Saturday, February 27, 2010

छाये रंगों की ऐसी बहार होली में

होली का त्यौहार भारतीय सांस्कृतिक जीवन में एक नये उल्लास का संचार करता है । गरीब हो या अमीर ,सभी अपनी समस्याओं को इस अवसर पर भुला कर मस्ती से सराबोर हो जाते हैं और जीवन की जटिलताओं से पल भर को पा लेते है । इस पावन अवसर पर कुछ काव्यात्मक अभिव्यक्ति की इच्छा हुई ।
............... होली में ..................
छाये रंगों की ऐसी बहार होली में ,
आये मन में ऐसा खुमार होली में ,
तन के संग , मन भी रँग जाएँ ;
उठे ऐसी हुँकार होली में
भूलें सब राग-द्वेष होली में ,
दिखे सदभाव का परिवेश होली में ,
भूल जायें क्षेत्र,भाषा,जाति की बातें ;
दिखायें एकता का वेष होली में
दिल जोड़ने का आये विचार होली में ,
खुशियों की छाये बहार होली में ,
भूले सभी सारे गिले -शिकवे ;
बहे देश में ऐसी बयार होली में
..........................ब्लॉग जगत के सभी पाठकों को होली की हार्दिक शुभकामनायें ..............................

Wednesday, February 24, 2010

इतिहासपुरुष 'सचिन ' को सलाम

ग्वालियर वन डे में भारत की जीत के नायक सचिन तेंदुलकर ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में साऊथ अफ्रीका जैसी शक्तिशाली टीम के खिलाफ वन डे में दोहरा शतक लगा कर एक असंभव सा लगने वाला कारनामा प्रस्तुत किया है । यह उपलब्धि पाने के बाद भी उनकी स्वाभाविक विनम्रता में कोई कमी नहीं आयी है । सचिन अपनी फिटनेस ,एकाग्रता और कुशलता के लिये सभी खिलाडियों के लिये एक आदर्श कहे जा सकते हैं। मैदान के बाहर और भीतर उनका व्यवहार सदैव शालीन रहा है । ख़राब फार्म के समय भी अपने आलोचकों का जबाब उन्होंने सदैव अपनी नई उपलब्धि से दिया है। वे भारत के अनमोल रत्न हैं जिन पर सभी देशवासी गर्व कर सकते हैं। उन्होंने अपना शतक भी देश के नाम समर्पित किया है। ऐसी जांबाज व्यक्तित्व को हम सबका सलाम -
" हजारों साल जब धरती अपनी बेनूरी पर रोती है ;
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा । "

Saturday, February 13, 2010

आतंकी हिट और सरकार फ्लाप

आई .पी. एल. में पाकिस्तानी खिलाडियों के न लिये जाने पर शाहरुख़ खान के बयान के बाद बाल ठाकरे एवं शिव सेना की प्रतिक्रिया उदारमना भारतीय मानस को भले ही रास नहीं आयी हो और कांग्रेस ,भाजपा सहित सभी राजनीतिक दलों ने अपने सियासी गणित से शिवसेना बैक फुट पर भले ही चली गयी हो ; केंद्र व महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार ने अपनी पीठ थपथपा ली हो और सारे देश के अख़बार व मीडिया चैनल 'खान हिट और ठाकरे फ्लाप ' के स्लोगन से अटे पड़े हों, १३ फरवरी को पुणे के जर्मन बेकरी रेस्तरां पर हुए आतंकी हमलों ने २६/११ के आतंकी हमले की न केवल याद दिला दी वरन आतंकी हमलों से बचाव की हमारी तैयारी पर फिर से कुछ अनसुलझे सवाल उठा दिए ।
जहाँ एक ओर भारत सरकार व जनता का एक बड़ा वर्ग खेल में राजनीति से परे रह कर पाकिस्तानी खिलाडियों के प्रति सहानुभूतिपरक दृष्टिकोण अपनाने का हिमायती था वहाँ दूसरी ओर पाकिस्तान भारत की विदेश सचिव वार्ता पर असहयोगात्मक रवैया अपना रहा था । पुणे के बम ब्लास्ट ने रही- सही कसर पूरी कर दी और आतंकियों को पाकिस्तानी शह के संदेह और भी पुख्ता हो गये।
शिवसेना की क्षेत्रीय राजनीति की निंदा की जानी चाहिये पर सरकार के पाकिस्तान के प्रति नरमी के प्रति उसके विरोध को ख़ारिज नहीं किया जा सकता । जाने -अनजाने हमारी सरकार विदेश नीति के क्षेत्र में पाकिस्तानी चालों के जबाब में असहाय सी दिखती है। पाकिस्तान से वार्ता की पेशकश के दौरान आतंकी हमला भारत तथाकथित चाक -चौबंद सुरक्षा के सरकारी दावे पर एक करारा तमाचा है। मुंबई में 'खान हिट और शिवसेना फ्लाप' भले ही हो गयी पर पुणे में हुए इस आतंकी हमले से हमारी सरकार की आतंकवाद के खिलाफ पुख्ता तैयारियों के दावे पूरी तरह फ्लाप हो गये हैं ।

