Saturday, July 11, 2009

अहो ! यह मूर्तिमय देश हमारा .

हमारे देश में नायकों का सदैव से सम्मान किए जाने की परिपाटी रही है। उनकी मूर्तियाँ लगाना भी आदर प्रकट करने का एक तरीका है। गत साठ दशकों से अधिक के लोकतंत्र में इस प्रवृत्ति का चलन कुछ अधिक ही बढ गया है। दुःख इस बात का है कि हमारी वोट की राजनीति ने महापुरुषों को भी जातिगत आधार पर बाँट दिया है। जब एक वर्ग सत्ता में आता है तो वह अपने वर्ग के नायकों की मूर्ति ही स्थापित करना चाहता है। यहाँ तक तो बात ठीक है पर समस्या वहां खड़ी हो जाती है जब एक वर्ग के द्वारा अन्य वर्गों के महापुरुषों की अवहेलना की जाने लगती है अथवा उनका अपमान किया जाने लगता है। असहिष्णुता की यह बढती प्रवृत्ति देश में सामाजिक सदभाव का विनाश ही करेगी । हमें इसे हतोत्साहित करना चाहिए। अब तो राजनेता अपने जीवनकाल में ही अपनी प्रतिमा लगवा कर अमर होना चाहते है। इसके लिए वे उस सार्वजानिक धन का अपव्यय करने से भी नहीं चुकते जिसे गरीबों की भलाई के लिए व्यय होना चाहिए। वोट की राजनीति ने सभी के मुँह सिल रखे हैं। मूर्तियाँ लगाने की होड़ ने एक उन्माद का रूप ले लिया है। बाद इन मूर्तियों के रख -रखाव पर भी कोई ध्यान नहीं देता।क्या कुछ दिनों में हमारा देश विश्व में एक मूर्ति प्रधान देश के रूप में जाना जाएगा? इस समस्या पर सम्यक विचार करने की आवश्यकता है।

3 comments:

  1. सभी इसी कारण चुप हैं क्योंकि उनके मन में है कि हो सकता है कि कभी उनकी भी मूर्ति लग जाये। (भले उन्हें खुद ही लगानी पड़े)
    यही तो हो रहा है प्रदेश में।

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  2. Kumarendr ji ki bat se kuch had tak ham bhi sahmat hai,Dekha jaye to prachin kal se hi ham muara desh murt poojak raha hai,aj kuch sarkare aisa kar rahi hai to isame burai hi kra hai?

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  3. Kumarendr ji ki bat se kuch had tak ham bhi sahmat hai,Dekha jaye to prachin kal se hi hamara desh murt poojak raha hai,aj kuch sarkare aisa kar rahi hai to isame burai hi kra hai?

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