Monday, July 3, 2017

स्मृतियों की बहुमूल्य थाती एवम् नई पारी की शुरुआत


     महर्षि उद्दालक ऋषि की तपोभूमि उरई (जिला-जालौन,उ.प्र. ) तथा अपने समय के सफ़ल कूटनीतिक राजा माहिल के किले पर स्थित दयानंद वैदिक कालेज में लगभग 42 वर्ष 10 माह का सेवाकाल पूर्ण करने के बाद कल 30 जून  2017 को मैं सेवा निवृत्त हो  गया. आज लग रहा है कि जैसे जीवन की नई पारी की शुरुआत हुई हो. पर बीते समय की स्मृतियाँ चलचित्र की भांति नेत्रों के सम्मुख आती जा रही हैं.
    मेरा घर इस कालेज के पास ही है ,इसके प्रांगण में खेलते हुए बचपन बीता. पिताश्री बताते थे कि इसमें कालेज की स्थापना में स्व. मूल चन्द्र अग्रवाल के दान एवं संस्थापक प्राचार्य स्व. किशोरी लाल खरे,  प्रबन्ध समिति के संस्थापक अवै. मन्त्री स्व. रमा शंकर सक्सेना, अध्यक्ष स्व. बैजनाथ गुप्त,स्व.श्याम सुन्दर पुरवार, स्व. चतुर्भुज शर्मा के श्रम व सहयोग का विशेष योगदान रहा. परमसंत पूज्य भवानी शंकर (चच्चाजी) ने भी इसके विकास योगदान दिया.
    बचपन से कालेज की गतिविधियाँ देखी हैं. किशोरी लाल जी के समय student union के लिये आंदोलन चला. श्री कैलाश पाठक पहले president बने.1962 के चीनी आक्रमण के समय छात्रसंघ के पदाधिकारियों ने जूते पालिश कर एवं रिक्शा चला कर धन एकत्र कर प्रधानमंत्री सहायता कोष में जमा किया था. बाल मन के लिये यह गतिविधियाँ कौतूहलपूर्ण होती थीं.बड़े भाई से सुनतेथे कि इस कालेज के अध्यापक बड़े ही योग्य हैं.
    श्री किशोरी लाल खरे जी जब देहावसान हुआ पूरे में ऐसा शोक छा गया जैसे कि किसी राष्ट्रीय व्यक्तित्व  का निधन हो गया हो. उनके उत्तराधिकारी के रूप में डा. बृजवासी लाल श्रीवास्तव जी प्राचार्य के रूप में नियुक्त हुए. उन्हें सही अर्थो में इस कालेज जा शिल्पी कहा जा सकता है. उन्होंने महाविद्यालय में कार्य संस्कृति को  लागू किया जिसका प्रभाव अब तक कालेज पर रहा है . वे छोटे कद के आत्मविश्वास से परिपूर्ण सौम्य चेहरे वाले विद्वान व्यक्तित्व थे. उन्होने कभी भी छात्रों की गलत मांगें नहीं मानी. छात्र घंटों उनका घेराव करते रहते थे पर वे हंसते हुए अपना कार्य करते रहते थे . उनका कार्यकाल इस कालेज का स्वर्ण युग माना जाता है.यह कालेज पहले  आगरा विश्वविद्यालय से, उसके बाद कानपुर विश्वविद्यालय दे सम्बद्ध रहा. प्रतिवर्ष इस कालेज से university toppers निकलते थे जिसकी चर्चा विश्वविद्यालय में होती  थी. उनके समय कालेज का अदभुत विकास हुआ एवं शिक्षा की गुणवत्ता शिखर पर पहुची.
    मुझे भी इस कालेज में स्नातक व परास्नातक कक्षाओं में अध्ययन करने का अवसर मिला. जब मैं राजनीति शास्त्र में M.A .Final कर रहा था,तब विभाग में एक शिक्षक का पद रिक्त था.हम लोगों ने इसलिए पद पर शिक्षक की नियुक्ति  की माँग करते हुए  pen down strike कर दी.हम लोगों की गिनती पढ़ने वाले व अकादमिक कार्य करने में सक्रिय छात्रों में होती थी. प्राचार्य डा. लाल ने आकर हम लोगों को  समझाया कि मै चाहता हूँ कि इसमें पद पर प्रथम श्रेणी प्राप्त शिक्षक की वे नियुक्ति  करना चाहते हैं (उस समय पिछले चार  वर्ष से-1970 से - कानपुर विश्वविद्यालय मे political science में प्रथम श्रेणी नहीं आ रही थीं.) यदि आप में से कोई प्रथम श्रेणी ले आये  तो उसे वे नियुक्त  करवा देगे. संयोग देखिये कि 1974 में कानपुर विश्वविद्यालय की  M A (polical Science) की परीक्षा में मुझे  प्रथम श्रेणी व  विश्वविद्यालय  में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ.बाद में convocation में मुझे उ.प्र. के तत्कालीन राज्यपाल chenna Reddy द्वारा Gold medal भी प्रदान किया गया .
