आज विश्व पृथ्वी दिवस है. यह प्रतीक है एक ऐसे दिवस का जब हम पृथ्वी को बचाने और उसके साथ हो रहे व्यवहार में बदलाव लाने की बात करते हैं.
पहली बार, विश्व पृथ्वी दिवस को आज ही के दिन 22 अप्रैल, 1970 को मनाया गया था. उस दिन इसे मनाने के लिए दो लाख लोग जमा हुए थे. आज विश्व के 192 देश इस दिवस को मना रहे हैं.
इस दिवस की शुरुआत करने वाले अमेरिका के पूर्व सीनेटर गेराल्ड नेल्सन, इतने दूरदर्शी थे कि उन्होंने समय रहते ही पृथ्वी को संरक्षित करने पर लोगों को अपना पूरा ध्यान केंद्रित करने को कहा था. उनका मानना था कि अगर लोगों ने समय रहते पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया, तो पृथ्वी को नष्ट होने से कोई नहीं बचा सकता. उनकी सोच और चेतावनी को अगर समय रहते सभी समझ गये होते, तो आज पृथ्वी पर मंडरा रहा खतरा इतना बड़ा नहीं होता.
इस दिवस को मनाने की शुरुआत जब की गयी थी, उस समय न तो ग्लोबल वार्मिंग के खतरे थे और न ही प्रदूषण की समस्या इतनी विस्फोटक हुई थी. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, अगले 50 साल में दुनिया उजड़ जायेगी. ‘इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज’ (आइपीसीसी) के अध्ययन के मुताबिक, बीती सदी के दौरान पृथ्वी का औसत तापमान 0.28 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है. पृथ्वी के औसत तापमान में हो रही यह वृद्धि जलवायु और मौसम प्रणाली में व्यापक स्तर पर विनाशकारी बदलाव ला सकती है. जलवायु और मौसम में बदलाव के सबूत मिलने शुरू हो चुके हैं. भू-विज्ञानियों ने खुलासा किया है कि पृथ्वी में से लगातार 44 हजार बिलियन वाट ऊष्मा बाहर आ रही है. आइपीसीसी रिपोर्ट की मुख्य बातें पिछले 12 वर्षों में से 11 को सबसे गर्म सालों में गिना गया है 1850 के बाद से. पिछले 50 वर्षों की वार्मिंग प्रवृत्ति लगभग दोगुना है पिछले 100 वर्षों के मुकाबले. समुद्र का तापमान 3000 मीटर की गहराई तक बढ़ चुका है. समुद्र जलवायु के बढ़े हुए तापमान की गर्मी का 80 प्रतिशत सोख लेते हैं. भूमध्य और दक्षिण अफ्रीका में सूखे की समस्या बढ़ती जा रही है. अंटार्टिका में बर्फ जमे हुए क्षेत्र में 7 प्रतिशत की कमी हुई है जबकि मौसमी कमी की रफ्तार 15 प्रतिशत तक हो चुकी है. उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्से, उत्तरी यूरोप और उत्तरी एशिया के कुछ हिस्सों में बारिश ज्यादा हो रही है. पश्चिमी हवाएं बहुत मजबूत हो रही हैं. सूखे की रफ्तार तेज होती जा रही है, भविष्य में यह ज्यादा लंबे वक्त तक और ज्यादा बड़े क्षेत्र में होंगे.
Sunday, April 22, 2018
आइये पृथ्वी को बचायें
Thursday, April 12, 2018
बेवकूफ नहीं है जनता.
गॉधी जी का उद्देश्य उपवास के माध्यम से अंतर्मन को शुद्ध करना था......वे राजनीति में नैतिकता व शुद्धता चाहते थे....अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिये वे पवित्र व नैतिक साधनों को अपनाने के हिमायती थे......................
.....................पर आज की मौकापरस्त व संवेदनहीन राजनीति में मजाक बना दिया गया है उपवास को ....................................
......................पर ग़लतफहमी है आपको सियासतदानों ! ......जनता इतनी बेवकूफ नहीं है जितना तुम समझते हो....... वह समय पर माकूल जबाब देती है सबको....
