Sunday, November 29, 2009

यह कैसी क़ुरबानी ?

ईद -उल -जुहा उर्फ़ बकरीद बीत गयी । कुर्बानी के नाम पर लाखों निरीह बकरे कुर्बान हो गए । आज तक मै यह नहीं समझ पाया कि इन बेजुबानों को मार कर व पका कर खाने से कैसी धार्मिक संतुष्टि मिलती है । मैंने अपने कई मुस्लिम मित्रों से इस बावत पूछा ,पर सभी का रटा -रटाया सा जबाब था कि यह कुर्बानी प्रतीकात्मक है और एक रिवाज के रूप में सदियों से स्थापित है अतः इस पर तर्क की ज्यादा गुंजायस नहीं है । इक्कीसवीं सदी में ऐसी तर्क आश्चर्यजनक भले ही लगते हों पर धार्मिक अंधविश्वासों कि जड़े कितनी गहरी होती है,यह भी स्पष्ट होता है।
अखबारों में ईद-उल-जुहा के महत्त्व के बारे में कई इस्लामिक विशेषज्ञों के विचार भी पढने को मिले । इस पर्व को आध्यात्मिक उन्नयन को प्रेरित करने वाला बताया गयाक़ुरबानी को अपनी प्यारी से प्यारी चीज को अल्लाह के नाम पर न्योछावर करने की प्रथा कहा गयाकुछ लोगों ने यह भी कहा कि कुर्बानी बुरी इच्छाओं एवं आदतों के परित्याग का प्रतीक है । पर निरीह जानवर को काट कर ऐसे लक्ष्य कैसे प्राप्त किये जा सकते हैं ?
मुस्लिम समाज में अब शिक्षा का व्यापक प्रसार हो चुका हैवहां पर भी जागरूक संवेदनशील लोगों कि एक अच्छीखासी जमात हैऐसी वीभत्स और सारहीन प्रथाओं के विरुद्ध इस समाज में भी आवाज उठनी चाहिये
बकरीद पर इस बार बकरे बहुत मँहगे बिके । कुछ बकरे तो कार से भी ज्यादा मँहगे थे । पच्चीस लाख तक का बकरा बिका । मैंने अपने एक परिचित ,जो घर से बाहर सर्विस पर नियुक्त हैं , को बकरीद पर मुबारकबाद के लिए फोन किया । उनकी बच्ची ने फोन रिसीव किया । मैंने पूछा कि कैसी बकरीद मनाई? उसने कहा कि इस बार कुर्बानी नहीं हो पायी क्यांकि पापा ने अपने एक दोस्त को कुर्बानी के लिए बकरा खरीदने के लिए पैसे दिये थे ,पर बकरा इतना मँहगा था कि ख़रीदा नहीं जा सका । मैने कहा ,"फ़िर क्या किया ?" उसने कहा कि जो पैसे बकरा खरीदने को निकाले थे , वह गरीबों में दान कार देंगें । मुझे लगा कि कुर्बानी के स्थान पर यदि यह विकल्प अपनाने पर मुस्लिम समाज विचार करे तो केवल लाखों बेजुबान जानवरों के खून से हाथ रँगने से बचा जा सकता है वरन इस पर्व के मूल में निहित 'मोह -माया का परित्याग क़र आध्यात्मिक विकास की ओर अग्रसर होना ' भावना को सही अर्थों में साकार किया जा सकता है।

2 comments:

  1. aaj bhi ham sadiyon purani paramparaon ko gale lagaaye baithe hain, inka raasta khojna hi padega, upaay bhi aapki post par hai, bas amal men laane kii jaroorat hai.

    ReplyDelete
  2. आपने बिल्कुल सही बात का ज़िक्र किया है! हमें ज़रूर कुछ करना चाहिए !

    ReplyDelete