चुनावो में जनता की सहभागिता पचास प्रतिशत भी नहीं रहती है ,कन्या भ्रूण हत्या व महिलाओं पर अत्याचार बढ रहे है ,कानून व्यवस्था को आतंकवाद एवं नक्सलवाद की चुनोती निरंतर बढ रही है , गरीबों की हितैषी होने का दावा करने वाली सरकारें उनकी बढती भुखमरी नहीं देख पा रहीं है। आंकडो और वास्तविकता में जितना अन्तर हमारे देश में पाया जा रहा है उतना किसी भी विकसित लोकतंत्र में विश्व में नहीं दिखता ।
इस सम्बन्ध में मुझे बुंदेलखंड के प्रसिद्ध गीतकार ‘ मंजुल मयंक ’ की निम्नांकित पंक्तियाँ प्रासंगिक लगती हैं -
“बहारों के दिन है कि पतझड़ का मौसम , यही प्रश्न फुलवारियों से तो पूछो ;
है शबनम में भीगी कि आंसू में डूबी , जरा बाग की क्यारियों से तो पूछो ;
अभी भी हजारों अधर ऐसे जिन पर , न मुस्कान के पान अब तक रचे है ;
हसीं चीज क्या है , खुशी चीज क्या है , यही प्रश्न लाचारियों से तो पूछो ।”
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ReplyDeleteअंकल, हम ही पहले टिप्पणी करने वाले बने जाते हैं। अब आपका बराबर लिखना होता रहेगा और हम सभी के साथ-साथ ब्लाग मित्रों को भी आपके विचारो से अवगत होने का अवसर मिलेगा।
ReplyDeleteअंकल, हम ही पहले टिप्पणी करने वाले बने जाते हैं। अब आपका बराबर लिखना होता रहेगा और हम सभी के साथ-साथ ब्लाग मित्रों को भी आपके विचारो से अवगत होने का अवसर मिलेगा।
ReplyDeletechintan karane kee jarurat hai.narayan narayan
ReplyDelete“बहारों के दिन है कि पतझड़ का मौसम"
ReplyDeleteके विचार अच्छे लगे धन्यवाद
चिट्ठो की दुनिया में आपका स्वागत है.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर भी पधारे....
- गंगू तेली
http://gangu-teli.blogspot.com
अभी भी हजारों अधर ऐसे जिन पर , न मुस्कान के पान अब तक रचे है ;
ReplyDeleteहसीं चीज क्या है , खुशी चीज क्या है , यही प्रश्न लाचारियों से तो पूछो ।”SHANDAR KAVITA KE LIYE BAHUT BAHUT BADHAI...........