हम 'हिंदी दिवस' बस मनाते रहेंगे ,
व्यथा हिंदी की सबको सुनाते रहेंगे।
दिवस हम मनाते यह अहसान कम है,
है यह राजभाषा ,हमें अब क्या गम है?
आज हिंदी की गाथा सुनाने का दिन है,
या हिंदी पर मातम मनाने का दिन है?
दुर्दशा हिंदी की हम बताते रहेंगे,
पर भाषा का गौरव भुलाते रहेंगे।
बनी आज हिंदी है अनुवाद -भाषा
करें इससे कैसे प्रगति की हम आशा ?
रहेगी गर इसमें शाब्दिक कठिनता,
सहज रूप में कैसे अपनाए जनता ?
होगी लोकप्रिय यह जब होगी सहजता,
करें इसको विकसित कि आये सरलता।
तब हिंदी लगेगी जन -जन की भाषा .
तभी दूर होगी छायी निराशा।
अन्यथा,गोष्ठियाँ -सेमिनार कराते रहेगे ,
और दिवस यूँ ही हरदम मनाते रहेंगे ।
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने ! हिंदी दिवस की हार्दिक बधाई!