      मुझे याद है कि मेरा result 2सितम्बर  1974 को National Herald, lkwमें प्रकाशित हुआ. उस दिन saturday था. उसी दिन शाम को मेरे पास कालेज से Appointment Letter आ गया जिसकी  भाषा  थी-"you have appointed as lecturer in political science on adhoc basis. please  join at once. " इस पत्र के अनुपालन में मैने 4 सितम्बर 1974 को join कर लिया .  बाद में मुझे पता चला कि मेरे तत्कालीन विभाग प्रभारी मेरे  गुरुदेव परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन डा.उदय नारायण शुक्ल जी ने प्राचार्य डा. लाल से कहा कि आपने छात्रों से कुछ वादा लिया था. इस पर प्राचार्य जी ने मन्त्री प्रबन्ध समिति स्व. मणींद्र जी से चर्चा की और तुरंत नियुक्ति पत्र निर्गत कर दिया . पहले लोग बात के कितने धनी हुआ करते थे.
      कुछ समय बाद  स्थायी चयन प्रक्रिया के समय श्रद्धेय मणींद्र जी,पूज्य बृज बिहारी जी, प्राचार्य लाल साहब, गुरुदेव डा. यू. एन. शुक्लजी ने जटिल परिस्थिति में मेरे चयन में जो भूमिका निभायी, उसके लिये मै आजीवन ऋणी रहूंगा. इन महान् आत्माओ को मेरा कोटि कोटि नमन.
      अपने छात्र जीवन एवं सेवाकाल में कुछ ऐसे व्यक्तित्व हैं जिन्होने मुझे बहुत प्रभावित किया एवं अत्यन्त स्नेह दिया .परम स्नेही दत्ता साहब, डा. यू. एन. शुक्ल जी, डा.पी.एन .दीक्षित जी. डा.के .एस .शुक्ला जी,डा. जय दयाल सक्सेना जी,प्रो .आई.एस .सक्सेना जी.डा. प्रेम नारायण  दीक्षित  डा.बी.बी.जौहरी जी, श्री रमन साहब,ठा .तकदीर सिंह जी , डा. वी. के . श्रीवास्तव जी ,डा. मोहनलाल जी,डा.हरीश श्रीवास्तव जी ,डा.शारदा श्रीवास्तव  जी, डा. राम गुलाम निगम जी,डा. बी. एन वर्मा जी, श्री आर. के. त्रिपाठी जी, श्री एल .एन .त्रिपाठी, डा. जे.पी. श्रीवास्तव जी, डा. राम स्वरूप खरे  जी,डा. राम शंकर द्विवेदी जी, डा. दुर्गा प्रसाद खरे जी, डा. यामिनी जी, श्री गोपाल राव आठले जी.डा.जी सी.श्रीवास्तव.,डा. वी.के.पाठकजी,एस .पी.सक्सेनाजी,प्रो .ज़ियाउद्दीन,डा.एन .डी. समाधिया जी आदि.
     अपने संघर्षशील साथी डा. के. पी. गुप्ता जी, डा. जी. एस. निरंजन जी., डा.कुलश्रेष्ठ जी , डा. सेंगर जी,डा. एस.पी. श्रीवास्तव जी, डा.बेग जी,डा.  मानव जी,सत् चित् आनन्द जी,डा.राजेन्द्र पुरवार भी याद आते  हैं जिनके समय शिक्षक संघ एक प्रभावी संगठन बना .
    अपने समकालीन साथियो में डा.अभय जी,शर्मा जी, डा. सुभाष खुराना,डा. इन्द्रजीत निगम डा.पूरन सिह जी,डा.राज किशोर जी,डा.अनिल श्रीवास्तव जी,डा.राजेन्द्र निगम ,डा.शारदा अग्रवाल, डा. कांति श्रीवास्तव जी, डा.शैलेन्द्र जी ,डा.यू.एन.सिह ,डा.शरद जी,डा.राम लखन ,डा.अरूण श्रीवास्तव  को भी भुलाना संभव नही.
     कालेज के मेरे  छात्र  जीवन  के साथी स्व. सत्य नारायणत्रिवेदी ,बडेभाईरवीन्द्रत्रिपाठीजी,ए .के .वर्मा  ,ओ.पी.श्रीवास्तव,एम.पी. किलेदार जी, रामाकृष्णा,शील कुमार,प्रद्युम्नसेंगर,अभिमन्युसिह,नरेन्द्रजी,शारदाजी,आभामिश्र,मृदुला राठौर,रवि शंकर जी,शरद जी ,आदित्य मिश्र की याद सदैव स्मृति पटल पर अंकित रहती है.
    कुछ समय पूर्व हम लोगो ने अपने दो बहुमूल्य सहयोगियो डा.वीणाजी एवम् डा.सत्य प्रकाश जी को खो दिया.इन्हे भूलना कभी संभव नहीं.
    अपने सेवाकाल में मुझे अपने गुरुओ, सहयोगियो और विद्यार्थियो का अद्भुत प्यार व सहयोग मिला उसे व्यक्त करने के लिये मेरी शब्द सामर्थ्य पंगु हो  रही है. मेरे विभाग के वरिष्ठतम साथियो -डा.शुक्ल जी,  डा.जयदयाल जी,राजेन्द्र कुमार जी एवम् जयश्री जी-ने मुझे जहा अपरिमित स्नेह दिया वहा मेरे  जूनियर साथी डा. रिपु सूदन जी  का यादगार साथ रहा. वर्तमान में मेरी सहयोगी डा.नगमा खानम, जो मेरी student भी  रही हैं, ने मेरी अपनी बेटी की तरह   मेरा ध्यान रखा. वह एक कुशल teacher और hard worker है. उसे मेरी ढेरों  शुभकामनाये
      मेरेसाथNSSअधिकारीकेरूपमेंडा.आर .के .श्रीवास्तव जी एवं डा.वीरेन्द्र यादव रहे ज़िनके साथ यादगार समय बीता . डा.वीरेन्द्र यादव के प्रयासो से कालेज में  सेमिनारो की श्रंखला   व  वैग्यानिक शब्दlवली आयोग की कार्यशालायें  संपादित हुयी और जब तक वे कालेज में रहे अकादमिक माहौल समृद्ध रहा .

