Sunday, July 15, 2018

उत्तर प्रदेश में लेखपालों की हड़ताल

    लोकतंत्र में धरना प्रदर्शन, कार्य -बहिष्कार और जेल भरो आंदोलन सत्याग्रह आदि अधिकार एवं न्याय मांगने के माध्यम होते हैं। आजादी के समय महात्मा गांधी जी ने सत्याग्रह का तरीका अपनाया था जिसके सामने शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार बेबस हो गयी थी.
    स्वतंत्रता के बाद भी अपनी मॉगों को मनवाने के लिये शांतिपूर्ण धरना, प्रदर्शन व आंदोलन के तरीके विभिन्न कर्मचारी संगठनों के द्वारा अपनाये जाते रहे हैं. प्राय:यह देखा गया है कि आंदोलन के दौरान आंदोलनकारी पुलिस की लाठी गोली खाने के बावजूद हिंसक नहीं होते हैं
      यह भी देखा गया है कि आंदोलन, विरोध एवं कार्य बहिष्कार व हड़ताल के सहारे जितनी सफलता कर्मचारी संगठनों को मिल जाती है, उतनी आमलोगों को धरना प्रदर्शन करने पर जल्दी नही मिल पाती है। कहा जाता है -" संघे शक्ति कलियुगे" (कलियुग में सगंठन की शक्ति है) लोकतंत्र में संगठित होकर संघर्ष करने से प्राय: सफलता प्राप्त हो जाती है।
     उत्तर प्रदेश में इस समय लेखपालों की हड़ताल चर्चा का विषय बनी हुयी है और सरकार ने इस हड़ताल पर रोक लगा दी है। इतना ही नहीं हड़ताली लेखपालों के खिलाफ एस्मा कानून के तहत मुकदमें दर्ज कराये जा रहे हैं और लेखपालों को बर्खास्त तक करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है।.     
     लेखपाल पिछले कई दिनों से अपनी कुछ मांगों को लेकर सांकेतिक हड़ताल चला रहे थे लेकिन इधर उन्होंने हड़ताल के स्वरूप को  उग्र कर दिया और सारा कामकाज बंद करके बेमियादी हड़ताल शुरू कर दी गई है।
      यह देखा जा रहा है कि इस हड़ताल का प्रभाव सरकार पर कम ,आमजनता पर अधिक पड़ रहा है और सबसे ज्यादा असुविधा राजस्व मामलों में हो रही है। लोगों को जाति निवास एवं आय प्रमाण पत्र नही मिल पा रहे हैं।
      सरकार भी जिद पर अड़ गयी है और उसने स्पष्ट कर दिया है कि पहले हड़ताल खत्म हो फिर आगे की बात हो .उसने कठोर कार्यवाही के संकेत भी दे दिये हैं.
      वैसे लोकतंत्र में आंदोलन व हड़ताल को राष्ट्रहित में दबाया जा सकता है किन्तु जहॉ पर अधिकारों एवं हक की लड़ाई हो वहां पर आंदोलनकारियों की बात सुनकर उनकी उचित मांगों पर विचार करना भी सरकार का ही दायित्व होता है।
     लेखपालों की माँगें अगर उचित हैं तो सरकार का दायित्व बनता है कि वह उन पर ध्यान दे ,क्योंकि सरकार जनता के साथ अपने कर्मचारियों की भी संरछक होती है. लेकिन लेखपालों का भी दायित्व है कि वे संगठन व आंदोलन को हथियार न समझ कर अपने कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों का भी ध्यान रखें .
      लेखपाल सीधे आमलोगों से जुड़ा राजस्व का प्रथम लोकसेवक होता है और उसकी पैमाइश एवं जाँच रिपोर्ट आदि पर अदालत सिर्फ बहस सुनती है।लेखपाल जनजीवन से जुड़ा एक महत्वपूर्ण पद होता है जिसकी भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण होती है तथा वह ग्राम पंचायत में प्रधान के सचिव की भूमिका निभाता है। लेखपालों की मॉगें कितनी जायज क्यों न हो ,उनकी हड़ताल से सबसेे अधिक असुविधा आम लोगों को ही हो रही है.
     योगी सरकार ने इस हड़ताल पर सख्त रुख अख्तियार किया है. इससे लेखपालों में हड़कंप मच गया है. प्राय: यह देखा गया है कि जब चुनाव पास आते हैं तो विभिन्न संगठन अपनी मॉगों को पूरा करने का दबाव बनाने लगते हैं. इस संबंध में सरकार को एक संतुलित नीति अपनानी चाहिये. लोकतंत्र में सरकार शक्ति या दमन के जोर पर नहीं चल सकती. पर लोगों को जो अधिकार मिले हैं उनसे दुरुपयोग व ब्लैकमेल करने की भी छूट नहीं दी  जा सकती है. शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात रखना ही एकमात्र विकल्प है.

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