Tuesday, October 20, 2009

दीवाली -बुझी आंखों से कैसे जलें दिये ?

त्योहारों का सीजन है और मंहगाई की मार से आम आदमी कराह रहा है । दीवाली आई ,पर हर चीज के दाम आसमान पर । गरीब आदमी तो बस भाव पूछ कर ही तसल्ली कर लेता है । कैसे सब्जी ,मिठाई व दिये ख़रीदे ?बच्चे तो पटाखे व मिठाई के बिना मानने वाले नहीं । बड़ी हसरत से आदमी बाजार गया पर हिम्मत नहीं पड़ती कुछ भी खरीदने की। यहाँ तक कि आलू और प्याज भी आम आदमी की पहुँच से दूर हो गया है । किसी शायर की लाइनें याद आती हैं-
शान से जाती है क्या क्या हसरतें ,
काश वे दिल में भी आना छोड़ दें
आज ही टी० वी० पर ख़बर सुनी कि महाराष्ट्र में विदर्भ में पॉँच किसानो ने आत्महत्या कर ली । सुन कर मन बोझिल हो गया। कृषिप्रधान देश में किसानों की क्या हालत हो गई है ? किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला थमता ही नहीं लग रहा है है । सरकार है कि अपनी उपलब्धियों का बखान करते थकती नहीं। आतंकवाद के साये में त्यौहार सकुशल बीत गये,सरकार को इसी से तसल्ली है।
व्यवस्था की संवेदनहीनता पराकाष्ठा पर है । आशुतोष अष्ठाना पुलिस हिरासत में मर जाता है ,कितने राज अपने साथ लिए ,? जाँच के लिए सुप्रीम कोर्ट को निर्देश देना पड़ता है ।
हमारे यूं पी में तो हालत और भी खस्ता है । यहाँ मूर्तिप्रेम से तो जनता कराह ही रही है पर सरकारी दबंगों का जलवा बरकरार है । मेरे एक मित्र ने जो सीनियर प्रशासनिक अफसर हैं और पूर्वी उत्तर प्रदेश में तैनात हैं ,ने अपने जिले की एक दास्तान सुनाई - उनके जिले में जिलाधीश के घर पर हुई एक बैठक में सदर विधायक ने C D O के साथ बहस में बदतमीजी कर दी । कर्मचारियों द्वारा विरोध व्यक्त करने पर जब मीडिया ने D M से इस घटना के बारे में पूछा तो उनका जबाब था कि यहाँ चूँकि पहली बार ऐसा हुआ है इसलिए इतना बावेला हो रहा है ,हमारे वेस्टर्न यू ० पी० में तो अक्सर अफसर बंधक बनते रहते है ।
महान है हमारा देश और हमारी जनताइतनी सारी विसंगतियों के बीच भी त्यौहार मना ही लेती है। खुशियों के बीच गरीबों के आँसू किसे दिखते है ? बुझी आँखों से कितने घर अंधेरे में डूबे रहे ,इसकी खबर रखने वाला कौन है। आख़िर हम विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में जो रहते हैं ।

4 comments:

  1. बेहद मार्मिक है लेख .......जो दिल की धड्कनो को कमपित कर गयी !

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  2. आपको और आपके परिवार को दीपावली और भाई दूज की हार्दिक शुभकामनायें!
    बहुत बढ़िया लिखा है आपने ! दिल को छू गई इस मार्मिक कथा को पढ़कर !

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  3. bilkul sahi kahaa aapne. kya kiya ja sakta hai in sab ke liye? hame khud jagna hoga.

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  4. हमारे यूं ० पी ० में तो हालत और भी खस्ता है । यहाँ मूर्तिप्रेम से तो जनता कराह ही रही है पर सरकारी दबंगों का जलवा बरकरार है । मेरे एक मित्र ने जो सीनियर प्रशासनिक अफसर हैं और पूर्वी उत्तर प्रदेश में तैनात हैं ,ने अपने जिले की एक दास्तान सुनाई - उनके जिले में जिलाधीश के घर पर हुई एक बैठक में सदर विधायक ने C D O के साथ बहस में बदतमीजी कर दी । कर्मचारियों द्वारा विरोध व्यक्त करने पर जब मीडिया ने D M से इस घटना के बारे में पूछा तो उनका जबाब था कि यहाँ चूँकि पहली बार ऐसा हुआ है इसलिए इतना बावेला हो रहा है ,हमारे वेस्टर्न यू ० पी० में तो अक्सर अफसर बंधक बनते रहते है ।

    yeh wala incident aapne bilkul sahi kaha........

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