Sunday, July 26, 2009

आँसू के फूल उनको जो लौट कर न आये.

२६ जुलाई १९९९ हमारे देश का एक गौरवपूर्ण अध्याय -कारगिल विजय । एक दशक पूरा हो चुका है और सारा देश हमारे सैनिकों की शौर्य गाथा को याद कर रहा है । कितने वीर शहीद हो गये ,कितनी माताओं की गोद सूनी हो गयी,कितने बच्चे अनाथ हो गये और कितने परिवार बेसहारा हो गये ,इसकी कल्पना करना कठिन है। विजय की दशाब्दी मानते समय शहीदों के परिवारों की क्या स्थिति है ?इस पर भी हमें ध्यान देना चाहिए। अभी कुछ दिन पहले 'कारगिल विजय समारोह ' मनाने पर भी विवाद दिखा । एक मंत्री ने इसे एन० डी० ए० के कार्यकाल से जोड़ दिया। शहादत पर सियासत का जो तमाशा हमारे देश में प्रायः दिखता है, यह बेहद शर्मनाक है। हमारे सैनिकों की जितनी प्रशंसा की जाए वह कम है। उनके बलिदान से ही हम आज सुरक्षित बैठे हुए हैं । कभी - कभी उनकी कुर्बानियाँ कूटनीतिक निर्णयों की बलि चढ़ जाती है। १९६५ एवं १९७१ की विजय के बाद ऐसा हुआ। किंतु हमारे जवान बिना किसी शिकायत के अपनी जान की बाजी लगा कर आज भी दुश्मन एवं आतंकियों का मुकाबला करने के लिए सन्नद्ध है। उनके इस जज्बे को सलाम। कारगिल विजय के बाद जो जवान जीत कर लौटे उनका सरे देश ने पलक -पांवड़े बीचा कर स्वागत किया ,किंतु जो बलिदान हो गये उनके प्रति देश सदा ऋणी रहेगा और नम आंखों से उन्हें श्रद्धांजलि निवेदित करता है- "फूलों के हार उनको ,जो साथ विजय लाये ; आँसू के फूल उनको जो लौट कर आये। "(मंजुल मयंक )

1 comment: