पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों के विरोध में देश के विपक्षी दलों द्वारा किया गया भारत बंद का आवाहन उनकी नजर में सफल रहा । बड़े खुश थे विपक्षी नेता । बहुत दिनों बाद जनता ने बंद में सहयोग दिया । अपने खोये जनाधार को पाने की आशा जगी।
पर आम जनता को इससे क्या मिला? रोज कमाने वाले लाखों लोगों के घर शाम को चूल्हा नहीं जला । महानगरों में लोगों को आने जाने में तकलीफें झेलनी पड़ी । इसे जनता का समर्थन कहा जाये या राजनीतिक दलों की गुंडा बिग्रेड का डर कि मन मसोस कर दूकानदारों ,टैक्सी या रिक्शा वालों को अपना काम बंद करना पड़ा । कई जगह मल्टी नेशनल एवं आई टी कंपनियों ने शनिवार की वीक एंड की छुट्टी इसलिए रद्द कर दी क्योकि इस बंद के चलते कर्मचारी काम पर नहीं पहुँच सके। टी० वी ० पर मुंबई का यह नजारा भी दिखाया गया जिसमें शिव सेना के एक कार्यकर्त्ता ने एक दूकानदार को थप्पड़ मारते हुए कहा कि हम यह सब तुम लोगों के लिये कर रहे हैं। इस पर उसने कहा किसने कहा था यह करने के लिये।
कीमतें कम हों या न हों इससे राजनीतिक दलों को कोई सरोकार नहीं , उन्हें तो यह दिखाने का एक मौका मिला कि वे ही जनता के हितों के सच्चे पैरोकार हैं अतः जनता को उन्हें समर्थन देना चाहिए जिससे वे अगली बार उस सत्ता -सुख का पुनः उपभोग कर सकें जिससे जनता ने उन्हें वंचित कर दिया है ।
कई जगह सरकारों से उनका टकराव भी हुआ । यू ० पी ० में सपा के नेताओं ने खूब लाठियाँ खायीं और शहीदाना अंदाज में मीडिया के सामने रूबरू हुए कि वे जनता के सच्चे हमदर्द हैं । बिहार में मोदी के नाम पर बी. जे. पी . और जे .डी.यू. के कार्यकर्त्ता बंद के दौरान झगड़ते दिखे। प . बंगाल में नीलोत्पल बसु साहब बहुत खुश दिखे ,आखिर वहाँ उनकी सरकार थी इसलिए लाठी -डंडे नहीं खाने पड़े ।
बंद का सरकार पर क्या असर हुआ ? सरकार ने कीमतों को बढ़ने अपने निर्णय पर डटे रहने का इरादा पुनः व्यक्त कर दिया। कुल मिला कर ' भारत बंद ' का आवाहन विपक्षी दलों की एक औपचरिकता लगा और हमेशा की तरह आमलोगों को तरह -तरह की तकलीफे झेलनी पड़ी जो हमारे लोकतंत्र में जनता की नियति बन गयी है।
बंद के बाद शाम को गिरफ़्तारी का नाटक ख़त्म होने के बाद विपक्षी नेताओं की प्रतिक्रिया देखने लायक थी। भाजपा के अरुण जेटली और राजनाथ सिंह ,माकपा के नीलोत्पल बसु ने बंद की सफलता को ऐतिहासिक बताया । जनता को क्या तकलीफें हुयीं ,इसकी चिंता लेशमात्र भी नेताओं के चेहरे पर दिखाई नहीं दी। ..बंद की सफलता से ये राजनीतिक मोगाम्बे बहुत खुश हुए ।
पर आम जनता को इससे क्या मिला? रोज कमाने वाले लाखों लोगों के घर शाम को चूल्हा नहीं जला । महानगरों में लोगों को आने जाने में तकलीफें झेलनी पड़ी । इसे जनता का समर्थन कहा जाये या राजनीतिक दलों की गुंडा बिग्रेड का डर कि मन मसोस कर दूकानदारों ,टैक्सी या रिक्शा वालों को अपना काम बंद करना पड़ा । कई जगह मल्टी नेशनल एवं आई टी कंपनियों ने शनिवार की वीक एंड की छुट्टी इसलिए रद्द कर दी क्योकि इस बंद के चलते कर्मचारी काम पर नहीं पहुँच सके। टी० वी ० पर मुंबई का यह नजारा भी दिखाया गया जिसमें शिव सेना के एक कार्यकर्त्ता ने एक दूकानदार को थप्पड़ मारते हुए कहा कि हम यह सब तुम लोगों के लिये कर रहे हैं। इस पर उसने कहा किसने कहा था यह करने के लिये।
कीमतें कम हों या न हों इससे राजनीतिक दलों को कोई सरोकार नहीं , उन्हें तो यह दिखाने का एक मौका मिला कि वे ही जनता के हितों के सच्चे पैरोकार हैं अतः जनता को उन्हें समर्थन देना चाहिए जिससे वे अगली बार उस सत्ता -सुख का पुनः उपभोग कर सकें जिससे जनता ने उन्हें वंचित कर दिया है ।
कई जगह सरकारों से उनका टकराव भी हुआ । यू ० पी ० में सपा के नेताओं ने खूब लाठियाँ खायीं और शहीदाना अंदाज में मीडिया के सामने रूबरू हुए कि वे जनता के सच्चे हमदर्द हैं । बिहार में मोदी के नाम पर बी. जे. पी . और जे .डी.यू. के कार्यकर्त्ता बंद के दौरान झगड़ते दिखे। प . बंगाल में नीलोत्पल बसु साहब बहुत खुश दिखे ,आखिर वहाँ उनकी सरकार थी इसलिए लाठी -डंडे नहीं खाने पड़े ।
बंद का सरकार पर क्या असर हुआ ? सरकार ने कीमतों को बढ़ने अपने निर्णय पर डटे रहने का इरादा पुनः व्यक्त कर दिया। कुल मिला कर ' भारत बंद ' का आवाहन विपक्षी दलों की एक औपचरिकता लगा और हमेशा की तरह आमलोगों को तरह -तरह की तकलीफे झेलनी पड़ी जो हमारे लोकतंत्र में जनता की नियति बन गयी है।
बंद के बाद शाम को गिरफ़्तारी का नाटक ख़त्म होने के बाद विपक्षी नेताओं की प्रतिक्रिया देखने लायक थी। भाजपा के अरुण जेटली और राजनाथ सिंह ,माकपा के नीलोत्पल बसु ने बंद की सफलता को ऐतिहासिक बताया । जनता को क्या तकलीफें हुयीं ,इसकी चिंता लेशमात्र भी नेताओं के चेहरे पर दिखाई नहीं दी। ..बंद की सफलता से ये राजनीतिक मोगाम्बे बहुत खुश हुए ।
बंद हो या रैली मतलब जनता के लिए सर दर्द...........समझ नहीं आता कि इन आधुनिक मोगैम्बो किसके लिए आन्दोलन करते हैं........अपनी सत्ता पाने की राह के आसान होने के लिए या फिर जनता के लिए?
ReplyDeleteजय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड