Thursday, July 23, 2020

आज के दिन दो फूल खिले थे, जिनका फल आज़ाद हिंदुस्तान


              आज 23 जुलाई भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दो प्रमुख  नायकों  लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक  एवं    प्रसिद्ध क्रांतिकारी चंद्र शेखर आज़ाद की जन्मतिथि है. 
               तिलक ने कांग्रेस की निवेदनात्मक पद्धति का विरोध कर ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध  संघर्ष का आव्हान करते हुये 'स्वराज हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है.' का उदघोष किया था. शहीद चंद्र शेखर आज़ाद ने  क्रांतिकारी आंदोलन के द्वितीय चरण का नेतृत्व करते हुये क्रांतिकारी गतिविधियों से ब्रिटिश शासन की की चूलें हिला दीं. इनके प्रयासों का ही फल है कि भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुयी,भले ही इसका श्रेय गांधी जी के नेतृत्व वाली कांग्रेस को मिला.
                लोकमान्य तिलक  का मूल नाम केशव गंगाधर तिलक था. उनका जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में हुआ था.  तिलक एक  राष्ट्रवादी, शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और  स्वतन्त्रता सेनानी थे। वे भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता थे जिन्होंने स्वराज्य की माँग की. ब्रिटिश समर्थक व उनके विरोधी उन्हें  'भारतीय अशान्ति का जनक' कहते थे. पर उनकी लोकप्रियता के कारण उन्हें 'लोकमान्य' का संबोधन दिया जाने लगा,जिसका अर्थ हैं 'लोगों द्वारा स्वीकृत  नायक '. 
                तिलक तत्कालीन समय के  स्वराज के सबसे प्रबल समर्थक अधिवक्ताओं में से एक थे.  वे  आमूल परिवर्तन चाहते थे।  मराठी  में दिया गया उनका उदघोष "स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच" (स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूँगा) पूरे स्वाधीनता संघर्ष में एक मार्गदर्शक   एवं प्रेरक उदघोष सिद्ध हुआ.। 
                उन्होंने  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में उनसे सहमति रखने वाले कई नेताओं के साथ एक गुट बनाया जिसे 'लाल,बाल,पाल' के नाम से जाना जाता है , जिनमें बिपिन चन्द्र पाल, लाला लाजपत राय, स्वयं तिलक एवं विपिन चंद्र पाल प्रमुख थे और जिसेअरविन्द घोष और वी० ओ० चिदम्बरम पिल्लै का समर्थन प्राप्त था. वे एक लंबे समय तक जेल में रहे. उनके द्वारा प्रकाशित 'मराठा' एवं 'केसरी' अखबार बड़े लोकप्रिय हुये. उन्होंने 'गणपति उत्सव' की परंपरा का श्री गणेश किया.
               शहीद' चंद्र शेखर आज़ाद ' भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के प्रसिद्ध क्रांतिकारी एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। वे श्री राम प्रसाद बिस्मिल एवं सरदार भगत सिंह जैसे क्रान्तिकारी साथियों के साथ उन्होंने क्रांतिकारी आंदोलन के द्वितीय चरण का नेतृत्व किया.
               उनका जन्म 23  जुलाई 1906 में में  उ.  प्र. के भाबरा ग्राम में हुआ था. युवावस्था में वे गाँधी जी के असहयोग आंदोलन में शामिल हुये. पर  जब गाँधीजी ने 1922 में 'असहयोग आन्दोलन' को अचानक स्थगित कर दिया तो चंद्र शेखर सहित अनेक युवाओं में बहुत आक्रोश दिखा और उनकी विचारधारा में परिवर्तनआया . उनका कांग्रेस और महात्मा गाँधी की कार्य शैली से मोह भंग हो गया.
              इसी बीच  वे राम प्रसाद ' बिस्मिल' के संपर्क में आये और ' हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन ' के जुड़ गये जो क्रांति के माध्यम से स्वतंत्रता का लक्ष्य प्राप्त करना चाहती थी. उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 9 अगस्त 1925 को 'काकोरी काण्ड' में भाग लिया और  भूमिगत हो गये। इसके पश्चात् सन् 1927 में 'बिस्मिल' के साथ अशफाक उल्लाह खां,  रोशन सिंह एवं राजेंद्र लाहिड़ी जैसे प्रमुख साथियों की फाँसी  के बाद उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी गुटों को मिलाकर ' हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ' का गठन किया .
             इस संगठन के माध्यम से सबसे पहले आज़ाद ने भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉण्डर्स की हत्या करके लिया.   बाद में उनके निर्देशन में दिल्ली  में  सरदार भगत सिंह एवं बटुकेश्वर दत्त ने केंद्रीय असेम्बली में  बम फेंक कर 'बहरों की सरकार' को चुनौती पेश की.  आज़ाद की योजना बम फेंक कर भागने की थी, पर भगत सिंह तैयार नहीं हुये.
             भगत सिंह, राज गुरु और सुखदेव की फाँसी के बाद ब्रिटिश सरकार का दमन चक्र तेज हो गया. आज़ाद भूमिगत रह कर क्रांतिकारी गतिविधियों  को संचालित करते रहे. पर 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद (प्रयागराज) के अल्फ्रेड पार्क में क्रांतिकारियों की एक बैठक के लिये पहुँचे आज़ाद की मुखबिरी किसी देशद्रोही ने कर दी. आज़ाद अंत तक लड़ते रहे पर अपने को घिरा पाकर उन्होंने स्वयं को गोली मार ली. वे अंत तक आज़ाद रहे. अब इस पार्क का नामकरण चंद्र शेखर आजाद के नाम पर कर दिया गया.
            स्वाधीनता संघर्ष में देश इन दोनों सपूतों का  योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता
                  

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