Friday, March 16, 2018
सियासत में जनता की भाषा
भारत के राजनीतिक पटल पर जहॉ एक ओर पूर्वोत्तर में हुये चुनावों में भगवा लहर दिखाई दी वहॉ उत्तर भारत में हुये उपचुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा को गहरा झटका लगा. इस राजनीतिक उठा-पटक को देख कर लेखनी से कविता के रूप में मेरी जो प्रतिक्रिया प्रस्फुटित हुई जो कि निम्नवत् है-
"कोई हँस रहा है, तो कोई उदास है,
सियासत की, यही तो खास बात है.
हमारी व्यवस्था को, क्या हो गया है,
चुनावी गणित में ,' जन ' खो गया है.
ये वोटों का चक्कर, प्रमुख हो गया है,
और जनता से नेता, विमुख हो गया है .
सत्ता को जलवा, दिखाने की लत है,
विरोधी को चिल्लाने , की आदत है.
त्रिपुरा में वामी किला ,ढह गया था,
विरोधी दलों का, दिल हिल गया था.
नागालैण्ड,मेघालय ,मणिपुर कब्जे में,
दिखाई थीै ताकत , हिंदुत्व ज़ज्बे ने.
भुनाया था ' हिंदुत्व' में ,'योगी' का चेहरा,
बँधा था पूर्वोत्तर में, विजय का सेहरा.
रिजल्ट उपचुनावों में,आया है उल्टा,
गणित सारा यू. पी. ,बिहार में पल्टा.
इलाके में योगी के, भगवा है हारा,
मिला 'फूलपुर' मे , न जनता का सहारा.
बिहार में लालू ने ताकत दिखाई,
कि सत्ता का चेहरा, हुआ है हवाई.
बहिन जी भी खुश हैं, भइया भी खुश हैं,
जमानत गँवा कर , गाँधी भी खुश हैं.
जनाधार खो कर , वामी भी खुश हैं,
ये बसपा, सपा के ,सिपाही भी खुश हैं.
सत्ता की भँवों पर , खिचीं हैं लकीरें,
उन्नीस में मुद्दे , अब क्या- क्या उकेंरें.
अहं को पड़ा है, अब तगड़ा तमाचा,
जनतंत्र में जनता की होती यही भाषा."
Thursday, January 25, 2018
'गणतंत्र दिवस' की शुभकामनायें..पर गणतंत्र को समझिये भी
सारा देश आज 69वां गणतंत्र दिवस मना रहा है .हम 15अगस्त को स्वतंत्रता दिवस भी मनाते हैं .दोनों दिवसो की अलग अलग महत्ता है .विदेशी शासन के साथ लम्बे संघर्ष में हमारे अनगिनत वीरों की कुर्बानियों का परिणाम है स्वतंत्रता .इसलिये हम स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं ...
जब किसी से यह पूछा जाता है की हम गणतंत्र दिवस क्यूँ मनाते हैं ?एक ही जबाब आता है कि आज के दिन हमारा संविधान लागू हुआ था ....अधिकतर कार्यक्रमो में वक्ताओं के भाषण दोनों दिवसो पर एक जैसे होते हैं ....नेता व अधिकारी इनके फर्क को बहुत कम जानते हैं.
यह सच हैं कि आज के दिन हमारा संविधान लागू हुआ था .पर इस संविधान ने हमारे देश एक गणतंत्र घोषित
किया था .अत:संविधान को जानने के लिये हमें गणतंत्र को जानना ज़रूरी है.
इतिहास के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि अधिकतर देशों में पहले राजतंत्र ही थे .समय के साथ राजतंत्र का लोकतंत्रीकरण सबसे पहले ब्रिटेन में हुआ जहां सीमित राजतंत्र को अपनाया गया है .जबकि लोकतंत्र का घर ब्रिटेन को ही माना जाता है .
संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व का सबसे पहला गणतन्त्र था .उसके बाद कई राज्यों ने गणतान्त्रिक व्यवस्था अपनाई .
