Thursday, July 21, 2011

मन में घिरा एक द्वंद्व है ..

एक लम्बे समय के बाद पोस्ट लिख रहा हूँ।पिछला एक वर्ष हमारे समाज व देश के लिये घटनापूर्ण रहा । सामाजिक व राजनीतिक मूल्यों में ह्रास, घोटालों का खुलना और उन में सत्ताधीशों की बेशर्म संलिप्तता ,अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान पर राजनीतिक पैतरेबाजी , रामदेव के सत्याग्रह पर दमनात्मक कार्यवाही और दिन -प्रतिदिन विस्तार पाता हमारा स्वार्थपूर्ण चरित्र आदि प्रवृत्तियों से त्रसित आहत मन से कुछ काव्यमयी प्रतिक्रिया अभिव्यक्त हुई जिसे प्रस्तुत कर रहा हूँ -

मन में घिरा एक द्वंद्व है
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नव सदी का आरम्भ है ,
मन में घिरा एक द्वंद्व है

सुविधा हुई प्रधान है ,
संचित मूल्य हो रहे गौण ;
बस ही हमारा पूर्ण हो,
हैं इसी लीक पर युवा प्रौढ़ ;
प्रतिपल बदलती मान्यतायें,
ज्यों ज़ल -नदी निर्बन्ध है
मन में घिरा एक द्वंद्व है

सच बात की कीमत नहीं ,
सच बोलना अपराध है
स्वार्थ पूर्ण हो कैसे अपना ,
हैं इसी लीक पर युवा प्रौढ़ ;
संवेदना की बात पर तो,
अब यहाँ प्रतिबन्ध है
मन में घिरा एक द्वंद्व है

यह प्रगतिशील समाज है,
क्या -क्या सृजन होगा यहाँ ?
विकृत विचारों का प्रसार ,
यह समाज जायेगा कहाँ?
विवेकशून्यता से घिरी ,
नव प्रगतिपूरक गंध है
मन में घिरा एक द्वंद्व है

यह लोकतान्त्रिक देश है ,
सस्ती मनुज की जान है ;
भृष्ट आचरण ,विकृत चरित्र ,
यहाँ शासकों की शान है ;
गाँधी दिखें हर नोट पर ,
अनशन ,सत्याग्रह पर दंड है
मन में घिरा एक द्वंद्व है

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