हमारे देश में शिक्षक को सदैव ही सम्मान का स्थान दिया गया है । शिक्षक से अपेक्षा की जाती है कि वह सामान्य जन से अलग एक नैतिक मानदंडों के वाहक ,सामाजिक मूल्यों के उपदेशक एवं त्यागी विद्वान् की तरह दिखे । इन अपेक्षाओं ने शिक्षक को हमेशा अपनी अनेक अभिलाषाओं को दम तोड़ते रहने पर विवश किया । इससे समाज में शिक्षक की स्थिति एक निरीह प्राणी की हों गयी । वह बेचारे की श्रेणी में आ गया -बेचारा मास्टर । बदलते सामाजिक मूल्यों एवं परिवेश में भी शिक्षक के प्रति समाज की अपेक्षायें पहले की तरह ही रहीं ।
स्वतंत्र भारत में शिक्षकों का महिमामंडन हमेशा ठीक उसी तरह किया गया जैसे हम आज तक 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते ' कहते नहीं थकते,पर नारियों के प्रति अत्याचारों के प्रति कोई कमी नहीं आयी है। शिक्षकों की आर्थिक सुरक्षा अवश्य बड़ी है पर अपेक्षायें जस की तस हैं । समाज में बढ़ते धन एवं बल के महत्व ने शिक्षकों के प्रति लोगों का असम्मान तो बढ़ा ही है उनके प्रति असहिष्णुता में भी वृद्धि हुई है। इसके उदाहरण प्रायः परीक्षाओं के समय नक़ल रोकने के शिक्षकों के प्रयासों के परिणामस्वरूप उन पर जानलेवा हमलों (कभी -कभी हत्या भी )के रूप में दिखते हैं । छात्रसंघों के चुनावों में भी ऎसी स्थिति अक्सर दिख जाती है। ऎसी घटनाओं के उत्तरदायी दबंग पृष्ठभूमि के गुंडे टाइप के आसामाजिक तत्व होते हैं जिन्हें राजनीतिक व प्रशासनिक संरक्षण प्राप्त होता है। मध्य प्रदेश में प्रो ० सभरवाल हत्याकांड में गुंडों का राजनीतिज्ञों से नंगा गठजोड़ खुल कर उजागर हुआ और शिक्षक समुदाय की असहायता भी।
डा ० राधाकृष्णन ने अपने जन्मदिवस पर शिक्षक समुदाय को गौरवान्वित होने का अवसर प्रदान किया इसके लिए शिक्षक उनका ऋणी है। इस अवसर चाहे- अनचाहे सरकार व समाज के ठेकेदारों को शिक्षकों की दशा पर घडियाली आँसू बहाने का अभिनय करना ही पड़ता है ,पर शिक्षक जिस सम्मान के हक़दार है उसे देने की इच्छाशक्ति समाज अथवा शासनतंत्र में कहीं भी नहीं दिखाई देती।
इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इस स्थिति के लिए शिक्षक स्वयं भी एक सीमा तक उत्तरदायी है। कुछ शिक्षकों का ग़लत आचरण पूरे समुदाय की छवि ख़राब करता है। पर उनमें अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता का अभाव भी उनकी स्थिति के प्रति उत्तरदायी है। यदि शिक्षकों को समाज की मुख्य धारा में अपनी भूमिका निभानी है तो उन्हें अपनी कमियों पर विजय प्राप्त कर अपने अधिकारों के प्रति संघर्ष करना होगा ,संतुष्ट हों कर बैठने से काम नहीं चलेगा ।
Friday, September 4, 2009
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Shikchak diwas par bahut hi shandar rachna prastut ki hai aapne .....!!
ReplyDeleteकुछ शिक्षकों का ग़लत आचरण पूरे समुदाय की छवि ख़राब करता है। पर उनमें अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता का अभाव भी उनकी स्थिति के प्रति उत्तरदायी है। यदि शिक्षकों को समाज की मुख्य धारा में अपनी भूमिका निभानी है तो उन्हें अपनी कमियों पर विजय प्राप्त कर अपने अधिकारों के प्रति संघर्ष करना होगा ,संतुष्ट हों कर बैठने से काम नहीं चलेगा । main apki baat se sahmat hun....achhi post hai..
ReplyDeleteइस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इस स्थिति के लिए शिक्षक स्वयं भी एक सीमा तक उत्तरदायी है। कुछ शिक्षकों का ग़लत आचरण पूरे समुदाय की छवि ख़राब करता है।
ReplyDeleteसही कहा आपने
aaj ki shikshakon ki dayniya dasha na keval samaj ke naitik patan ki parichayak hai apitu is or bhee ishara karti hai ki desh me shiksha tatha shikshak ka prabhandhan bhee thik nahin hai....
ReplyDeleteuccha shiksha ka istar nirantar girta ja raha.Yeh atyant durbhagya purna hai ki abhi tak hum shishakon ke pravesh ke liye koi sajha avum kargar karyakram nahin shuru kar paye hain..
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! बिल्कुल सच्चाई का ज़िक्र किया है और मैं आपकी बातों से पूरी तरह से सहमत हूँ! शिक्षक दिवस पर बेहतरीन पोस्ट के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!
ReplyDeleteमेरे नए ब्लॉग पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com
ye ish desh ka durbhagya hai ki ab log Education me isliye aa rahe hain kyonki aur doosari jagah NAUKARI aasaan nahin hai. AB SHIKSHA BHI EKNAUKARI HI HAO GAI HAI.
ReplyDeleteuncle CHARN SPARSH,
ReplyDeleteBhaiji ji ke blog se aapke samman ke baare men ataa chalaa. SHUBHKAMNAYE.
Aap hamesha ham logon ke prerna strot rahe hain.