Saturday, June 20, 2009

ईश्वर के मायने

ईश्वर क्या है ? यह एक मिथ है या वास्तविकता ,इस पर प्रायः विद्वानों में बहस चलती रहती है । विद्वानों का एक वर्ग ईश्वर के अस्तित्व को नकार कर प्रगतिशील होने का दंभ भरता है । मेरा मत है कि ईश्वर की अवधारणा सामाजिक विकास का ही एक चरण है । यह लोगों को समस्याओं के बीच संबल प्रदान करता है ,उनका आत्मबल बढाता है। जब मानव का आत्मबल ऊँचा होता है तो वह किसी भी विपरीत परिस्थिति का सामना करने में सफल होता है।
मेरा विचार है कि यदि ईश्वर का विचार अस्तित्व में न होता तो अधिकांश मानव विक्षिप्त हो जाते। अतः हमें इसके लिए समाज निर्माताओं का ऋणी होना चाहिए। जरूरत इस बात की है कि ईश्वर के नाम पर धार्मिक ठेकेदारों के शोषण से भोलीभाली जनता को बचाया जाए । ईश्वर के सम्बन्ध में एक विवेकपूर्ण एवं व्यवहारिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।

1 comment:

  1. apne thik hi kaha ki ईश्वर की अवधारणा सामाजिक विकास का ही एक चरण है । यह लोगों को समस्याओं के बीच संबल प्रदान करता है ,उनका आत्मबल बढाता है। जब मानव का आत्मबल ऊँचा होता है तो वह किसी भी विपरीत परिस्थिति का सामना करने में सफल होता है।sir ji blog ki duniya me apka swagat hai .....aamin

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