आज पर्व है मकर संक्रांति,
दिखे सूर्य में भी नयी कान्ति;
जीवन को हम नयी दिशा दें,
मिटे ह्रदय से सारी भ्रान्ति।
आज मिटाये मन का कुहरा,
दिखे समाज का नूतन चेहरा;
शान्ति और सद्भाव बढायें,
लेवें सब संकल्प यह गहरा।
गर विभेद बढ़ते जायेगें,
आपस में विश्वास घटेगा;
भ्रम, अफवाहों की आँधी में,
यह समाज और देश बटेगा।
आखिर हम सब भाई-भाई,
यह ही है अंतिम सच्चाई;
चलो मिटायें सारी भ्रान्ति,
सार्थक हो पर्व 'मकर संक्रांति'।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई।
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