Monday, November 2, 2009

आतंकवाद का दंश और लाचार व्यवस्था

आतंकवाद दिन प्रतिदिन अपने क्रूर पंजों से भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों में दिल दहलाने वाले अंदाज में अपने पैर पसारता जा रहा है। पाकिस्तान ,जिसे तालिबानी आतंकवाद का पोषक माना जाता है ,आज स्वयं इस समस्या से जूझ रहा है। तालिबान उसके लिए भस्मासुर बन चुका है और पाकिस्तानी शासक व सेना यह समझ नहीं पा रहे हैं कि कैसे इससे पार पाया जाये? रावलपिंडी, पेशावर ,कराची,लाहौर ,इस्लामाबाद सहित पूरे पाकिस्तान में आतंकवादी जहाँ और जब भी चाहें आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दे देते हैं ।
भारत में आतंकवाद पर सरकार को दोहरे मोर्चों पर लड़ना पड़ रहा है । एक ओर सीमा पार का प्रायोजित आतंकवाद है तो दूसरी ओर तथाकथित माओवाद और नक्सलवाद की विचारधारा से पोषित एवं प्रेरित आतंरिक आतंकवाद । कुछ समय पहले तक यह माना जाता था कि नक्सलवाद शोषित ,एवं दलित वर्ग के किसानों ,मजदूरों एवं आदिवासियों के हितों को मुखर रूप से रखने वाली विचारधारा है और हिंसा एक साधन के रूप में अपना रहा है और इस कारण समाज के एक वर्ग में इसके प्रति एक सहानुभूति भी थी । पर जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में नक्सलवाद व माओवाद के तार विदेशी आतंकवादियों लिट्टे ,लश्कर व अलकायदा से जुड़े हैं और सामूहिक कत्लेआम तथा पुलिस व सुरक्षाबलों पर किए जाने वाले योजनाबद्ध हमलों में तेजी आयी है उससे जनता का मोह भंग हुआ है और जनमानस उनके खिलाफ हुआ है । इतिहास साक्षी है कि कोई भी हिंसात्मक गतिविधि तभी तक पनप पाती है जब तक जनसमर्थन उसके साथ रहता है । अपने भोलेपन ,अभाव और प्रलोभन में जनता कुछ समय तक तो बहकावे में आकर हिंसा पर आधारित विचारधारा को समर्थन दे सकती है पर कुछ समय बाद असलियत सामने आने पर समर्थन जारी नहीं रह सकता । वर्तमान समय में जिस तरह से नक्सलवादी-माओवादियों ने राष्ट्र -राज्य के विरुद्ध युद्ध छेड़ रखा है उससे उनके मानवतावादी तेवर पीछे छूट गए हैं और उनके विरुद्ध दमनात्मक कार्यवाही का विकल्प ही बचा है और इस पर राष्ट्रीय सहमति भी दिख रही है।
आज की इस विषम स्थिति के लिए हमारी राजनीतिक व्यवस्था भी कम दोषी नहीं है । पहले तो आर्थिक असंतुलन ,बेरोजगारी और पिछडे क्षेत्रों के विकास की योजनाओं के निर्माण व क्रियान्वयन की समीक्षा तभी होती है जब रोग नासूर बनने लगता है। दूसरी ओर हमारे राजनीतिक दल भी अपने सकीर्ण हितों की पूर्ति के लिए ऐसी प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन देने लगते है,जैसा कि बंगाल में CPI(M) एवं Trinmool Congress में हो रहा है । सरकार भी तभी चेतती है जब पानी सर के ऊपर आ जाता है ।
जो भी कारण रहे हों नक्सलवादी-माओवादी आज बुलंद हौंसलों के साथ सरकार को चुनौती दे रहें । यदि समय रहते इनका दमन न किया तो देश कि अखंडता के लिए ये बड़ा खतरा बन सकते है। समय कि माँग है कि सभी(राजनीतिक दल व जनता ) अपने सीमित हितों को दरकिनार कर इनके मुकाबले के लिए तत्पर हो जायें।

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