गणतंत्र (Republic) को परिभाषित करते हुए Encyclopedia of Britainica में बताया गया है कि गणतंत्र वह लोकतांत्रिक प्रणाली है ज़िसकी दो विशेषतायें होती हैं -
प्रथम , राज्य प्रधान जनता द्वारा निर्वाचित( प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष ) होता है ,
द्वितीय , राज्य प्रधान वंशानुगत नहीं होता .
हमारे देश में भी गणतांत्रिक संविधान अंगीकृत किया गया है इसका अर्थ है कि भारत के प्रत्येक नागरिक को यह अवसर प्राप्त है कि वह अपनी क्षमता का प्रयोग करके राज्य के सर्वोच्च पद पर पहुँच सके .
हमारे देश में विभिन्न दलित व पिछडे वर्गों के व्यक्ति भी राष्ट्रपति के रूप में राज्य प्रधान के सर्वोच्च पद पर पहुचे हैं जैसे आर के नारायणनम ( दलित S C ).
जैल सिंह ( बढ़ई ).कलाम साहब (मछुआरा परिवार ).यह गणतंत्र ही संभव है
आज के दिन हमने एक ऐसे गणतान्त्रिक संविधान को लागू किया था जो एक लोकतांत्रिक .धर्मनिरपेक्ष,प्रभुसत्ता सम्पन्न समाज के निर्माण का वचन दिता है ज़िसमे सभी को स्वतंत्रता ,समानता व न्याय मिले .सभी भाईचारे के साथ रहें .
इसी कारण हम गणतंत्र दिवस मनाते हैं
Wednesday, January 3, 2018
फ़िर एक सैनिक शहीद
पाक फ़ायरिंग में शामली ,उ.प्र. के निवासी हाजरा शहीद....
फिर एक सैनिक का बलिदान......
सरकार सोचती है कि सैनिक मरने के लिये होतेे हैं.....
विरोधी दलों को सरकार को कोसने का एक और मौका......
..............
आम आदमी किंकर्तव्यविमूढ़......
संवेदनशीलता....
औपचारिक और कुछ समय बाद जीरो विजिबिलिटी
.........
देश महान बनने की दिशा और विकास ओर अग्रसर
Tuesday, November 28, 2017
एक कहानी सुनिये
किशोरवय में मेरे बाबााजी (grand father )ने मुझे एक कहानी सुनायी थी-
गंगा नदी के किनारे किसी कुंभ मेले की बात है.एक मालिन अपने बेटे की अंगुलि पकड़े ,सिर पर फूलों का टोकरा रखे गंगा तट पर फूल बेचने के लिये जा रही थी ,अचावक उसके बेटे को दीर्घशंका महसूस हुई. मालिन ने इधर - उधर देख कर यात्रा मार्ग के किनारे सुनसान जगह बेटे को बिठा दिया. बाद में विष्ठा पर उसने ढेर सारे पुष्प डाल दिये और आगे बढ़ गयी.
पीछे आने वाले तीर्थ यात्रियों ने जब वहॉ पुष्पों का ढेर देखा,तो उन्हें लगा कि यह कोई पूजा का पवित्र स्थान है. वे उस पर पुष्प और पैसे अर्पित करने लगे. गंगा के किनारे रहने वाले मुस्लिमों को भी लगा कि यह कोई सिद्ध पीर का स्थान है,वे भी उस पर फूल व पैसे डालने लगे.
जब वहॉ धन एकत्र होने लगा तो एक गेरुआधारी वहॉ आकर बैठ गये और कहने लगे कि यह मेरे गुरु की समाधि है और मै उनका उत्तराधिकारी हूँ. मुस्लिमों ने जब यह देखा तो एक जालीदार टोपी पहने सज्जन भी यह दावा करने लगे कि यह उनके पीर की दरगाह है.
मामले को सांप्रदायिक रंग लेते देख प्रशासन सक्रिय हुआ. यह निर्णय हुआ कि फूलों को हटा कर देखा जाये कि नीचे क्या है.जब असलियत सामने आयी तो दोनों दावेदार व उनके समर्थक बहुत शर्मिंदा हुये.
