तुम्हीं सो गये दास्ताँ कहते कहते.......
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बुंदेलखंड में समाज विज्ञान के उदभट् विद्वान, एक कुशल वक्ता, प्रगतिशील लेखक एवं साहित्यकार ,दयानंद वैदिक कालेज उरई के राजनीति विज्ञान के रिटायर्ड प्रोफेसर डा. जय दयाल सक्सेना का दो दिन पूर्व 95 वर्ष की आयु में उरई में नया रामनगर स्थित आवास पर निधन हो गया.
मेरे लिये पितृतुल्य व्यक्तित्व के महाप्रयाण का यह समाचार मन को अत्यंत दुःखी करने वाला था. वे मेरे पिताश्री (स्व. के. डी. सक्सेना) के मित्र थे. स्नातक व परास्नातक कक्षाओं में मुझे उनसे शिक्षा ग्रहण करने का अवसर मिला. दयानंद वैदिक कालेज, उरई के राजनीति विज्ञान विभाग में उनके साथ अध्यापन करने का भी सुअवसर भी मुझे मिला. उनके रिटायरमेंट के बाद भी उनका स्नेह एवं सान्निध्य मुझे सदैव मिलता रहा.
एक शिक्षक के रूप में वे अतुलनीय थे. उनकी वैज्ञानिक सोच, दुर्लभ तार्किक क्षमता एवं छात्रों के साथ सहज संवाद की शैली उनके व्यक्तित्व को विलक्षण बना देती थी, जिसकी छाप उनके शिष्यों के मन मस्तिष्क पर अमिट को जाती थी. विनोद पूर्ण शैली में व्यक्त उनका चुटीला अंदाज विलक्षण था, जिसे उनके संपर्क में आये व्यक्ति कभी भूल नहीं सकते.
उनका व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था. गौर वर्ण, छरहरी काया ,सदैव सीधे सिर उठा कर चलने का उनका अंदाज , चेहरे पर ओज एवं आत्मविश्वास तथा सादगी पूर्ण परिधान उनके व्यक्तित्व को एक अनोखी गरिमा प्रदान करते थे. छात्रों एवं शिक्षकों के बीच वे अत्यंत लोकप्रिय एवं सम्मान के पात्र थे.
डा. सक्सेना मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित थे. वैज्ञानिक सोच उनके चिंतन एवं कर्म में सदैव परिलक्षित होती थी. पर वे विचारधारा की कट्टरता से सदैव दूर रहे जिसके कारण उनका अक्सर अपने कम्युनिस्ट साथियों से मतभेद हो जाता था. एक मौलिक चिंतक के रूप में उनकी ख्याति थी. दक्षिणपंथी विचारधारा के लोग भी उनकी बातों को गौर से सुनते थे और उन्हें सम्मान देते थे. वे एक संघर्षशील शिक्षक नेता भी रहे. बिना किसी लाग- लपेट के दो टूक बात कहना उनकी विशेषता थी.
उनका प्राचीन राजनीति पर विशेष शोध कार्य था. महाभारत पर उन्होंने पी.एच. डी. की थी. उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी जिनमें उनकी पुस्तक 'पुराकथाओं का वैज्ञानिक विश्लेषण' बहुत लोकप्रिय एवं महत्वपूर्ण थी. उनका लेखन प्रगतिशील एवं अंधविश्वासों पर कुठाराघात करने वाला था. उन्होंने कई नाटक भी लिखे जिनका मंचन नगर की सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा कई बार किया गया.
उनके साथ बीते पलों की स्मृतियाँ इतनी मधुर यादगार एवं प्रचुर मात्रा में हैं कि उन पर अलग से एक पुस्तक लिखी जा सकती है.
वे एक जीवंत व्यक्तित्व थे. सामाजिक व राजनीतिक समास्याओं पर उनका चिंतन बड़ा ही स्पष्ट, परिपक्व एवं स्वीकार्य होता था. अंत समय तक उनकी मानसिक सबलता के लोग कायल रहे.
ऐसे महान व्यक्तित्व का साहचर्य पाना एवं उन्हें शिक्षक के रूप में पाना सौभाग्य की बात होती है और मै उन सौभाग्यशाली व्यक्तियों में से एक हूँ. उनके निधन से मुझे ऐसा लगता है कि मैने अपना संरक्षक खो दिया.
उनको मेरी विनम्र श्रद्धांजलि.. ..... सदा बहुत याद आयेगें गुरुवर आप!
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