Sunday, August 9, 2009

सरकारों की बेशर्मी

हमारे प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह का मनमोहक अंदाज निराला है. दो दिन पहले बड़ी मासूमियत से वे बोले कि जनता को और अधिक महगाई सहने के लिए तैयार रहना चाहिए।गोया कि जैसे कोई बोनस कि घोषणा कर रहे हों । उनके स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद भी स्वाईन फ्लू के मामले में मृतक बच्ची के परिवार की गलती बता कर अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहते है। इस बीमारी के लक्षण व बचाव के बारे में भी सरकार जनता को बता पाने में अब तक सफल नहीं हो पाई है। गरीब भुखमरी से कराह रहा है और सरकारें कान में तेल डाले बैठीं हैं । बाड़ और सूखे ने प्रभावित क्षेत्रों में लोगों का जीना मुश्किल कर दिया है। प्रशासन इसे प्रतिवर्ष होने वाली सामान्य घटना से अधिक कुछ नहीं मानता।
यूं ० पी ० में तो स्थिति और भी विचित्र है। सूखे से ज्यादा चिंता पार्कों के सुन्दरीकरण व हाथियों की मूर्तियों की है। भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है। कहा जाता है कि उच्च शिक्षा में प्रवक्ता पद पर नियुक्ति का रेट दस लाख और बेसिक शिक्षा में मनचाही जगह ट्रांसफर कराने का रेट चालीस हजार रुपये है। शिक्षकों के सैकड़ों पद खाली पड़े हैं ,पर उन पर नियुक्ति नहीं हो रही है। उच्च शिक्षा में मानदेय पर नियुक्त शिक्षकों को तीन वर्ष में नियमित करने का पिछली सरकार का निर्णय भी भ्रष्टाचार व मनमानी की भेंट चढ़ गया। लगता है कि सरकार व प्रशासन बेलगाम एवं संवेदनहीन हो गया है। लेकिन वाह री हमारी जनता! सब कुछ सहन करती जा रही है।
हमारे नीति निर्माता यदि जल्दी नहीं चेते तो स्थिति भयावह हो सकती है। आरक्षण के नासूर ने वैसी भी समाज में व्यापक असंतोष पैदा कर दिया है; महगाई की विकरालता, जन समस्याओं के प्रति शासन की उदासीनता ,योग्यता की उपेक्षा और सत्ता में बैठे राजनीतिज्ञों की लूट -खसोट से कहीं असंतोष का ज्वालामुखी फट गया तो नक्सलवादी व माओवादी जैसी गतिविधियाँ सारे देश को ग्रसित कर सकतीं हैं और स्थितिहाथ से निकल सकती है।

5 comments:

  1. कुछ भी कर लो अपने मनमोहन जी जागनेवाले हैं नहीं | इन सब चीजों पे उनकी नींद नहीं उडती |

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  2. देश के नागरिकों के कलेजे में जो लावा धधक रहा है ...किसी बड़े विस्फोट का सामना करना होगा ...!

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  3. इस देश में अब लोकतन्त्र के नाम पर इतना ही बचा है कि हम वोट डालते समय इतनी ताकत रखते हैं कि किसे वोट करें और किसे न करें। इसके बाद तो लोकतन्त्र समाप्त, सरकारें जो चाहतीं हैं करतीं हैं और जनता तमाशा देखती है।
    उ0प्र0 के कई सारे उदाहरण दिये जा सकते हैं।

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  4. APKE IS AKKROSH SE HAM SAHMAT HAI.ISKO DEKH KAR TO YAHI KAHA JA SAKTA KI .
    HO GAYEE HAI PEER PAVAT SEE PIGHALNI CHAHIYE .
    IS HIMALAY SE KOI GANGA NIKALNEE CHAHIYE.

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