Wednesday, July 22, 2009

देशहित और समझौता

हिलेरी क्लिंटन की भारत यात्रा के बाद से सरकार पर निगरानी समझौते को लेकर विपक्षी हमले तेज हो गए है। यहाँ तक कि कांग्रेस पार्टी ने भी सरकार को अकेला छोड़ दिया है। कांग्रेस प्रवक्ता का यह कथन कि सरकार के समझौते के बारे में सरकार से पूछिए ,सरकार की स्थिति को और भी जटिल बना देता है। कोई भी समझौता जो देश की संप्रभुता को प्रभावित करता है.कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता। केवल इस आधार कि परमाणु समझौते के पालन में हमें आगे सहूलियत होगी, ऐसे प्राविधानों को स्वीकार नहीं किया जा सकता जिनके दूरगामी परिणाम हमारे लिए भयावह हों। हमें इतिहास से सबक लेकर अमेरिका के पाकिस्तान प्रेम से भी सावधान रहने की जरूरत है। सरकार को अपनी जबाबदेही स्वीकार करनी ही होगी। मुझे सुकवि आदर्श 'प्रहरी' की निम्नांकित पंक्तियाँ आज भी प्रासंगिक लगती हैं -"समझौते तो हों पर इतना याद हो , राष्ट्र प्रथम हो जो हो इसके बाद हो; रखें सभी राष्ट्रों के प्रति सदभावना , ऐसा हो कि बाद में पश्चाताप हो। "

1 comment:

  1. अब पश्चाताप हो रहा है कल की घटना पर। देश के पूर्व राष्ट्रपति का देश में ही ये हाल है तो समझा जा सकता है।

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