Thursday, July 2, 2009

समलैंगिकता -खुले दिमाग से सोचिये. .

सम्लेंगिकता पर दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के बाद इस मुद्दे पर एक बहस छिड़ गई है। लगभग सभी धर्मों के प्रमुख लोगों ने समलैगिकता को अनैतिक और विकृत मानसिकता का परिणाम बताया है । वहीं प्रगतिशील एवं व्यावहारिक सोच रखने वाले वर्ग ने इस पर विचार करने और बदलते परिवेश में स्वीकार करने की आवश्यकता पर बल दिया है। सेक्स की पूर्ति मानव की स्वाभाविक एवं अनिवार्य आवश्यकता है और इसके लिए वह कोई न कोई रास्ता आदिकाल से निकालता रहा है। समाज में सभ्यता के विकास के साथ - साथ इस प्रवृत्ति के समाधान के लिए विवाह संस्था का जन्म हुआ । वैश्यावृत्ति की प्रथा भी एक विकल्प के रूप में अस्तित्व में आई । प्राचीन भारत में ऐसे उल्लेख मिलते है जहाँ वैश्याओं को समाज में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। आधुनिकीकरण ,पश्चिमीकरण एवं वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप समलैगिकता की प्रवृत्ति एवं उसकी सामाजिक मान्यता का प्रश्न खुले रूप में सामने आया । इस समस्या के मानवीय ,सामाजिक एवं व्यावहारिक पक्षों पर सम्यक रूप से विचार करने की आवश्यकता है। पूर्वाग्रहों एवं अतिवादी सोच दोनों से ही समस्या उलझेगी। शेक्सपियर का यह कथन हमें ध्यान में रखना होगा,"There is nothing good or bad in this world but thinking makes it so."

3 comments:

  1. सही कहा, इस विषय पर चर्चा दरकार है।

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  2. apne sahj kaha klइस समस्या के मानवीय ,सामाजिक एवं व्यावहारिक पक्षों पर सम्यक रूप से विचार करने की आवश्यकता है। पूर्वाग्रहों एवं अतिवादी सोच दोनों से ही समस्या उलझेगी। शेक्सपियर का यह कथन हमें ध्यान में रखना होगा,"There is nothing good or bad in this world but thinking makes it so."

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