भारतीय राजनीतिक परिवेश को यूँ तो कई वायरस प्रभावित कर रहे हैं पर कुछ समय से जिन्ना वायरस अक्सर अपना रंग दिखाने लगता है । अंग्रेजों ने अपनी कूटनीति से स्वतंत्रता से पहले देशभक्त और सेकुलर जिन्ना को साम्प्रदायिक राजनीति का मोहरा बना कर देश का बँटवारा कर दिया । जिन्ना की दिली इच्छा एक सेकुलर पाकिस्तान बनाने की थी जिसका इजहार उन्होंने अपने पहले भाषण में किया भी था । लेकिन बात वही है कि 'बोया पेड़ बबूल का ,आम कहाँ से खाय ।'
अडवाणी जी ने अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान इस बात का उल्लेख क्या कर दिया कि उन्हें लेने के देने पड़ गए। अब जसवंत जी कि किताब आयी है जिससे बवाल उठ खड़ा हुआ है। जसवंत जी को उनकी पार्टी ने ही निकल दिया । जसवंत सिंह को अपनी वानप्रस्थीय उम्र में यह तत्वज्ञान हुआ कि बँटवारे के लिए जिन्ना नहीं, नेहरू,गाँधी और पटेल जिम्मेवार थे । जाहिर है कि इससे कांग्रेस खफा होगी ही , आर ० एस० एस० भी जिन्ना को मासूम बताने से नाराज है । बी ० जे० पी० में भी खलबली मची हुयी है। जिन्ना -विवाद की आड़ में पार्टी का आंतरिक असंतोष मुखर हो गया है। यह हमारे देश में यह एक राजनीतिक गुर बन गया है की जब कोई नेता हाशिये पर जाने लगता है तो किसी विवादस्पद मुद्दे को उठा कर सुर्खियों में आने की कोशिश करता है। जसवंत सिंह का राजनीतिक पुनर्वास भले ही न हुआ हो पर वे सुर्खियों में आ गए और उनकी किताब की माँग भी बढ़ गयी। बंटाधार तो भाजपा का हो रहा है जो न तो अरुण शौरी पर कार्यवाही कर पा रही है और किंकर्तव्यविमूढ़ता स्थिति में 'संघं शरणम् गच्छामि 'कर रही है।
देश में अनेक चुनोतियाँ सामने हैं। राजनीतिक दलों व राजनीतिज्ञों को उनके समाधान में अपना सकारात्मक योगदान देना चाहिए ,यह समय की माँग है। जनता को अधिक समय तक बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता और बिना काम किए जनसमर्थन भी नहीं बढाया जा सकता , यह पिछले चुनाव में सिद्ध हो चुका है। .....और भी गम है देश में जिन्ना के सिवा...।
Friday, August 28, 2009
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स्वाइन फलू से भी ज्यादा घातक है क्योंकि अभी तक इसका कोई इलाज नहीं हो सका है। इसी कारण समय समय पर अपना सिर उठाता है।
ReplyDeleteA good comment sir, but I had also written a book on Jinnah named Jinnah ka Sach published in January 2009. You may read it and let me know about your reaction.
ReplyDeleteThe book is published from Atlantic Publishers, New Delhi.
ReplyDeleteAapne bilkul tik hi kaha sir JI KI देश में अनेक चुनोतियाँ सामने हैं। राजनीतिक दलों व राजनीतिज्ञों को उनके समाधान में अपना सकारात्मक योगदान देना चाहिए ,यह समय की माँग है। जनता को अधिक समय तक बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता और बिना काम किए जनसमर्थन भी नहीं बढाया जा सकता , यह पिछले चुनाव में सिद्ध हो चुका है। .....और भी गम है देश में जिन्ना के सिवा...।
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