Sunday, August 15, 2010

हैप्पी इंडिपेंडेंस डे ?

हो रहा क्या आज अपने देश में ,
द्वेष , नफरत व्याप्त है परिवेश में;
खो रहीं अस्तित्व अपना मान्यतायें,
चल रहीं सर्वत्र अवसरवादी हवायें ;
त्रस्त है मंहगाई से सम्पूर्ण जनता ,
आज बेमानी लगे 'स्वाधीनता';
बैठा है हर कुर्सी पर छल ,
सब सुविधायें रहा निगल ;
ठगा - ठगा सा दिखे गरीब,
कैसा यह जनतंत्र और उसका नसीब ?
स्पीचें संसद में धाँसू ,
पोंछ न पायें गरीब के आँसू ;
जाति , धर्म में बँटता देश ,
आम जनों के बढ़ते क्लेश ;
नक्सल , माओ , सब आतंक ,
जनता झेले इनके डंक ;
कोई न देखे इनके छाले ,
उदर - भरण के इनको लाले ;
मुश्किल लगता अब जीना रे ,
कैसे मने 'स्वतंत्रता दिवस ' रे । "


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