Monday, February 8, 2010

इन्हें शर्म भी नहीं आती

कल के समाचार पत्रों का अवलोकन करने दो समाचारों ने ध्यान खीचा -
पहली खबर आस्ट्रेलिया से थी जहाँ विक्टोरिया के पुलिस प्रमुख साइमन ओवरलैंड ने भारतीयों को सुझाव दिया कि वे हमलों से बचने के लिये गरीबकी तरह दिखें, 'लो प्रोफाइल ' रहें और चमक -दमक से दूर रहें ।(द एज ) इस घटना से सिद्ध होता है की अभी भी विकसित देशों संकीर्ण और भेदभावपूर्ण मानसिकता में अभी भी बदलाव नहीं आया है । यह शुद्ध नस्लवाद नहीं तो क्या है ?भारत सरकार को इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करना चाहिए और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस प्रवृत्ति के विरुद्ध जनमत बनाना चाहिए।
दूसरी खबर अपने भारत की आथिक राजधानी मुंबई से है । बढती मंहगाई पर कड़ी आलोचना झेल रहे कृषिमंत्री शरद पवार की पार्टी राकांपा की पत्रिका 'राष्ट्रवादी' के सम्पादकीय में लिखा गया है ,"चीनी नहीं खायेगें तो मर नहीं जायेगें "(दैनिक हिंदुस्तान ,८ फरवरी २०१०)। इसमें फ़रमाया गया है कि' चीनी नहीं खाने से किसी की मौत नहीं होती और इसे कहने से मधुमेह बढता है॥ अतः जरूरी नहीं है कि हर कोई चीनी खाए "
एक ओर हम इक्कीसवीं सदी में वैचरिक एवं भौतिक प्रगति के नए क्षितिज छूने का प्रयास कर रहे हैं ,तो दूसरी ओर अभी तक नस्लवादी मानसिकता से मुक्त नहीं हो पा रहे है । राजनीतिक तौर पर गैर जिम्मेदार एवं संवेदनहीन बातें करने में अपनी शान समझते हैं । यह सब बेहद शर्मनाक है

Saturday, February 6, 2010

कराहती जनता और संवेदनहीन तंत्र

कमरतोड़ मंहगाई से कारण आज देश की जनता कराह रही है और सरकारें उस पर राजनीति करने से बाज नहीं रहीं हैं। रोजमर्रा की चीजें आम आदमी की पहुँच से दूर होती जा रहीं हैं। चीनी की कीमतें आसमान पर है और कृषि मंत्री की एन सी पी का मुखपत्र जनता को चीनी खाना छोड़ने की सलाह दे रहा है। बेशर्मी की पराकाष्ठा है यह। मुख्यमंत्रियों की बैठक में मँहगाई की समस्या पर सार्थक विचार- विमर्श की बजाय राजनीतिक रोटियाँ सेंकने की प्रवृत्ति ज्यादा दिखी अधिकतर मुख्यमंत्रियों ने कोई सार्थक सुझाव न देकर केंद्र सरकार को कटघरे में करने में और चुटकी लेने में ज्यादातर दिलचस्पी दिखाई जैसेकि राज्य सरकार का मंहगाई से कोई वास्ता ही न हो।
राजनीतिक व प्रशासनिक स्तर परजिम्मेदार पदों बैठे राजनेताओं की यह संवेदनहीनता अत्यंत शर्मनाक है। ऐसा लगता है की बेशर्मी ने हमारे देश के राजनीतिक कल्चर को आच्छादित कर लिया है प्रधान मंत्री राजनीतिक गणित के कारण कृषि मंत्री को हटा पाने की हिम्मत नहीं रखते। वे केवल आशावादिता में ही जी रहें हैं कि 'बुरा दौर ख़त्म हो गया है ,अब मंहगाई कम होने वाली है। ' पर कब ? इसका स्पष्ट उत्तर उनके भी पास नहीं है।
साठ वर्षों से अधिक की हमारी लोकतान्त्रिक यात्रा का निष्कर्ष आज यही दिखाई दे रहा है कि तंत्र , जन से बहुत दूर ही नहीं वरन उसके प्रति संवेदनहीन होता जा रहा है नेताओं के पेट मोटे होते जा रहे हैं और गरीब दो जून रोटी को मोहताज होता जा रहा है। गरीबों के प्रति संवेदनशीलता को प्रदर्शित करने यदि कोई लोकतान्त्रिक दल का राजकुमार निकलता भी है तो उसका प्रयास वोट बटोरने की राजनीति का एक हिस्सा ही लगता है
सरकार अपनी पीठ थपथपा सकती है कि उसने कई जनोन्मुखी योजनायें लागू की हैं , सूचना का अधिकार उपलब्ध कराया है और गरीबों व दलितों की स्थिति सूधारने के लिये काफी काम किया है । पर मंहगाई का दानव इन सब पर भारी है । जब तक पेट खाली है तब तक सारे स्वतंत्रता अधिकार बेमानी हैं । बड़ी प्रचलित उक्ति है - ' भूखे भजन होय गोपाला ,ये लो अपनी कंठी माला '

