयों से आदर- सत्कार खुशियों की मिठास को आपस बाँटना ही है। यह भावना हिन्दुओं के त्यौहार होली की याद दिलाता है जो आपस में बैर -भाव भुला कर प्रेम संबंधों की नई शुरुआत पर बल देता है। नजीर अकबराबादी ने ईद के माहौल व्यक्त करते हुए लिखा है-
" पिछले पहर से उठ के नहाने की धूम है ;
शीरो -शकर सेवईयाँ पकाने की धूम है ;
पीरो -जवां को नेमतें खाने की धूम है ;
लड़कों को ईदगाह में जाने की धूम है । "
हमारा देश' गंगा -जमुनी 'संस्कृति का वाहक रहा है । हिंदू -मुस्लिम के बीच मतभेद सियासी कुचक्र अधिक हैं ,आम आदमी एक दुसरे के सुख -दुःख में सदैव सहभागी रहा है । होली ,ईद ,रक्षाबंधन सभी में दोनों कोमों की प्रेमपूर्ण भागीदारी रहती है। शायर जावेद 'कुदारी' लिखते है -
" ग़ालिब मेरे चचा थे ,तुलसी थे मेरे बाबा ,
मैं शेर भी पढ़ूँगा ,चौपाइयों के साथ। "
यह सामंजस्य और सदभाव ही हमारे सामाजिक परिवेश की ताकत है ,जिसके लिए' इकबाल' ने लिखा था -
'क्या बात की मिटती हस्ती नहीं हमारी '

2 comments:

  1. ग़ालिब मेरे चचा थे ,तुलसी थे मेरे बाबा ,
    मैं शेर भी पढ़ूँगा ,चौपाइयों के साथ। "...bahut achhi post sahi me esse liye hmari hasti mit nahi pati...

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  2. शायर जावेद 'कुदारी' लिखते है -
    " ग़ालिब मेरे चचा थे ,तुलसी थे मेरे बाबा ,
    मैं शेर भी पढ़ूँगा ,चौपाइयों के साथ। "
    यह सामंजस्य और सदभाव ही हमारे सामाजिक परिवेश की ताकत है ,जिसके लिए' इकबाल' ने लिखा था -
    'क्या बात की मिटती हस्ती नहीं हमारी ........

    bahut hi prernadaayak lekh.............


    Regards.........

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