Wednesday, July 29, 2009

सुन महबूबा , मै नहि रास रचायो

बेचारे मासूम उमर अब्दुल्ला ,इस्तीफा देने का हाई मौरल करेक्टर दिखाने के बाद भी जम्मू कश्मीर विधान सभा में विपक्ष की नेता महबूबा मुफ्ती उन्हें बख्सने को तैयार नहीं। हालाँकि गवर्नर ने उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया ,केन्द्र सरकार ने भी उन्हें क्लीन चिट दे दी ,लेकिन विपक्ष है कि 'मुर्गे की एक टांग ' की रट लगा कर आरोप पर आरोप लगाये जा रहा है। वालिद फारूक भी उनके बचाव में आगे आ गए हैं। मीडिया की भी सहानुभूति उनको मिल गई है। उमर अपने राहुल बाबा के दोस्त हैं इसलिए कांग्रेस भी उनका साथ दे रही है। पर असल मामला तो जम्मू कश्मीर की जनता के मिजाज का है ,जनता को भी भरोसा होना चाहिए तभी बात बनेगी। जनता को इस बात से ज्यादा सरोकार नहीं कि स्पीकर की अवमानना,माइक तोड़ना या सी० बी० आई० की क्लीन चिट की कापी फाड़ना असंसदीय है या नहीं। महबूबा और उमर दोनों ने विरासत में राजनीतिक दाँवपेंच सीखे हैं। जनता में कैसे पैठ बनाई जाती है ,कैसे उसे बरगलाया या बहकाया जाता है ,इसके गुर दोनों को मालूम है । खेल राजनीतिक शतरंज का है कौन जीतेगा, यह देखना रोचक होगा।

3 comments:

  1. मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! अब तो मैं आपका फोल्लोवेर बन गई हूँ इसलिए आती रहूंगी!
    मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है-
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  2. इस पर महबूबा ने भी उमर से कह दिया -
    ‘‘ओ मेरे उमर न जा,
    इतनी सी बात पे न जा।
    ये है राजनीति की डगर,
    न होगा तुझपे असर।
    ओ मेरे उमर न जा....’’

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