उत्तर प्रदेश में सत्तासीन सरकार की वरीयता सूची में स्मारकों का विशेषकर कांशीराम स्मारक का स्थान सबसे ऊपर है । सुप्रीम कोर्ट ने इसके निर्माण में किए जा रहे सार्वजानिक धन के अपव्यय पर प्रश्न उठाया तो फिलहाल निर्माण रोक दिया गया है । मुख्यमंत्री का मान्यवर काशीराम के प्रति प्रेम समझा जा सकता है क्योंकि काशीराम जी की सारी राजनीतिक विरासत बैठे - बिठाये उन्हें मिल गयी । पर काशीराम ने जीवन भर जिन दलितों और शोषितों के आत्मसम्मान एवं स्थिति में सुधार के लिए संघर्ष किया उनकी ओर से वे आँखे मूंदे हैं।
प्रदेश में सूखे की त्रासदी किसान भोग रहे है ,उन्हें पेट की आग बुझाने के लिए अपनी बेटियों और पात्नियों तक को गिरवीरखना पड़ रहा है। इन किसानों में दलितों और शोषितों की संख्या काफी है। दबंगों के उन पर कहर की घटनायें आम हो गयीं है । प्रदेश में कानून व व्यवस्था जर्जर दिख रही है। हत्या ,बलात्कारऔर लूट की वारदातें निरंतर बढ़ रहीं हैं। पर मुख्यमंत्री ऐसे स्मारक बनवाने में रूचि ले रही हैं जो उन्हें अमर कर दें।
अमरता तो अपने कामों से प्राप्त होती है . अमर तो रावण भी नहीं हो पाया था। राम, कृष्ण .बुद्ध , कबीर ,रैदास , गाँधी , सुभाष ,अम्बेदकर,नेहरू, शास्त्री आदि अपने कामों के कारण जन-जन के सम्मान के पात्र आज भी बने हुए हैं न कि अपने स्मारकों के कारण। जनता कितनी भी अबोध व अशिक्षित क्यों न हो ,पर पेट की आग कभी भी किसी ऐसे विप्लव को जन्म दे सकती है जिसमें सारी व्यवस्था जल कर राख हो सकती है। राजनेताओं को इस तथ्य को समझना चाहिए।
ऐसा लगता है कि हमारे संघीय ढाँचे में सत्तासीनों के ऊपर अंकुश लगाने का काम सिर्फ़ सुप्रीम कोर्ट का ही रह गया है । हम सभी को ऐसे उपायों की खोज करनी चाहिए जिनसे सरकारों या किसी एक सत्तारूढ़ नेता की सनक के कारण जनता की गाढ़ी कमायी बर्बाद न हो। यह आज का एक ज्वलंत प्रश्न है।
Wednesday, September 9, 2009
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bahut dinon ke baad MANNIYA NYAYALAY ne mayawati ke VIRODH men koi nirnay diya hai.
ReplyDeletechaliye janta ke KHOON PASIINE ki KAMAAI ko kuchh had tak ROKA ja sakta hai.