आज भारत के स्वाधीनता संग्राम के सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ने का एक संगठित प्रयास करने वाले प्रमुख नायक सुभाष चंद्र बोस की जयंती है।वे उन भारतीय क्रांतिकारियों में से थे, जिन्होंने सक्रिय रूप से विश्व बड़ी शक्तियों के साथ गठबंधन का प्रयास किया और ब्रिटिश सत्ता का प्रतिरोध करने के लिए एक भारतीय राष्ट्रीय सैनिक संगठन 'आज़ाद हिंद फौज' का नेतृत्व किया जिसमें ब्रिटिश साम्राज्यवाद का मुकाबला करने के लिए हिंदू और मुस्लिम एकजुट होकर उनके पीछे लामबंद हो गये।
वे कांग्रेस के युवा नेता थे। संवैधानिक सुधारों के बजाय समाजवादी सुधारों की ओर बोस के झुकाव ने उन्हें कांग्रेस के राजनेताओं के बीच लोकप्रिय बना दिया था। 1939 तक कांग्रेस में उनका एक प्रमुख स्थान था। उन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष (त्रिपुरी सत्र) के पद से इस्तीफा देने के बाद अपनी पार्टी (फॉरवर्ड ब्लॉक) बनाई।
उड़ीसा में एक धनी बंगाली परिवार में जन्मे सुभाष चंद्र बोस प्रारंभ से ही अत्यंत मेधावी थे। वे भारतीय सिविल सेवा में भी चयनित हुये जिससे उन्होंने 1921 में त्यागपत्र दे दिया और गाँधीजी के नेतृत्व में नेहरू के साथ राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया। पर गाँधी जी के शांतिपूर्ण और समझौतावादी रवैये की तुलना में उनकी राजनीतिक सोच अधिक उग्रवादी और क्रांतिकारी थीं।
1941 में, उन्होंने हिटलर से मुलाकात की और भारतीय सशस्त्र बलों को जर्मनी की सहायता के लिए अनुरोध किया।
उन्होंने आज़ाद हिंद रेडियो शुरू कर दिया था और जर्मनी से भारतीय युद्धबंदियों (POW) को सुरक्षित लाने में सफल हुये। 1941-42 में जापानी सेनाओं ने प्रीतम सिंह के नेतृत्व में प्रवासी भारतीयों को अपना समर्थन दिया था। जून 1942 में कैप्टन मोहन सिंह और दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ अन्य युद्धबंदियों के नेतृत्व में 'इंडियन इंडिपेंडेंस लीग' की एक सेना का गठन किया गया।
रासबिहारी बोस के कहने पर सुभाष चंद्र बोस ने 1943 में भारतीय राष्ट्रीय सेना का (INA) का नेतृत्व ग्रहण किया जिसे 'आज़ाद हिंद फ़ौज' के नाम से जाना जाता है। इस संगठन की गतिविधियों और किसी भी मूल्य पर भारत को स्वाधीन कराने की बोस के संकल्प ने उन्हें और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का एक महान नायक बना दिया था। बोस और 'आज़ाद हिंद फौज' तत्समय युवाओं के लिए प्रेरणा के स्रोत थे उनके नेतृत्व कौशल और प्रेरक भाषणों ने देशवासियों के हृदय और मस्तिष्क पर अमिट प्रभाव छोड़ा ।
ब्रिटिश सत्ता के प्रतिरोध में सुभाष चंद्र बोस के संघर्षों ने उन्हें बर्लिन में 'नेताजी' की उपाधि दिलाई थी। उनके सर्वोत्तम प्रयासों के बाद भी द्वितीय विश्व युद्ध में जापान और जर्मनी जैसी शक्तियों के साथ-साथ सामरिक सैन्य विफलताओं से वे सफल नहीं हो सके लेकिन उनके विचारों और प्रयासों ने भारतीय स्वाधीनता की नींव तैयार कर दी। भारत के इस महानायक को कोटि कोटि नमन।
🙏🙏🙏