Tuesday, July 14, 2009
बेशर्मी का जश्न . ..
२६ अगस्त २००६ को मध्य प्रदेश में माधव कालेज में हुए प्रो० एच ० एस० सभरवाल हत्याकांड के सभी अभियुक्तों को नागपुर की अदालत ने अभियोजन पक्ष की आरोप सिद्ध करने में असफलता के कारण बरी कर दिया। आरोपी बी ० जे ० पी० की युवा शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के कार्यकर्ता थे। इनके समर्थन में सरकार ,यहाँ तक की मुख्य मंत्री भी इस कदर खुल कर आ गए थे कि उच्च अदालत को यह मामला राज्य से बाहर भेजना पड़ा था। ............. यह घटना हमारे समाज एवं तंत्र कि कई विसंगतियों एवं संवेदनहीनता की पराकाष्ठा की ओर इशारा करती है। प्रो ० सभरवाल पर हमला कालेज में व्यवस्था बनाये रखने की प्रतिबद्धता की कारण हुआ। राजनीतिक दबाब के कारण प्रशासन उदासीन तो रहा ही ,घटना घट जाने के बाद भी उसका समर्थन आरोपियों के साथ रहा । दुर्भाग्य की बात यह थी कि सरकार एवं विद्यार्थी संगठन उस विचारधारा से सम्बंधित थे जो भारतीय संस्कृति की रक्षा की ठेकेदार होने का दंभ भरती है एवं गुरु के प्रति श्रद्धा को आदर्श मानती है।...... .... यह स्थिति हमारी न्यायिक व्यवस्था की खामियों की ओर भी संकेत करती है। यह हमारे देश में कानून व व्यवस्था की उस स्थिति को भी स्पष्ट करती है जहाँ सत्ता की हनक के कारण खुलेआम हुए इस हत्याकांड का कोई भी चश्मदीद गवाह नहीं मिल पाया। जिसने भी पीड़ित पक्ष का साथ देने की कोशिश की, उसका प्रशासन समर्थित गुंडों द्वारा उत्पीड़न किया गया। आख़िर जहाँ राज्य का मुख्यमंत्री ही खुलेआम आरोपियों की वकालत कर रहा हो वहाँ प्रशासन की क्या औकात?............. नागपुर अदालत के निर्णय के बाद जिस बेशर्म तरीके से जश्न मनाया जा रहा है और ख़ुद राज्य के मुख्य मंत्री खुशी व्यक्त कर रहे है ,यह चुल्लू भर पानी में डूबने की बात है। लगता है रावण को सत्य असत्य की व्याख्या करने का अधिकार दे दिया गया है। यह स्थिति हमारे सामाजिक व राजनीतिक परिवेश की संवेदनहीनता को उजागर करती है। इस पर मंथन करने की आवश्यकता है।
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वाकई यह बेशर्मी का जश्न ही है और हम रोज रोज होने वाली इन बेशर्मियों के गवाह हैं। और इन सबके बावजूद हमारे समाज को सहिष्णु होने का तमगा दिया जाता है। प्रो सभरवाल के मामले में यह हाल है तो देश की 80 करोड़ गरीब आबादी का क्या होता होगा यह भी सोचने की बात है। पर मुख्य बात यह है कि हमारी कानून व्यवस्था इतनी असहाय क्यों है और इसे सुधारने के लिए कहीं से कोई पहल नहीं दिखाई पड़ती है। ऐसी घटनाओं ने अगर समाज को विचलित करना बंद कर दिया है तो सोचना पड़ेगा कि हम सभ्यता के युग के जी रहे हैं या असभ्यता के।
ReplyDeleteयह किसी एक राजनीतिक दल की बात नहीं है आज सभी राजनीतिक दल अपने-अपने प्रभुत्व वाले इलाकों में यही कर रहे हैं। और राजनीतिक दलों से हमें कोई उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए।
यह घटना हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था की स्थिति को भली-भांति दर्शाती है।
ReplyDeleteइस निर्णय और इसके कारणों के बारे में क्या कहा जाये?