बाबा जी कहते थे कि अविवेकपूर्ण आस्था अंध श्रद्धा को जन्म देती है.
मुझे लगता है इसी प्रकार राजनीतिक व सामाजिक मुद्दों पर अविवेकपूर्ण समर्थन अथवा विरोध ,अंध भक्ति व अंध विरोध को जन्म देता है जो न व्यक्ति के अपने हित में होता है ,और न समाज के.
आज सुबह न्यूज सुनते समय फिल्म पद्मावती पर रोक पर दायर याचिका को अस्वीकार करते हुये माननीय सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुये फिल्म को बिना देखे हुये बवाल पर माननीयों की भूमिका पर सवाल खड़े करते हुये उन्हें जिस तरह लताड़ा है. और जिस तरह विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री राजनीतिक हित के लिये इस बवाल पर जो रुख अपना रहे हैं,उससे मुझे बचपन में सुनी कहानी याद आ गयी.
फिर नाक,कान काटने की धमकी व उस पर इनाम की घोषणा करना तो शायद हमारे यहॉ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत आता है.
Monday, November 20, 2017
फिल्म पद्मावती का विरोध -एक मीमांसा
फिल्म पद्मावती के माध्यम से इतिहास से जन भावनाओ को आहत करने की हद तक छेड़छाड़ करने वाले फिल्मकारों को कई विद्वानों व इतिहासकारों ने लताड़ा है. मै भी इससे सहमत हूँ.
पर हमारे देश के लोकतंत्र में हर बात राजनीति से जुड़ जाती है. राजनीतिक दल भी अपने हितलाभ की दृष्टि से समर्थन व विरोध करने लगते है. इस समय इस मुद्दे पर राजपूत वर्ग राजनीति पर असर डालने वाले एक दवाव समूह ( pressure group )के रूप में संगठित हुआ है. सभी दल इस ग्रुप का समर्थन चाहते हैं. गुजरात चुनाव सत्ता दल व विरोधी दल के बीच नाक का सवाल बन गया है.इस मुद्दे को वे भी cash कराना चाहते हैं.
हमारे यहॉ समर्थन व विरोध जब भी होता है तो विवेकशून्यता की हद तक. बिना फिल्म देखे व निर्देशक की सफाई सुने, विरोध जारी है ,फिल्म के निर्देशक का भी और मुख्य पात्रों की भूमिका निभाने वाले कलाकारों का भी. स्त्री अस्मिता के सम्मान के नाम पर शुरू हुआ विरोध फिल्म की हीरोइन के प्रति भद्दी बातों व सिर काट कर लाने वाले को इनाम देने जैसे तालिबानी फरमानों तक पहुँच गया है.कई विद्वान इतिहासकार ने भी इस पर मौन रहना या इसकीउपेक्षाकरनाउचितसमझा.
कलाकार तो निर्देशक के निर्देशन में भूमिका निभाते हैं पात्र को जीने का प्रयास करते हैं फिर उन पर व्यक्तिगत प्रहार क्यों?दीपिका पद्मावती नहीं है और न रणवीर ,खिलजी. गुजरात चुनाव के बाद देखियेगा,कि एक-दो सीन काट कर यह फिल्म रिलीज हो जायेगी और इस विवाद का भी फिल्म को लाभ मिलेगा. हॉ पद्मावती फिल्म के खिलाफ मुहिम चलाने वाले कुछ करणी सेना के नेताओं की राजनीति में कीमत जरूर बढ़ जायेगी.
मेरा सकारात्मक सोच रखने वाले विद्वानों व जागरूक नागरिकों से मेरी यह अपील जरूर है कि बिना तथ्यों का निष्पक्ष अध्ययन किये ,ऐसे मुद्दों को समर्थन या विरोध करने से पहले सोचें जरूर. ऐसी बवालों पर देश का ही नुकसान होता है. मुख्य मुद्दे पीछे छूट जाते हैं. सत्ताधीश युगों से समाज को बॉटने की नीति पर चलते रहे रहे हैं, यह हमें सोचना होगा.