Wednesday, September 2, 2009

उठें तरंगें जीवन की

छात्र जीवन में हमारे एक अध्यापक अक्सर बड़ी ही प्रेरक बातें बताते थे जो आज भी मेरे मानस पटल पर अंकित हैं । प्रस्तुत है उनकी बताई एक कविता का एक अंश -
" वह तो एक धूलिकण में भी ,कहते है अस्तित्व जिसे ;
शुष्क पत्र सा उड़ते जाना, जीना कहते नहीं इसे ;
जीवन में भी जब जीवन हो ,तब सजीवता है मन की ;
नहीं प्रवाह मात्र में गति है, उठें तरंगें जीवन की । "
शायद यह लाइनें किसी को एक दिशा प्रदान कर सकें।

1 comment:

  1. वह तो एक धूलिकण में भी ,कहते है अस्तित्व जिसे ;bahut sahi baat hai ...

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