प्रति वर्ष की तरह हिंदी दिवस मनाने की औपचारिकता आज हिंदी दिवस पर पूरी की गयी । हिंदी की याद बुद्धिजीवियों ,साहित्यकारों को आज के दिन ही आती है । हिंदी की दुर्दशा एवं स्थिति पर आँसू बहाए जाते हैं । सरकार को कोसा जाता है और दूसरे दिन हिंदी को कोई नहीं याद करता ।
भाषा का सम्बन्ध किसी राष्ट्र की अस्मिता से होता है । एक राष्ट्र के लोगों के लिये उनकी भाषा पर गर्व होता है । अपनी भाषा के विकास उन्नयन के लिये प्रयास करना शासन एवं नागरिकों का कर्तव्य है । पर हमारा देश आज तक अपनी भाषा के लिये सर्वसम्मति नहीं बना पाया । इसके लिये सरकार ,राजनीतिक दल ,वोट पालिटिक्स तो जिम्मेवार है ही , हिंदी के उदभट विद्वान् कम उत्तरदायी नहीं है जिन्होंने हिंदी को सेमिनारों एवं गोष्ठियों तक सीमित कर लिया है । संस्कृतनिष्ठ क्लिष्ट हिंदी आम आदमी से दूर होती जा रही है ।
किसी भी भाषा का विकास उसमे लोगों की सक्रिय सहभागिता से होता है । भाषा संवाद एवं सम्प्रेषण का एक माध्यम है । यदि इसमें सहजता व सरलता का अभाव रहता है तो आम आदमी इससे दूर हो जायेगा। भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ आज भी साक्षरता का प्रतिशत बहुत कम है ,भाषा को ग्राह्य बनाने के लिये जमीनी सच्चाई को समझना होगा। हिंदी को लोगो की भाषा बनाने के लिये इसे क्लिष्टता के चंगुल से तो दूर करना ही होगा अपितु अन्य भाषा विशेषकर अंग्रेजी के लोकग्राह्य शब्दों को अपनाना होगा ,बिना यह चिंता किये कि इससे भाषा का शास्त्रीय स्वरूप प्रभावित होगा ।
विश्व की कोई भी ऎसी भाषा नहीं है जिसमे अन्य भाषाओँ के शब्दों को ग्रहण न किया हो । अंग्रेजी भाषा में ही दस लाख से अधिक शब्द अन्य भाषाओँ के हैं ,पर इससे उसके अस्तित्व पर कोई संकट नहीं आया । हिंदी के विकास और विस्तार के लिये हमें यह व्यापक दृष्टिकोण अपनाना होगा।
आज का युग वैश्वीकरण का युग है। भारत विश्व के विकसित देशों की नजर में एक बड़ा बाजार है । बड़े देशो ने अपने तकनीकी विशेषज्ञों को हिंदी सिखाने की शुरूआत कर दी है जिससे वे यहाँ की भाषा में आम लोगों से संवाद कर अपने उत्पादों को जन -जन तक पहुंचा सकें । जाहिर है ऐसी भाषा संस्कृतनिष्ठ हिंदी नहीं वरन आम लोगों की सहज संवाद की भाषा ही हो सकती है । इससे हिंदी रोटी -रोजी से जुड़ सकती है । ऐसा हो भी रहा है । आर्थिक कारण किसी भी सामाजिक , राजनीतिक परिवर्तन में निर्णायक होते हैं , भाषा का विकास और विस्तार इससे अछूता कैसे रह सकता है ?हिंदी भी इसका अपवाद कैसे हो सकती है ?
Tuesday, September 14, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
आपका पोस्ट सराहनीय है. बधाई
ReplyDelete