तारीफ करने वाले हर युग में रहे हैं। हमारे यहाँ प्राचीनकाल में चारण हुआ करते थे जिनका काम राजाओं की स्तुति करना था। वे कहते थे की हमारे राजा के प्रताप के कारण सूर्य अस्त हो जाता है और निशा का अधेरा छट जाता है। राजा भी उनके कथ्य की असलियत जानता था । समय बदलने के साथ तारीफ का ढंग भी बदला। अब अफसर के कुछ गुणों को बार -बार दोहराया जाता है। अफसर भी समझने लगता है कि वास्तव में वह श्रेष्ठ है और उसका अहंकार बढ़ जाता है। अफसर के पास हाजिरी देने वालों का एक खास मकसद होता है -अपने हित की सिद्धि । सहयोगियों की निंदा में उन्हें खास मजा आता है।
ये आधुनिक चारण हर जगह पाये जाते हैं। राजनीति,सरकारी -गैरसरकारी कार्यालय ,शिक्षण संस्थान सभी जगह ये मिल जायेगें । अपना काम छोड़ कर दूसरों को नसीहत देने में ये माहिर होते हैं । अफसर भले ही बदल जाये पर ये अधिकतर अपरिवर्तित रहते हैं। नए अफसर की तारीफ करते हुये ये पुराने अफसर की कमियाँ गिनने में भी ये माहिर होते हैं। सुकवि स्व० आदर्श 'प्रहरी 'ने इनकी विशेषताओं को व्यक्त करते हुए लिखा है -
" हम बदले और तुम बदले ,मगर वे क्यों नहीं बदले ?
ये बेगम,बादशाह बदले,गुलमते क्यों नहीं बदले?
बदलने को बदल जाती है दुनियाँ सारी पलभर में,
मगर ये चाय -पार्टी के चमचे क्यों नहीं बदले?"
बहुत मुश्किल होता है अफसर का इन चमचों के चंगुल से बच पाना। जो इनकी असलियत समझ गया ,समझो वह फजीहत से बच गया।
Saturday, August 29, 2009
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चमचागीरी का एक उदाहरण इस तरह से देते हैं कि
ReplyDeleteराजा ने कहा रात है,
रानी ने कहा रात है,
जनता ने कहा रात है,
ये सुबह सुबह की बात है।
आपके इस चमचा वाले कथन को पढ़कर हमें अपने पुराने दिनों की यादे तaजा हो गयी ,वास्तव में आज के इस चमच्वादी युग में सफलता ऐसे ही लोंगों के हाथ लगाती है . जy हो चम्चावादिओं की .
ReplyDeleteबदलने को बदल जाती है दुनियाँ सारी पलभर में,
ReplyDeleteमगर ये चाय -पार्टी के चमचे क्यों नहीं बदले?"
बहुत खूब
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! बिल्कुल सच्चाई किया है ! चमचागिरी तो चारों तरफ़ देखने को मिलता है और ऐसा लगता है जैसे बिना चमचे का कोई काम नहीं हो सकता! क्या ज़माना आ गया!
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