Saturday, August 13, 2022

कट्टरता (असहिष्णुता) का प्रतिकार लोकतंत्र को बनाये रखने की अनिवार्य शर्त


            गत  12  अगस्त को अमेरिका के  न्यूयॉर्क शहर के चौटाउक्वा संस्थान में अपना संबोधन शुरू करने से ठीक पहले  भारतीय मूल के प्रसिद्ध ब्रिटिश लेखक (साहित्यकार) सलमान रुश्दी पर जो क़ातिलाना हमला हुआ, वह असहिष्णुता के नग्न प्रदर्शन का एक भयावह उदाहरण है. सभागार में  हजारों श्रोताओं की उपस्थिति में मंच पर चढ़कर श्री रुश्दी पर  एक युवा आतंकवादी द्वाराचाकू से हमला किया गया  जिसमें वे बुरी तरह घायल हो गये और जीवन -मृत्यु के बीच झूल रहे हैं.
          विचारों का प्रतिवाद विचार और तर्क-वितर्क से करने के स्थान पर हिंसा और ख़ून-खराबे से करना कट्टरपंथी ताक़तों की पुरानी फ़ितरत रही है.
         सलमान रुश्दी का पूरा नाम सर अहमद सलमान रुश्दी हैं और उनका जन्म 19 जून 1947 को बॉम्बे में हुआ था। वह एक ब्रिटिश भारतीय उपन्यासकार हैं. वह एक शिक्षित परिवार से थे.उनके पिता अनीस अहमद रुश्दी , कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के वकील थे और उनकी मां नेगिन भट्ट एक शिक्षिका थीं. वह मुंबई में 'कैथेड्रल' और 'जॉन कॉनन स्कूल' और इंग्लैंड में 'रग्बी ' स्कूल गए। उनका कॉलेज 'किंग्स कॉलेज' था और  'कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ' से उन्होंने ग्रेजुयेशन किया.
          बचपन से ही  रश्दी में लेखक बनने की इच्छा थी जिसे उन्होंने अपनी प्रतिभा से साकार किया. वे एक विश्व प्रसिद्ध  साहित्यकार  (उपन्यासकार  एवं कहानीकार) के रूप में जाने जाते हैं. उन्होंने अनेक  पुस्तकें लिखीं जिन्हें विश्वव्यापी प्रसिद्धि मिली. 
         रुश्दी की पहली पुस्तक 'ग्रिमस' थी जो 1975 में प्रकाशित हुई थी. यह एक अमर अमेरिकी मूल-निवासी ईगल की कहानी थी, जो जीवन के सही अर्थों का पता लगाने के लिए एक अभियान पर जाता है.इस बीच रुश्दी अभी भी एक स्वतंत्र विज्ञापन लेखक के रूप में काम कर रहे थे, उनकी दूसरी पुस्तक  'मिडनाइट चिल्ड्रन' 1981 में प्रकाशित हुई जिसे उन्होंने पाँच वर्षों में पूरा किया.
        उनकी  अगली पुस्तक 'द सैटेनिक वर्सेज' 1988  में आई जिस पर विवाद छिड़ गया. इस पुस्तक में   कुछ कुरान की आयतों को संदर्भित किया गया था जो  पैगंबर के जीवन में एक ऐसे समय के बारे में थे जो मुसलमानों के लिए अपमानजनक था.इससे मुस्लिम जगत में आक्रोश फैल गया और  ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला रहोला खुमैनी ने रुश्दी के लिए 'फतवा' जारी कर 'मौत की सजा' का ऐलान कर दिया.
          इसके बाद रुश्दी  के जीवन में उथल- पुथल मच गई  .सारे विश्व में इस पुस्तक और रश्दी की निंदा की गई. भारत में भी इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया गयात. ऐसे कई लोगों की इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा हत्या कर दी  गई.लोग सार्वजनिक रूप से रुश्दी का पक्ष लेने की बात करते थे, उनकी हत्या कर दी गई. रश्दी भूमिगत हो गये. ब्रिटिश सरकार ने उन्हें कड़ी सुरक्षा प्रदान की.  अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पैरोकार करने वाला विश्व का एक बड़ा वर्ग एवं कई देश  रश्दी को समर्थन देते रहे.
          1990 में रुश्दी का एक और उपन्यास 'हारून एंड द सी ऑफ स्टोरीज' जारी किया गया. उनकी पुस्तक 'द मूर्स लास्ट सीघ'  हिंदूवादियों के बीच आलोचना का पात्र बनी. 
           रश्दी की  रचनाएँ  अधिकतर भारतीय उपमहाद्वीप पर केंद्रित हैं और उनमें  पूर्व और पश्चिम की ओर पलायन और उनके बीच होने वाली घटनाओं जैसे विषय शामिल हैं.
           रश्दी को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उनकी पुस्तक 'द मिडनाइट्स चिल्ड्रन' को 'बुकर प्राइज' मिला.अंग्रेजी साहित्य में उनके अपार योगदान के कारण उन्हें 2007 में क्वीन एलिजाबेथ द्वारा नाइट बैचलर नियुक्त किया गया था. वह फ्रांस के 'ऑर्ड्रे डेस आर्ट एट डेस लेट्रेस' में 'कमांडर' हैं. रुश्दी 'द टाइम्स' की '1945 के बाद से 50 महानतम ब्रिटिश लेखकों' की सूची में 13वें  नम्बर पर  हैं. रुश्दी के नवीनतम उपन्यास को 'लुका एंड द फायर ऑफ लाइफ'  2010 में प्रकाशित हुआ था.उनके द्वारा लिखी गई अन्य पुस्तकों में 'फ्यूरी' (2001), 'शालीमार एंड द क्लाउन' (2005) और 'द एनचैंट्रेस ऑफ फ्लोरेंस' (2008) शामिल हैं.
            सलमान रुश्दी इस्लामी कट्टरपंथियों के निशाने पर सदैव रहे.  उन पर  हुए हमले से एक बात संदेह से परे है कि यह वैचारिक भिन्नता का सम्मान करने, यहां तक कि उसे सहन करने में असमर्थ कट्टरपंथ का ही कारनामा है।
           पूरे विश्व में, सभी समुदायों के भीतर इस तरह का कट्टरपंथ इन दिनों अभूतपूर्व उभार पर है। यह बेहद गम्भीर और चिंताजनक स्थिति है  और लोकतंत्र के लिये बेहद खतरनाक है. आज इस बात का संकल्प लेना लोकतंत्र के विकास और बेहतरी के लिये बहुत जरूरी है कि ऐसी विध्वंसकारी प्रवृत्तियों के विरुद्ध सभी लोकतांत्रिक सरकारें एवं वर्ग एकजुट  होकर प्रभावी कदम उठायें. ऐसे नकारात्मक व घृणित कार्यों के प्रतिकार के लिए तैयार होने की आज बहुत  आवश्यकता है.
         लोकतंत्र में आस्था रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को सलमान रुश्दी पर हुए इस हमले की कठोर भर्त्सना  करनी चाहिये.

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