     जब मै इस कालेज में अध्ययन करता था तब मैने कभी कल्पना भी न की थी कि यह विद्यालय में ही मेरा भविष्य निर्धारित है. मुझे इस कालेज में प्रवक्ता, रीडर, विभागाध्यक्ष एवं प्राचार्य के रूप में कार्य करने काअवसर मिला इसके लिये मै स्वयं को सौभाग्यशाली मानता हूँ और इसे अपने माता-पिता ,गुरुओ व बुजुर्गो तथा परमपिता परमात्मा के आशीष का सुफ़ल मानता हूँ.
   प्राचार्य पद के दायित्व निर्वाह में मुझे Post NAAC छात्र असंतोष का सामना करना पड़ा.पर सभी साथियों एवं कार्यालयीन साथियों के सहयोग से उसे सुलझाने में  सफ़ल  हुआ.  डा. राजेन्द्र निगम, डा. आनंद खरे, डा. डा. राम लखन, डा. राम प्रताप सिंह ,डा. मदन बाबू चतुर्वेदी , जैसे  शिक्षक तथा कार्यालय के कर्मचारी अनन्त खरे, अरूण लाल, मुहम्मद.,जितेन्द्र यादव ,लेखराम ने विशेष रूप से सक्रिय रह  कर  सहयोग किया.
    मेरे प्राचार्य काल में  डा. तारेश भाटिया, डा. अलका पुरवार, डा. नीलम जी ,डा. सुरेन्द्र चौहान, डा. आनन्द खरे, डा. राम किशोर गुप्ता, डा. विजय यादव,डा. राम प्रताप, डा. मदन मोहन तिवारी , डा. आर. के. श्रीवास्तव, डा. शारदा जी,डा. परमात्मा शरण,श्री राजन भाटिया,डा. मन्जू जौहरी, डा. शैलजा,डा. दुर्गेश सिंह, डा. राजेश पालीवाल,डा. रमेन्द्र ,वर्षा  राहुल एवं सभी कार्यालय के कर्मचारियो ने प्रशासनिक कार्यो के सम्पादन में मुझे जो सहयोग दिया ,उसके लिए मैं आभारी हूँ.  मानदेय  SFS पर कार्यरत हमारे युवा साथियो ने कालेज की प्रत्येक गातिविधि में सदा पूर्ण समर्पंण से कार्य  किया  ,मैं उनको शुभकामनायें देता हूँ .
        मुझे खुशी है कि मेरे प्राचार्य काल में कार्यालय में 13 कर्मचारियो की नियुक्ति हुयी एवं 8 कर्मचारियो को प्रमोशन मिला. मैं भी इस प्रक्रिया में सहभागी  रहा .
        मैं अवै. मन्त्री जी का भी आभारी  हूँ कि  उन्होने मुझे अचानक इस कालेज का प्राचार्य नियुक्त किया और जब मैने प्राचार्य के  दायित्व को छोड़ने की इच्छा प्रकट की, उन्होने मेरी समस्याओ पर  गौर  कर मुझे दायित्व से मुक्त किया जिसके  परिणामस्वरूप मैं  अवकाश ग्रहण से पूर्व अपने पारिवारिक दायित्वो जो पूर्ण कर  सका .

