Tuesday, August 11, 2009

अब तो मुश्किल है पढ़ना भी .

अजीब दास्ताँ है हमारे देश की । एक ओर तो सरकार शिक्षा को मूलभूत अधिकार बनाने का दावा करती है तो दूसरी ओर उच्च शिक्षा शिक्षण संस्थानों में स्नातक व परास्नातक कक्षाओं में अनुमन्य स्थान कम करती जा रही है। मै एक परास्नातक कालेज में प्राध्यापक हूँ जो लगभग ५८ वर्ष पुराना है और उत्तरप्रदेश के जालौन जिले का सबसे बड़ा कालेज है। प्रदेश में 'सर्वजन हिताय ,सर्वजन सुखाय ' वाली सरकार है जिसने विभिन्न कक्षाओं में सीटों की संख्या आधी कर दी। अब स्थिति यह है कि स्नातक स्तर पर विज्ञानं में दो हजार आवेदनों में केवल दो सौ छात्र और कला में पॉँच हजार आवेदनों में पॉँच सौ छात्र ही प्रवेश पा सकते हैं। परास्नातक स्तर पर छः सौ आवेदनों में केवल साठ छात्रों को ही प्रवेश मिल सकेगा। सरकार वित्त पोषित कालेज खोलने में उदार है क्योंकि इनसे सत्ता पार्टी और मंत्रियों को मोटी रकम जो मिलती है । ये संस्थायें छात्रों अनाप -शनाप फीस वसूलती हैं । पर गरीब छात्रों की हैसियत इनमें प्रवेश लेने की नहीं है। कहाँ जायें ये बच्चे ? यह गरीब व मध्यमवर्गीय जनता के साथ छलावा नहीं तो और क्या है? कोई भी राजनीतिक दल इस मुद्दे की ओर ध्यान नहीं दे रहा है। अगर आज मैथिलीशरण गुप्त होते तो कहते,"शिक्षे तुम्हारा नाश हो जो अमीरों के हित बनीँ "

2 comments:

  1. इस पर तो एक गीत याद आता है
    ‘‘अजीब दास्तां है ये कहाँ शुरू कहाँ खतम,
    ये मंजिलें हैं कौन सी, न वो समझ सके न हम।’’

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  2. HAME LAGTA KI HAR SAMSYA KA SAMDHAN SAMAY KE ANUSAR HO JATA HAI,YADI HAME DUNIYA KE DOOSARE DESHO SE MUKABALA KARAN HAI TO KUCH NA KUCH QUALITY OF TEACHER EDUCATION PAR DHYAN DENA HI HOGA.

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