Wednesday, July 1, 2020

आइये सही मायनों में लोकतांत्रिक बनें


      हम भारतीय 'लोकतंत्र' को अब तक सही अर्थों में आत्मसात नहीं कर सके  हैं. हम सदियों से राजतंत्रीय व्यवस्था के आदी रहे हैं और शासक में देवत्व व उसे नायक के रूप में देखने की हमारी आदत रही है. लोकतन्त्र हमारे मनोविग्यान के अनुकूल नहीं हैं. जिससे हम खुश होते हैं उसके भक्त हो जाते हैं और उसके खिलाफ़ एक शब्द भी नहीं सुनते और जब नाराज हो जाते हैं तो उसी hero को zero बनाने में देर नहीं लगती. इंदिरा गांधी,राजीव गॉधी और विश्वनाथ प्रसाद सिंह ने जनता के इन दोनों रूपो को झेला था.
      लोकतंत्र केवल चुनाव में वोट डालना ,चुनाव लड़ना व चुनाव मे जीत कर सरकार बनाना ही नहीं  है.लोकतंत्र में आलोचना पर ध्यान देकर सरकार को अपनी कमियों को दूर करने का अवसर मिलता है.सतत् जागरूकता ही लोकतंत्र की कुंजी है. इसके लिये विवेकपूर्ण जनमत का निर्माण होना अत्यन्त आवश्यक है.
      आज भारत की विश्व में जो स्वीकार्यता है वह केवल मोदी जी के तीन वर्ष के शासनकाल में नहीं बनी है.कांग्रेस के लंबे शासन का और अटल जी के कार्यकाल का भी इसम महत्वपूर्ण योगदान है.सुषमा स्वराज जी ने हाल ही में UNO में अपने भाषण में बड़ी ईमानदारी से इसे स्वीकार किया भी है.
     लोकतंत्र एक स्वयंसुधारक व्यवस्था है .UK, जिसे लोकतंत्र का घर कहा जाता है, में सरकार भी संप्रभु (crown )की कहलाती है ,और विरोधी दल ( shadow cabinet) भी crown का.
    आलोचना व विरोध सरकार को अपनी कमियों में सुधार का अवसर प्रदान करता है और कभी- कभी जनमत की इच्छा को भी अभिव्यक्त करता है जिसके सामने सरकार को नतमस्तक होना पड़ता है.प्रसिद्ध राजनीतिक विचारक गिलक्राइस्ट( Gilchrist) का कथन याद आ रहा है ,
     "प्रत्येक वैधानिक संप्रभु के पीछे एक राजनैतिक संप्रभु होता है, जिसके सम्मुख वैधानिक संप्रभु को नतमस्तक होना पड़ता है ."
     इस राजनैतिक संप्रभु में विरोधी दल, दबाव समूह, हित समूह, trade unions, व्यापारिक समूह आते हैं.
       विपक्ष तो आलोचना करता ही है. मनमोहन सिंह की सरकार के समय आधारकार्ड की अनिवार्यता, GST पर विरोध व संसद की कार्यवाही ठप्प करने का काम विरोधी दल भाजपा ने जिस प्रभावी ढंग से किया, वर्तमान विरोधी पक्ष तो उसका दशांश भी नहीं कर पाया. इन्हीं मोदी जी ने जी.  एस. टी. व आधार कार्ड का मुखर विरोध किया था जिसके वीडियो भी सोशल मीडिया पर दिखाई दिये हैं.
     सरकार में आने पर जिम्मेदारी बढ़ती है. राष्ट्रीय हित के हिसाब से नीतियॉ बनानी पड़ती है.नीतियों की आलोचना को भी सहन करना पड़ता है.
     आज आम लोग महसूस कर रहे हैं कि शासन की नीतियॉ बडे व्यापारिक घराने के हित में अधिक हैं ,छोटे व्यापारियों,व आम लोगों के हित में कम . यदि लोग कार्टून व व्यंग्य के माध्यम से अपने आक्रोश की अभिव्यक्ति करते हैं,तो उसको खेल भावना से लेना चाहिये. आखिर आर. के.लक्ष्मण व बाल ठाकरे एक कार्टूनिस्ट के तौर पर ही तो लोकप्रिय रहे थे जिन्होने अपने समकालीन सभी राजनेताओं पर कार्टून बनाये थे और कोई भी बुरा नहीं मानता था.
     आज मोदी जी के ऊपर जरा सी भी व्यंग्य उनके समर्थकों को सहन नहीं हो रहा है.एक कार्यक्रम में मेरे एक वरिष्ठ ने कहा कि प्रधानमंत्री सारे देश का होता है अत: उसकी आलोचना नहीं होनी चाहिये. वे यह भूल गये कि पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को विरोधीदलों ने क्या नहीं कहा, जबकि जिन घोटालों पर कांग्रेस को बदनामी मिली वे मनमोहन सिंह के काल में ही उजागर हुये थे और उनसे संबंधित लोगों पर कार्यवाही भी शुरू हो गयी थी. जब भारत में मोदी जी का राजतिलक हो रहा था उसी के आस-पास जापान में मनमोहन सिंह को विश्व का Best Primeminister of  the  World का सम्मान दिया जा रहा था.
       मेरे  कहने का तात्पर्य यह है कि यह देश के प्रधानमंत्री का कर्तव्य है कि वह देश हित में काम करे. मोदी जी भी वही कर रहे हैं जो देश के पूर्व प्रधान मन्त्रियो ने किया. कई पूर्व प्रधान मन्त्री गठबंधन सरकार चला रहे थे जिसकी अपनी मजबूरियॉ या दबाव थे.पर जब कभी किसी प्रधानमंत्री को पूर्ण बहुमत मिला, उसकी कार्य प्रणाली अलग दिखी.  यह बात इन्दिरा जी, अटल  जी और मोदी जी की कार्य प्रणाली में  दिखाई दी. 
       मोदी जी देश के ऐसे प्रधानमंत्री बने जिन्होने विश्व के अधिकांश देशों का दौरा किया और उन्हें भारत से जोडा. भारत के व्यापारिक हितो का संवर्धन हुआ. भारत की सुरक्षा को सुदृढ़ करने व सामरिक शक्ति बढ़ाने के प्रयास जारी हैं.
      पर यहॉ मै एक बात महसूस कर रहा हूँ कि सबको ,विशेषकर अमेरिका को , साधने की कोशिश में हमने रूस जैसा मित्र खो दिया.
     1971में पाकिस्तान युद्ध के समय अमेरिकी सॉतवें बेड़े की धमकी के जबाब में पूर्व सोवियत संघ ने भारत के समर्थन में युद्ध में कूदने की धमकी देकर अमेरिका को चेतावनी दी थी और अमेरिका को चुप होना पड़ा था .क्या आज चीन के आक्रमण करने की स्थिति में इस हद तक साथ देने वाला कोई विश्वसनीय मित्र आज हमारे पास है?
      मित्रो! आज हमारे सामने आंतरिक व बाह्य  अनेक चुनौतियॉ हैं. हमारा दायित्व यही होना चाहिये कि हम अंध समर्थन व अंध विरोध से मुक्त होकर देशहित में सकारात्मक दृष्टिकोण अपना कर निष्प होकर सही बात कहे , सही बात का समर्थन करें तथा नकारात्मक व गलत बातों का विरोध करें. तभी हम विवेकशील जनमत के निर्माण में अपना योगदान दे सकते हैं. सोशल मीडिया इसके लिये एक महत्वपूर्ण माध्यम सिद्ध हो सकता है.

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