Friday, February 5, 2010

- 'सामना का सच' बनाम 'सामने का सच '

महाराष्ट्र फिर सुर्ख़ियों में है और सारा देश सकते में । शाहरुख़ खान ने आई पी एल में पाकिस्तानी खिलाडियों को न लिये जाने पर अपना विरोध क्या दर्ज क्या करा दिया , पिछले विधानसभा चुनाव में बुरी तरह पिटी शिवसेना को एक मुद्दा मिल गया । शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' का सच अलग ही होता है । कभी सचिन को नसीहत देना ,कभी अमिताभ को । इस बार बाल ठाकरे ने किंग खान को देशद्रोही ठहरा दिया जिसकी प्रतिक्रिया में अन्य राजनीतिक दलों को भी अपनी राजनीतिक रोटी सेकने का मौका मिल गया । अपने राहुल बाबा भी अखाड़े में कूद पड़े । मुंबई सबकी है या मराठों की ,यह मुद्दा भी साथ में गरमा गया । शिवसेना व मनसे की गुंडागर्दी को कांग्रेस सरकार अब तक परोक्ष रूप से मान्यता देती रही थी । पर राहुल बाबा के महाराष्ट्र दौरे से सरकार को सक्रिय होना पड़ा और शिवसेना का राहुल विरोध एक 'फ्लॉप शो ' सिद्ध हुआ ।फासिस्ट बाल ठाकरे के बेटे उद्धव को भी महसूस हुआ कि मुसोलिनी जैसा शासन का क्या होता है
इस घटनाक्रम में कुछ सकारात्मक बातें भी दिखाई दीं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह मोहन भागवत ने शिवसेना की लाइन का विरोध किया। अब तक शिवसेना की सहयोगी रही भाजपा ने भी खुल कर मुंबई को सारे देश का बताया । करूणानिधि ने स्वयं को हिंदी विरोधी कहने पर आपत्ति जताई।कांगेस के केन्द्रीय नेताओं ने खुल कर शिवसेना की क्षेत्रीय भाषाई संकीर्णता का विरोध किया ।
यह स्थिति हमारी व्यवस्था के सामने कुछ सवाल भी खड़े करती है -
क्या सरकार को राजनीतिक नफा-नुकसान के आधार पर ही काम करना चाहिए ?
राहुल के दौरे पर सरकार ने जो कठोरता बरती ,क्या अन्य अवसरों पर भी कानून व व्यवस्था को हाथ में लेने वालों के विरुद्ध वैसी ही सख्ती बरती जाएगी ?
क्या क्षेत्रीय व भाषायी संकीर्णता के विरुद्ध राष्ट्रीय दलों में जैसी सहमति महाराष्ट्र के घटनाक्रम इस समय दिख रही है ,वह आगे भी दिखेगी ?
क्या कला , खेल व संस्कृति के मामलों को हम राजनीतिक चश्मे से देखना छोड़ सकेगें ?
इन प्रश्नों का उत्तर आने वाला समय ही देगा और तभी हम जान पायेगे 'सामने का सच '