    बुन्देलखंड विश्वविद्यालय में भी मुझे लम्बे समय तक convener, Board of Studies(pol. sciencकe).member,Academic Council के रूप में कार्य करने काअवसर मिला.Executive
council के सदस्य तथा कला संकाय के सदस्य के रूप में कार्य करने का भी अवसर मिला.मैं विश्व विद्यालय के अपने मित्र डा.कमलेश शर्मा का भी ज़िक्र करना चाहूगा ज़िनकी मस्ती ,दबंगयी व सहयोग हम मित्रों के  लिये गर्व का विषय रहा है .

    मेरी सबसे बड़ी पूँजी मेरे  विद्यार्थी हैं जिनके स्नेह से मै अभिभूत हूँ.पुराने विद्यार्थी आज भी सम्पर्क बनाये हैं .मैं उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ .
    समाज में भी मुझको जो भी सम्मान ( उ .प्र.राजनीति परिषद का अध्यक्ष, भारत विकास परिषद उरई का संस्थापक  अध्यक्ष ,सरगम ,उरई ग्रेटर जेसीज का अध्यक्ष सहित अनेक संस्थाओ में सहभगिता ) मिला है .वह इस कालेज में मेरी स्थिति के  कारण  है. मैं इस महाविद्यालय का सदैव ऋणी रहूंगा.
     रिटायरमेन्ट मेरे लिये एक नई पारी की शुरुआत है.बस सभी का प्यार इसी तरह  मिलता रहे .

No comments:

Post a Comment